चौंसठ कलाएँ

प्राचीन काल में भारतीय शिक्षा-क्रम का क्षेत्र बहुत व्यापक था। शिक्षा में कलाओं की शिक्षा भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती थीं कलाओं के सम्बन्ध में रामायण, महाभारत, पुराण, काव्य आदि ग्रन्थों में जानने योग्य, सामग्री भरी पड़ी है; परंतु इनका थोड़े में, पर सुन्दर ढंग से विवरण शुक्राचार्य के 'नीतिसार' नामक ग्रन्थ के चौथे अध्याय के तीसरे प्रकरण में मिलता है। उनके कथनानुसार कलाएँ अनन्त हैं, उन सबके नाम भी नहीं गिनाये जा सकते; परंतु उनमें ६४ कलाएँ मुख्य हैं ।

१. गायन

२. वादन

३. नर्तन

४. नाटय

५. आलेख्य (चित्र लिखना)

६. विशेषक (मुखादि पर पत्रलेखन)

७. चौक पूरना, अल्पना

८. पुष्पशय्या बनाना

९. अंगरागादिलेपन

१०. पच्चीकारी

११. शयन रचना

१२. जलतंरग बजाना (उदक वाद्य)

१३. जलक्रीड़ा, जलाघात

१४. रूप बनाना (मेकअप)

१५. माला गूँथना

१६. मुकुट बनाना

१७. वेश बदलना

१८. कर्णाभूषण बनाना

१९. इत्र यादि सुगंधद्रव्य बनाना

२०. आभूषणधारण

२१. जादूगरी, इंद्रजाल

२२. असुंदर को सुंदर बनाना

२३. हाथ की सफाई (हस्तलाघव)

२४. रसोई कार्य, पाक कला

२५. आपानक (शर्बत बनाना)

२६. सूचीकर्म, सिलाई

२७.कलाबत्

२८. पहेली बुझाना

२९. अंत्याक्षरी

३०. बुझौवल

३१. पुस्तकवाचन

३२. काव्य-समस्या करना, नाटकाख्यायिका-दर्शन

३३. काव्य-समस्या-पूर्ति

३४. बेंत की बुनाई

३५. सूत बनाना, तुर्क कर्म

३६. बढ़ईगरी

३७. वास्तुकला

३८. रत्नपरीक्षा

३९. धातुकर्म

४०. रत्नों की रंगपरीक्षा

४१. आकर ज्ञान

४२. बागवानी, उपवनविनोद

४३. मेढ़ा, पक्षी आदि लड़वाना

४४. पक्षियों को बोली सिखाना

४५. मालिश करना

४६. केश-मार्जन-कौशल

४७. गुप्त-भाषा-ज्ञान

४८. विदेशी कलाओं का ज्ञान

४९. देशी भाषाओं का ज्ञान

५०. भविष्यकथन

५१. कठपुतली नर्तन

५२. कठपुतली के खेल

५३. सुनकर दोहरा देना

५४. आशुकाव्य क्रिया

५५. भाव को उलटा कर कहना

५६. धोखा धड़ी, छलिक योग, छलिक नृत्य

५७. अभिधान, कोशज्ञान

५८. नकाब लगाना (वस्त्रगोपन)

५९. द्यूतविद्या

६०. रस्साकशी, आकर्षण क्रीड़ा

६१. बालक्रीड़ा कर्म

६२. शिष्टाचार

६३. मन जीतना (वशीकरण)

६४.व्यायाम।