स्वामी विवेकानंदजी की सीख

आप स्वामी विवेकानंदजी से तो अवश्य परिचित होंगे । वे रामकृष्ण परमहंस के परमशिष्य थे । दशदिशाओं में अध्यात्म की ध्वजा फहराते हुए उन्होंने जीवनभर अध्यात्म का प्रचार किया । विदेश में भी उनके प्रवचनों को बडी मात्रा में भीड लगी रहती थी । Read more »

स्वामी विवेकानंदजी का उनके सद्गुरु श्रीरामकृष्ण परमहंस के प्रति का भाव !

स्वामी विवेकानंदजी धर्मप्रसार के लिए भारत के प्रतिनिधी के रूप में ‘सर्व धर्म परिषद’के लिए शिकागो गए थे । वहां उपस्थित श्रोता गणों के मन जितकर वहां ‘न भूतो न भकिष्यति !’ ऐसा अद्भभूत प्रभाव डाला । वहा घटित एक प्रसंग इस कथा से देखेंगे । Read more »

धर्म-अधर्म के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण समान सारथी होने का ध्येय रखनेवाले स्वामी विवेकानंद

नरेंद्र ने (स्वामी विवेकानंदजी ने) केवल भारत में ही नहीं, अपितु पश्‍चिमी देशों में भी ‘सनातन धर्म’की ध्वजा फहरायी । उनकी बालक अवस्था मे घटित एक प्रसंग इस कथा से पढेंगे । Read more »

लोकमान्य तिलक !

‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है तथा मैं वह अवश्य प्राप्त करूंगा’ इस सुपरिचित वाक्य के कारण हम उन्हें ‘लोकमान्य ‘के नाम से जानते हैं; परंतु तिलकजी की वृत्ति बाल्यावस्था से ही निर्भयी एवं तेजस्वी किस प्रकार थी, यह हम इस कथा से समझ लेते हैं । Read more »

किशोरावस्था से ही राष्ट्राभिमानी वृत्ति के नेताजी सुभाषचंद्र बोस !

एक बार शरद ऋतु में मूसलाधार वर्षा हो रही थी । आधी रात में मां प्रभावतीदेवी की नींद खुली, तो उन्हें सुभाष की चिंता होने लगी । Read more »

लाल बहादुर शास्त्री

अपने गरीब माता-पितापर बोझ न बनकर उनके पैसे बचाने के लिए प्रतिदिन गंगा नदी तैरकर पाठशाला में जानेवाला असामान्य साहसी बालक लाल बहादुर शास्त्री ! Read more »

मेरे पास भयंकर शस्त्र है । – स्वातंत्र्यवीर सावरकर

‘एक समय लंदन में गुप्तचरों ने स्वा. सावरकरजी को जांच-पडताल के लिए रोका और कहा, ‘‘महाशय, क्षमा कीजिए, हमें आपपर शंका है । Read more »