बालकृष्‍णद्वारा यमलार्जुन का उद्धार

बच्‍चों, भगवान श्रीकृष्‍ण ने अपने बचपन मे अनेक लीलाएं की हैं । उनकी प्रत्‍येक लीला बहुत ही रोमांचक है । आज हम उनके बचपन की कहानी सुनेंगे ।

कान्‍हा की माता यशोदा कान्‍हा का बहुत लाड-प्‍यार करती थी । वैसे तो नंदजी और यशोदा माता के घर में अनेक सेवक थे; परंतु बालकृष्‍ण की प्रत्‍येक सेवा यशोदा माता स्‍वयं करती थी ।

एक दिन यशोदामाई ने घर की सभी दासियों को दूसरे कामों में लगा दिया और कान्‍हा को माखन खिलाने के लिए स्‍वयं दही मथने लगी । तभी कान्‍हा अपनी माई के पास आये । उन्‍होंने यशोदा माता को दही मथने से रोक दिया और स्‍वयं उनकी गोद में कूदकर चढ गए । यशोदा माई कान्‍हा को दूध पिलाने लगी ।

उसी समय चूल्‍हे पर रखे हुए पतीले में दूध उबलने लग गया । वह देेखकर माई ने कान्‍हा को अपनी गोद से उतारा और वे दूध का पतीला उतारने के लिए चली गई । यशोदा माता छोडकर चली गई, यह देखकर कान्‍हा ने एक पत्‍थर उठाया और पास रखी हुई मटकी पर दे मारा । मटकी फूट गयी और दूध-दही भूमी पर फैल गया । उसके बाद कान्‍हा रोने लगे और दूसरी मटकी से माखन खाने लगे । वहां पर आए बंदरों को भी माखन खिलाने लगे ।

यशोदा माई वापस आई । कान्‍हा की करतूत देखकर वे छडी लेकर कान्‍हा के पास पहुंची । कान्‍हा ने माई को देखा तो वे भवन के पीछे के दरवाजे से भागे । यशोदा माई उनको पकडने के लिए पीछे भागी ।

जब कान्‍हा ने देखा की माई थक गयी है, तब वे एक जगह खडे हो गये ताकि माई उन्‍हें पकड सके । माई ने कान्‍हा को पकड लिया और वे कान्‍हा का हाथ पकडकर उन्‍हें डांटने लगी । उसके बाद माई ने कान्‍हा को बांधने के लिए रस्‍सी मंगाई और उन्‍हें ऊखल से बांध दिया और वे अपने काम करने चली गई । परंतु वे तो कान्‍हा थे । उन्‍होंने देखा माई अपना काम कर रही है । तो उन्‍होंने भी अपना काम करना आरंभ किया ।

उनके भवन के बाहर यमलार्जुन के दो वृक्ष थे । नारदमुनी जी के शाप से नलकूबर और मणिग्रीव नामक यक्ष यमलार्जुन के वृक्ष बन गए थे । उन्‍हें शाप से मुक्‍त करने के लिए छोटे से कान्‍हा ऊखल को खींचते हुए नन्‍दभवन के बाहर आ गये । उन्‍होंने ऊखल को दोनों वृक्षों के बीच में फंसाया और जोर से खींचने लगे । कृष्‍ण तो साक्षात भगवान थे, इसलिए बालक होते हुए भी उन्‍होंने अपने शक्‍ति से दोनों वृक्ष गिरा दिए । भयानक आवाज हुई । उन वृक्षों मे से दिव्‍य पुरुष प्रकट हो गये जो नलकूबर और मणिग्रीव यक्ष थे।

भगवान श्रीकृष्‍ण ने उन्‍हें शापमुक्‍त कर उनका उद्धार किया, इसलिए दोनों ने उनके चरणों मे कृतज्ञता व्‍यक्‍त की और अपने धाम को चले गये ।