रामसेतु बनाने की सेवा में गिलहरी का योगदान

समुद्र तट के पास ही रेत का ढेर था, गिलहरी उस रेत के ढेरपर जाती और वहां से अपने छोटे-छोटे हाथों और पूंछ में छोटे पत्‍थर एवं रेत लेकर सागर में डालती जा रही थी । जितनी उसकी क्षमता थी उसका वह पूरा उपयोग कर श्रीराम कार्य में लग गई । Read more »

प्रभु ‘श्रीराम’ का नाम लिखे पत्‍थरों का पानी पर तैरना

जिन पत्‍थरों पर श्रीराम लिखा था वह तो तैर गए और प्रभु श्रीरामने जो पत्‍थर पानी में छोडा उसपर श्रीरामका नाम न होने से वह डूब गया । प्रभु श्रीराम से भी बडा उनका नाम है; क्‍योंकि हमारे सामने श्रीरामजी उपस्‍थित न हों; परंतु उनका नाम भक्‍तों को तारता है । Read more »

दुष्ट वालिका वध

अपनी प्रजा के लिए अपनी पत्नी का भी त्याग करनेवाले प्रभु श्रीराम ने वाली का वधकर सुग्रीव को उसका राज्य किस प्रकार प्राप्त करवाया था, यह आज हम देखेंगे । Read more »

जब माता शबरी ने भगवान श्रीराम को खि‍लाए जूठे बेर . . .

शबरी ने बेरों को चखना आरंभ कर दिया । अच्छे और मीठे बेर वह बिना किसी संकोच के श्रीराम को देने लगी । श्रीराम उसकी सरलता पर मुग्ध थे । उन्होंने बडे प्रेम से जूठे बेर खाए । Read more »

भगवान श्रीराम भवसागर पार करानेवाले खेवनहार !

‘कैकयी को दिया वचन पूरा करने हेतु प्रभु श्रीरामचंद्र अपने भाई लक्ष्मण तथा पत्नी सीता के साथ वनवास जाने को निकले । प्रभु श्रीराम वनवास के मार्गपर गंगा नदीके सम्मुख आए । Read more »

सत्सेवा का महत्त्व !

सेवा का अर्थ है, भगवान को जो अच्छा लगे वह काम करना; भगवान के कार्य में सम्मिलित होना, यही भगवान की सेवा है । यदि हम काम में मां का हाथ बटाएं, तो मां को अच्छा लगेगा या नहीं ? तब मां हमें मिठाई देगी तथा हमें प्यार करेगी । उसी प्रकार हमने भगवान की सेवा की, तो भगवान भी हमें प्यार करेंगे । Read more »