संस्कृत का महत्त्व समझकर उसका लाभ लेनेवाले विदेशी !

अ. २६.४.२००७ को भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ग्रीस देश में गए थे । वहां के एक स्वागत समारंभ में ग्रीस के राष्ट्रपति कार्लोस पाम्पाडलीस इन्होंने ‘राष्ट्रपतिमहाभाग ! सुस्वागतं यवनदेशे !’, इस संस्कृत वाक्य से अपने भाषण का प्रारंभ किया । अपने भाषण में उन्होंने संस्कृत यह प्राचीन भारत की भाषा होकर इस भाषा का संबंध ग्रीक भाषा से भी है ऐसा बताया ।

आ. जुलाई २००७ में ‘अमेरिकी सिनेट’का प्रारंभ वैदिक प्रार्थना से हुआ । पिछले २१८ वर्षों के अमेरिका के इतिहास में प्रथमही यह घटना घटी । ‘ॐ शांति: शांति: शांति: ।’ ऐसी संस्कृत की प्रार्थना बोलकर संस्कृत को ‘मृतभाषा’ कहनेवाले नेहरू-गांधी कुटूंब को अमेरीका सिनेटने तमाचा लगाया है ।

इ. अमेरीका के विद्यापीठ में भी संस्कृत का अध्ययन और अध्यापन पिछले अनेक वर्षों से चल रहा है । वहां के केलिफोर्निया विद्यापिठ में सन् १८९७ से ही संस्कृत भाषा पढाई जा रही है ।

ई. २७ अगस्त २००७ से चालू होनेवाले केलिफोर्निया सिनेट का प्रारंभ संस्कृत मंत्रोच्चार से हुआ । उसके पश्चात् न्यू जर्सी सिनेट का भी प्रारंभ संस्कृत मंत्रोच्चार से हुआ ।

उ. मेरीलैंड (अमेरिका) विद्यापिठ के विद्यार्थीयोंने ‘संस्कृतभारती’ इस नाम से एक गुट तैयार किया है । उस नामसे उन्होंने एक जालस्थानभी (www.speaksanskrit.org) प्रारंभ किया है ।

ऊ. ११ अप्रैल २०१० इस दिन अमेरिका की सिनेट का प्रारंभ संस्कृत श्लोक पठन से हुआ ।

संसार के सभी उदात्त विचारों का उगम संस्कृत भाषा में ही है । संस्कृत यह अत्यंत परिपूर्ण, शास्त्रशुद्ध तथा हजारों वर्ष बितनेपर भी जैसी की वैसी जिवित रहनेवाली एकमेव भाषा है !

– पाश्चात्त्य विद्वान तथा विद्यापिठों के अभ्यासक.