एकाग्रता का महत्त्व

कोलकता के सिमोलिया पथपर एक बडासा घर था । वहां बाबू विश्वनाथदत्त नामक एक प्रसिद्ध अधिवक्ता (वकील) रहते थे । उनकी कीर्ति कोलकता तथा संपूर्ण बंगाल में फैली हुई थी । धनी-निर्धन सभी उन्हें पहचानते थे । उनकी पत्नी का नाम था भुवनेश्वरी देवी । वह धार्मिक विचारों की महिला थी; परंतु उनका कोई पुत्र न था । पुत्र पाने के लिए काशी के काशीविश्वेश्वर मंदिर में जाकर तपस्या करने लगीं । उनकी तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हो गए । उन्होंने स्वप्न में आशीर्वाद दिया और कहा, ‘‘तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी ।”

कोलकाता लौटनेपर विश्वेश्वर की कृपा से उन्हें १२.१.१८६३ को मकर संक्राति के दिन पुत्र की प्राप्ति हुई । बालक का नाम वीरेश्वर रखा गया । घर में मां उसे प्यार से ‘बिले’ पुकारती थी; परंतु उसका वास्तविक नाम नरेंद्र था ।

बिले बचपन से ही ईश्वरभक्त था । भगवान शिव की भक्ति में वह बहुत ध्यान मग्न हो जाता था । वह कोई भी काम मन लगाकर करता था । वह अपने मन को भटकने नहीं देता था । एकाग्रता उसे बचपन से मिली थी । नरेंद्र और उसके मित्र ध्यान लगाने समान खेल खेला करते थे।

एक बार नरेंद्र और उसके मित्र घर में भगवान का ध्यान लगाकर बैठे थे । सभी बच्चे शांत बैठे थे । नरेंद्र तो एकदम ध्यान में लगा था । तभी वहां कुछ सरकने का स्वर सुनाई दिया । सब बच्चों ने आंखें खोल दी; उन्हें वहां एक सांप दिखाई दिया । बच्चे घबराकर कोलाहल करते हुए बाहर भागने लगे । भुवनेश्वरी देवी यह सुनकर ‘क्या हुआ’ यह देखने आर्इं । यह क्या !नरेंद्र तो आंखें मूंदे वहां शांति से बैठा था और सांप उसके बिल्कुल पास से निकल गया । उसे पता ही नहीं लगा । वह ध्यान में इतना मग्न था ।

एक बार अमरीका के समुद्र तटपर कुछ लोग खेल खेल रहे थे । खेल में समुद्र की लहरोंपर थिरकती गेंदपर निशाना लगाना था । यह किसी से नहीं हो पा रहा था । एक भारतीय बालक वहां से जा रहा था । उसने सामने से आती लहरपर थिरकती गेंदपर अचूक निशाना लगा दिया । यह निशाना लगानेवाला नरेंद्र ही था । अमेरिका के लोगों की टोली यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई । यह नरेंद्र कैसे कर पाए ? इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने अमरिकी बच्चों को एकाग्रता का महत्त्व समझाते हुए दिया और कहा कि यह केवल एकाग्रता से ही संभव हो सकता है ।

बच्चो आप जानते ही हैं कि, तीर चलाते समय अर्जुन की दृष्टि केवल अपने लक्ष्यपर ही थी । किसी भी कामपर ध्यान लगाकर उसे करने की लगन हम में होगी, तो हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में अवश्य सफल होंगे तथा हमें यश भी मिलेगा । यही तीव्र लगन तथा एकाग्रता नरेंद्र के लिए ईश्वर प्राप्ति तथा साधना में सहायक रही और वह नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बन गया ।

बच्चो, ईश्वर ने सब में कोई न कोई एक विशेष गुण (शक्ति) दिया है । मन को एकाग्र करना उसका पहला चरण है । अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए लगन के साथ किसी काम को किया जाए तो वह शीघ्र होता है और यश भी मिलता है । ध्यान लगाने से विचार अल्प होते जाते हैं तथा किसी विषयपर मन एकाग्र करने में सहायता मिलती है । अध्ययन करन में इससे बहुत लाभ होता है । अतः मित्रो, अभी से हमें नामजप प्रारंभ कर देना चाहिए । तब हम यश प्राप्ति के उच्च शिखर को अवश्य प्राप्त कर लेंगे ।

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