पंचतंत्र

पंचतंत्र-मूर्ख को भी व्यवहारकुशल बनानेवाली संस्कृत भाषा की देन !

  पंचतंत्र, इस शब्दकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है । ‘पंच’ अर्थात् पांच और ‘तंत्र’ अर्थात् तत्त्व । पंचतंत्र याने पांच तत्त्व । ये पांच तत्त्व राजा एवं सामान्य व्यक्ति के दैनिक जीवन के लिए मार्गदर्शक तत्त्व हैं । इस ग्रंथ में राजा को राज्य कैसे करना चाहिए, मित्र कैसे एवं कौन से करें, कौन से न करें, योग्य मंत्री का कैसे चयन करें और दैनिक जीवन में हमारा आचरण कैसे हो इसका मार्गदर्शन कथाओंद्वारा किया गया है ।

पंचतंत्र की निर्मिति

प्राचीन काल में, भारत के दक्षिण महिलारोप्य प्रदेश में अमरशक्ति नाम का एक प्रजाहितदक्ष तथा कर्तव्यदक्ष राजा था । इस राजा की तीन संतानें थी, बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति । तीनों भी संतानें मूर्ख, आलसी तथा बुध्दिशून्य थीं । इस कारण राजा को निरंतर उनकी चिंता लगी रहती । राजा अब वृद्ध हो गया था । ‘मेरे उपरांत इस राज्य का भार कौन संभालेगा’, इस विचार से राजा चिंतातुर हो गया था । अपनी मूर्ख संतानों को देखकर उसे बारबार एक ही वचन का स्मरण होता था।

अजातमृतमूर्खेभ्यो मृतजातौ सुतौ वरम् ।
यतस्तौ स्वल्पदुःखाय यावज्जीवं जडो दहेत् ।

अर्थात्, अजात (न जन्मे हुए), मृत और मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा मरे और न जन्मे पुत्र अधिक अच्छे; क्योंकि उनके कारण होनेवाला दुःख अल्प होता है । मूर्ख पुत्र आजीवन (मन को) जलाता रहता है।

उस राजा के आश्रय में ५०० पंडित थे । एक दिन उन पंडितों को राजाने बताया, कि मेरे पुत्र चतुर हों ऐसा कुछ कीजिए । उसपर वे पंडित राजा को बोले विष्णुशर्मा नाम का एक पंडित ब्राम्हण है । आप अपनी संतानों को उनके अधीन कर दें । वे उनको चतुर बनाएंगे । राजाने विष्णुशर्मा को बुलवा लिया और अपनी इच्छा बताई । परंतु विष्णुशर्माने अपना ज्ञान बेचने से मना कर दिया; परंतु उसके संतानों को ६ माह में व्यवहार कुशल और साथ ही उनमें देवताओं के राजा इंद्र को भी जीतने की क्षमता आएगी इतना सामथ्र्यशाली बनाने का वचन दिया । यह सुनकर राजाने राजपुत्रों को पंडित विष्णुशर्मा के साथ भेज दिया । विष्णुशर्माने उन संतानों को विविध कथाओं के माध्यम से व्यवहारज्ञान सिखाया ।

छ: महीनेबाद जब राजाने अपनी संतानों को देखा तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था । राजा की तीनों संतानें छ: माह में व्यवहार कुशल बन गर्इं थी । राजा को यह देखकर अत्यानंद हुआ । विष्णुशर्माने राजपुत्रो को केवल ज्ञान देने की अपेक्षा पशु पक्षियों के माध्यम से यह भी सिखाया कि उस ज्ञान का कब, कहां और कैसे उपयोग करना चाहिए । पंडित विष्णुशर्मा की सिखाई हुई कथाओं को पांच भागों में विभाजित किया गया है । इन्हीं कथाओं को पंचतंत्र कहते है । वे पांच तंत्र आगे दिए अनुसार है –

१. मित्रभेद – कौन से मित्र न करें ।

२. मित्रप्राप्ति – कौन से मित्र करें ।

३. काकोलुकीयम् – कौए और उल्लू के अनबन की कथा ।

४. लब्धप्रणाशनम् -प्राप्त धन का नाश कैसे होता है ।

५. अपरीक्षितकारकम् – यदि संपूर्ण विचार न कर कृत्य किए जाए तो उनका परिणाम क्या होता है ।

मानव जीवन के उच्च मूल्यों का परिचय कराने हेतु उत्तम साधन

  पंचतंत्र लगभग २००० वर्षों पूर्व लिखा गया; परंतु उसके मौलिक ज्ञान के कारण वह आज भी लोकप्रिय एवं मार्गदर्शक है । मूलत: संस्कृत में लिखा गया यह पंचतंत्र अब विश्व की अनेक भाषाओंमें उपलब्ध है । पंचतंत्र में कुल ८७ कथाएं है । प्रत्येक कथामें एक बहुमूल्य नीतियां छिपी है । मानव जीवन के उच्च मूल्यों का परिचय कराने हेतु पंचतंत्र एक उत्तम साधन है । मनोविज्ञान, व्यावहारिकता और राजनीति के सिद्धांतो का परिचय इन कथाओंद्वारा होता है । संस्कृत साहित्य में पंचतंत्र को प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ है ।

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