वेद : वेदोऽखिलं धर्ममूलम्

ॐकार

१. ‘श्रीमद्भागवत्’ में बताया है, ‘‘समाहित ब्रह्म के ह्रदयकोश से नाद (अव्यक्त शब्द) प्रगट होता है । दोनों कान बंद कर अंदर वह ध्वनि सुनाई देता है । उस अनाहत नाद की उपासना कर योगी मोक्ष के अधिकारी होते हैं ।’’

२. ॐकार उसी परमात्म्य का वाचक है ।

३. उस ॐकार से सारे वाक्य प्रयोग आविर्भूत हुए । वह ॐकार ही सर्व मंत्र तथा सर्व वेदोंका बीज हैं । उस ॐकार के ‘अ, उ, म’ वर्ण से सत्त्व, रज, तम; ऋक्, यजु, साम; भू:, भूव:, स्व:, स्वप्न, जागृत और सुषुप्ती ऐसी अवस्थाएं निर्माण होती हैं । ब्रह्मदेवने इस ॐ बीज से वर्णमाला उत्पन्न की । उसने इस अक्षरसे ही यज्ञके लिए भू:, भूव:, स्व:, महा, जन, तप, सत्यम ऐसी सात व्याह्रती तथा प्रणव इनके साथ वेद प्रकाशित किए ।’

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी. (साप्ताहिक सनातन चिंतन, १० मई २००७, अंक १५)

 

वेद धर्म का महत्त्व सब के लिए जानना आवश्यक

वेद अर्थात् प्राचीन भारतीय ज्ञान की नींव । कुल चार वेद हैं और वह है ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद । इन वेदों मे निश्चित रूप से क्या लिखा है, यह कितने लोग जानते हैं ? वेदों का योग्य उच्चारण अनेक लोग करते होंगे; परंतु उसके ज्ञानसंपदा का विश्लेषण करने का प्रयत्न कितने लोग करते हैं ? वाचकों की जिज्ञासा जागृत हो, उसके लिए वेदों मे निश्चित रूप से क्या हैं ? इसकी झलक दिखाने का प्रयत्न किया गया है ।

‘सनातन हिंदु धर्म का मुख्य ग्रंथ वेद है । अपौरूषेय, अनादि, अनंत वेदोंसे हिंदु धर्म का निर्माण हुआ । हिंदु धर्म की पुन: सुव्यवस्थित, सुरक्षित घडी बैठानी हो, तो हिंदु समाज का ध्यान वेदों की ओर लाना होगा । वेदों की रक्षा के लिए ही भगवान के वराह, राम, कृष्ण आदि अवतार हुए । इन वेदों की रक्षा होनी चाहिए । वेदज्ञान, वेदों का अध्ययन, वेदों की महती, वेदों की कीर्ति कश्मीर से लेकर कोच्चीतक तथा बाणकोट से लेकर जगन्नाथपुरी तक सभी अबला वृद्धों को होना चाहिए । वेदमंदिर में प्रवेश करो । तुम्हें सनातन धर्म मिलेगा । उसमें का एकेक दालान (एक बडा कमरा), एकेक चौक, एकेक सभामंडप इतने सुंदर, इतने शृंगारिक, इतने विशाल है कि, हम हिंदुओं की सैकडों पीढियां आनंद से जीवन बिता सकती हैं । इस वेदप्रसादने सृष्टि निर्मिति के समय से इस इक्किसवीं सदी के प्रारंभतक हमारी रक्षा की है । वेदों के इस दुर्भेद्य गढ को छेदने का प्राचीन काल में क्या कम प्रयत्न हुआ ?

(संवाद, गुरुदेव प्रकाशन, पृष्ठ २,३ एवं ४)

संपूर्ण वेदवाङ्मय धर्म का मूलस्त्रोत है । वेदों का प्रतिपाद्य विषय धर्म है । वेदविहित पवित्र कर्तव्य कर्म यह धर्म का स्वरूप है, जो कालाधीन है । ‘काल’ सूर्याधीन है । सूर्य के कारण दिन तथा रात्रि यह काल विभाग होते हैं । सूर्यही सृष्टि, स्थिति, संहार का मूल कारण है । सूर्य के कारणही सृष्टि, स्थिति तथा संहार होते हैं । अत: सूर्यदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेशस्वरूप है ।

ऋग्वेद बताता है, ‘सूर्यदेव अपने तेज से सब को प्रकाशित करते हैं ।’यजुर्वेद बताता है, ‘सूर्यदेव समस्त भुवनों को उज्जीवित करते हैं ।’ अथर्ववेद बताता है, ‘ह्दयरोग तथा श्वास रोग इनका उपशमन करते हैं ।’

वेदोंपर भाष्य करनेवाले ‘सायनाचार्य’ इनके समालोचनपर से वेदों का अर्थ लगा सकते हैं । वेदों को जाना जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए ६ वेदांग तथा ४ उपांग हैं । जिनके द्वारा वेदों को अच्छे से समझने में सहायता होती है । शब्दों की व्युत्पत्ति तथा अर्थ इनके शास्त्र से संबंधित वेदांग अर्थात निरूक्त ! ऋग्वेद ऋग् समझने के लिए निरूक्त देखना आवश्यक है ।

वेदों में मिली हुई ये कुछ बातें,

१) प्रकाश का वेग – ऋग्वेद, मण्डल १, सूक्त ५०, ऋचा ४.

२) विश्व के केंद्र स्थानपर सूर्यकी संकल्पना – यजुर्वेद (तैत्तिरीय संहिता), स्कंध ३, प्रपाठक ४, अनुवाक्य १०, मंत्र ३.

३) पृथ्वी का उपग्रह चंद्र – ऋग्वेद, मंडल १०, सूक्त १८९, ऋचा ८.

४) जन्म के समय निकाली हुई बालककी नाल – अथर्ववेद, कांड १,सूक्त ११.

वेदोंने हमारी संस्कृति निर्माण की, उसकी रक्षा की तथा उसे चिरंतन बनाया ।

(संवाद, गुरुदेव प्रकाशन, पृष्ठ २, ३ एवं ४)