केवट की रामभक्‍ति !

प्रभु श्रीरामजी के चरणों का महत्त्व जाननेवाला केवट प्रभु श्रीरामजी का भक्‍त भी था । केवट एक नाविक था । बालमित्रो, नाविक अपनी नाव से लोगों को नदी पार करवाता है । प्रभु जब वनवास के लिए जा रहे थे, तब उन्‍हें नदी पार करनी थी । उन्‍होंने अपने सखा केवट से उसकी नाव मांगी, परंतु केवट नाव लेकर ही नही आ रहा था । उसे पता था कि प्रभु श्रीराम वनवास मे आगे चले गए तो मुझे उनके चरणों का दर्शन फिरसे कभी नहीं मिलेगा ।

उसने कहा, ‘‘मैने आपको जान लिया है । सब कहते हैं कि आपके चरणकमलों की धूल कोई जडीबुटी है जिससे पत्‍थर भी मनुष्‍य बन जाता है । आपके चरणों को छूते ही अहिल्‍याबाई पत्‍थर की शिला से सुंदर स्त्री बन गई । मेरी नाव तो लकडी की है । लकडी पत्‍थर से कठोर तो होती नहीं । मेरी नाव भी आपके चरणों के स्‍पर्श से स्‍त्री बन जाएगी । यदि मेरी नाव भी स्‍त्री बन गई, तो मैं अपना काम कैसे करूंगा ? कमाने और खाने का मेरा माध्‍यम ही नहीं रहेगा । फिर मैं क्‍या करूंगा ? इसी नावसे मेरे परिवार का पालन-पोषण होता है ।’’

केवट ने आगे प्रभु श्रीरामजी को प्रार्थना कि, ‘‘हे प्रभु, यदि आप पार जाना चाहते हो तो मुझे पहले अपने चरणकमल धो लेने का अवसर दीजिए । हे नाथ, आपके चरणकमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढा लूंगा । इसके के लिए मैं आपसे कुछ उतराई नहीं चाहता । मै सब सच-सच कहता हूं । भलेही लक्ष्मणजी मुझे तीर मारे, पर जब तक मै आपके चरणों को धो नहीं लेता तबतक पार नहीं उतारूंगा ।’’

केवट के इतने प्रेमभरे शब्‍द सुनकर श्रीरामजी उस पर प्रसन्‍न हो गए । उन्‍होंने केवट को अपने चरण धोने की अनुमति दे दी ।केवट भगवान के चरणकमलों को जल से अभिषेक करता है, फिर वह चरणामृत पीता है । बालमित्रो, केवट की प्रभु श्रीराम के प्रति यह पादसेवन भक्‍ति है । इससे हमें सीखने को मिलता है कि भगवान के चरणों मे शरण जाए तो भगवान भक्‍त की हर मनोकामना पूरी करते हैं ।