दुष्ट वालिका वध

बालमित्रों, रामनवमी को प्रभु श्रीरामजी का जन्म हुआ था । हम सदैव श्रीरामजी का उल्लेख एक आदर्श राजा के रूप में करते हैं । अपनी प्रजा के लिए अपनी पत्नी का भी त्याग करनेवाले प्रभु श्रीराम ने वाली का वधकर सुग्रीव को उसका राज्य किस प्रकार प्राप्त करवाया था, यह आज हम देखेंगे । वाली एवं सुग्रीव नामक दो भाई किश्चिंदा नगरी में वास्तव्य करते थे । दोनों एक दूसरे से अत्यंतिक प्रेम करते थे । उनमें वाली आयु से बडा होने से वह नगरी का राजा बन गया । एक बार मायावी नामक एक बलशाली राक्षस ने उस नगरी में प्रवेश किया । राजा वाली एवं उस राक्षस में घनघोर युद्ध हुआ । दोनो एक से बढकर एक पराक्रमी थे । युद्ध करते-करते उन्होंने एक गुफा में प्रवेश किया ।

भीतर से आनेवाली महाभयानक ध्वनि से गुफा में घनघोर युद्ध चल रहा होगा, इसका भान बाहर खडे सुग्रीव को हो रहा था । अचानक भीतर से एक भयानक ध्वनि के साथ रक्त की नदी गुफा से बाहर आती दिखाई दी । वह देखकर सुग्रीव को लगा कि उसका भाई वीरगति को प्राप्त हो गया है । मायावी राक्षस गुफा से बाहर निकलकर अब उसे भी मार डालेगा, इस भय से सुग्रीव ने एक बडी शिला से गुफाका द्वार बंद कर दिया तथा वह नगरी में लौट गया । अपने भाई को खो देने का दुःख सुग्रीव को था; परंतु लोगों के आग्रह तथा वाली का पुत्र छोटा होने के कारण सुग्रीव राजा बन गया । कुछ दिनों उपरांत वाली अपने नगर में लौट आया । सुग्रीव को राजा बना देखकर वाली को लगा कि सुग्रीव ने उसे धोखा दिया है, इसलिए वह अत्यधिक क्रोधित हो गया । क्रोध में आकर उसने अपने प्रिय भाई को नगर से बाहर निकाल दिया तथा उसकी पत्नी को बंदी बनाया । अपने बलशाली भाई के क्रोध से भयभीत होकर सुग्रीव वहां से भागकर सुरक्षित स्थान ऋष्यमूक पर्वतपर आया । वाली को मातंग ऋषि का शाप होने के कारण वाली वहां नहीं आ सकता था ।

उस समय राम एवं लक्ष्मण दोंनो सीता की खोज में उस पर्वत के निकट से जा रहे थे । हनुमानजी ने उनके आने की जानकारी सुग्रीव को दी । उसी क्षण सुग्रीव ने आकर उनके चरण पकडे तथा स्वयंपर हुए अन्याय के विषय में बताया । संपूर्ण विषय शांति से सुनकर प्रभु रामचंद्र बोले, ‘‘अपनी मातासमान भाभी को बंदी बनानेवाला वाली मुत्यु का पात्र है । मैं वाली का वध कर तुम्हारी पत्नी एवं तुम्हारा राज्य तुम्हे प्राप्त करवाऊंगा ।’’

योजना के अनुसार राम एवं लक्ष्मण के साथ सुग्रीव ने किश्चिंदा नगरी की ओर प्रयाण किया । वाली को युद्ध करने की चुनौती दी । पहले से ही क्रोधित वाली सुग्रीव को देख अत्यंतिक क्रोध से उसके सामने जाकर खडा हो गया । दोनों में युद्ध प्रारंभ हो गया । पेड की आड में छुपे हुए राम एवं लक्ष्मण भ्रमित हो गए; क्योंकि वाली एवं सुग्रीव में इतनी समानता थी कि, उनमें से सुग्रीव को पहचानना कठिन हो गया । पहचान के लिए रामद्वारा एक फुलोंका हार सुग्रीव को दिया गया । प्रभु रामचंद्र के साथ होने से सुग्रीव पुनः अत्यधिक आत्मविश्वास से युद्ध करने लगा । कुछ क्षण के उपरांत सुग्रीव को निर्बल पडते देख रामद्वारा बाण चलाकर वाली का वध किया गया । छाती में बाण घुसने से वाली भूमिपर गिर गया । उसकी मृत्यु हो गई; परंतु अपने अंतिम क्षणों में उसने प्रभु रामजी तथा सुग्रीवसे क्षमायाचना की !

बच्चो, वाली तथा सुग्रीव की इस कथा से आपको मिथ्या बोध से (भ्रम से) कितना बडा अनर्थ हो सकता है, यह अवश्य समझमें आया होगा । इसलिए बिना सोचे-समझे किसी भी कृत्यको न करें !

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