भिखारी की संतुष्‍टता !

यह बहुत पुराने समय की बात है । उस समय राजा महेंद्रसिंह अचलानगरी के राजा थे । उन्‍हें अपनी प्रजा से बहुत प्रेम था । राजा महेंद्रसिंह का जन्‍मदिन निकट आ रहा था । राजा ने एक योजना बनाई कि वह जन्‍मदिन की सुबह अपनी नगरी में घूमकर आयेंगे । उन्‍होने सोचा कि उस दिन रास्‍ते में सबसे पहले जो व्‍यक्‍ति मिलेगा, उसे पूर्णत: संतुष्‍ट करेंगे ।

जन्‍मदिन की सुबह योजना के अनुसार राजा महेंद्रसिंह अपने घोडे पर नगर में घूमने के लिए निकले । राजा मन में ऐसा सोच ही रहे थे कि, मुझे रास्‍ते में जो भी व्‍यक्‍ति सबसे पहले मिलेगा, उसे मैं संतुष्‍ट करके ही आगे जाऊंगा । तभी उनके सामने एक भिखारी आया । राजा को देखकर भिखारी उनके निकट आया और उसने राजा के सामने भीख मांगने के लिए हाथ फैला दिए । राजा ने भिखारी की ओर देखा और घोडे पर बैठे-बैठे ही एक तांबे का सिक्‍का उसकी ओर उछाल दिया । जब भिखारी फैंके हुए सिक्‍के को पकडने के लिए भागा, परंतु वह सिक्‍का उसके हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा । भिखारी नाली में हाथ डालकर वह तांबे का सिक्‍का ढूंढने लगा । राजा ने सोचा यह क्‍या हो गया ? मैंने तो भिखारी को संतुष्‍ट करने के लिए सिक्‍का दिया, परंतु उसे वह मिला ही नहीं अर्थात ऐसा लगता है कि वह संतुष्‍ट नहीं हुआ है ।

राजा ने उस भिखारी को अपने निकट बुलाया और उसेतांबे का एक और सिक्‍का दिया । भिखारी ने आनंद से वह सिक्‍का अपनी जेब में रख लिया और वह पुन: नाली में गिरे हुए सिक्‍के को ढूंढने लगा ।

यह देखकर राजा को लगा की यह भिखारी तो बहुत ही गरीब है, उसको भिखारी पर और दया आई । उसने भिखारी को पुनः अपने निकट बुलाया और अब राजा ने एक चांदी का सिक्‍का दिया । भिखारी ने राजा की जय जयकार की और वह पुन: नाली में सिक्‍का ढूंढने लगा । यह देखकर राजा को उसपर और अधिक दया आ गई और अबकी बार राजा ने भिखारी को एक सोने का सिक्‍का दिया ।

सोने का सिक्‍का पाकर भिखारी खुशी से झूम उठा और वापस भाग कर नाली में गिरा तांबे का सिक्‍का ढूंढने लगा । राजा को यह उचित नहीं लगा । उस समय राजा को स्‍वयं से निश्‍चित की हुई बात याद आ गयी कि वह पहले मिलने वाले व्‍यक्‍ति को आज संतुष्ट करना है ।

उसने भिखारी को पुन: निकट बुलाया और उससे कहा कि मैं तुम्‍हें अपना आधा राज-पाट देता हूं, अब तो तुम संतुष्ट हो ना ? भिखारी बोला, मैं संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्‍का मुझे मिल जायेगा ।

भिखारी की यह बात सुनकर राजा महेंद्रसिंह अचंभित हो गया । वह सोचने लगे कि मैंने तो भिखारी को आधा राजपाट भी दे दिया । इतना सब कुछ मिलने पर भी भिखारी का मन नाली में गिरे तांबे के सिक्‍के में ही अटका रहा । यदि किसी के मन की स्‍थिति इस प्रकार होगी तो वह मनुष्‍य कैसे संतुष्‍ट हो पाएगा ?

हमारी स्‍थिति भी उस भिखारी के जैसी ही होती है । हमें भगवान ने साधना रूपी मूल्‍यवान खजाना दिया है परंतु हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे का सिक्‍का निकालने के लिए अपना जीवन व्‍यर्थ गंवाते हैं ।

भगवान ने हमें सबकुछ दिया है, परंतु हमारे पास जो नहीं है उसे पाने के लिए ही हमारा मन कितना उतावला रहता है । इस कारण भगवान ने हमें जो दिया है उसके प्रति हमारे मन में कृतज्ञता का भाव नहीं रहता है ।

भगवान के द्वारा दिए साधना रूपी खजाने में से भगवान के नाम रूपी मोती निकालना और संतुष्‍ट रहना यही सच्‍ची साधना है ।

Leave a Comment