श्री गणेश जन्‍म की कथा !

शिवपुराण में बताए अनुसार देवी पार्वती एक दिन हल्‍दी का उबटन लगा रही थी । तभी अचानक माता के कक्ष मे नंदी आ पहुंचा । यह देखकर माता पार्वती को अच्‍छा नहीं लगा । उन्‍होंने सोचा कि वह घर में अकेली रहती हैं, इसलिए जब जिसका मन करता है, कोई भी उनके कक्ष में आ जाता है । अब मुझे एक ऐसा पुत्र चाहिए, जो उनके साथ रहे और किसी को अंदर न आने दे । साथ ही उनके पुत्र को माता के नाम से पहचाना जाए ।

माता पार्वती इस विचार में थी । ऐसे सोचते-सोचते माता का उबटन सूख गया था । उन्‍होंने वह सूखा हुआ उबटन हाथोंसे निकाला और उससे एक बालक की मूर्ति बनाई । वह मूर्ति देख वे अत्‍यंत आनंदित हो गई । उन्‍होंने उस मूर्तिमेेंं प्राण डाल दिए । उस बालक के मुख पर हाथ फेरकर माता पार्वती ने कहा, ‘तुम मेरे पुत्र हो । तुम सदैव मेरी आज्ञा का पालन करोगे । तुम मेरे नाम से अर्थात गौरीनंदन के नाम से पहचाने जाओगे ।’ उन्‍होंने आगे कहा, ‘देखो पुत्र, अब मैं स्नान के लिए अंदर जा रही हूं । तुम ध्‍यान रखना कि घर के अंदर कोई भी न आ पाए ।’

माता पार्वती का आदेश मिलते ही आज्ञा पालन के लिए बालक गणेश द्वार पर जाकर खडे हो गए ।

कुछ समय बाद वहां भगवान शिवजी आए । वे जैसे ही घर के अंदर जाने लगे, तो बालक गणेश ने उनको नम्रतापूर्वक रोक दिया । बालक ने भगवान से कहा, ‘क्षमा करें ! मेरी माता ने किसी को भी अंदर आने के लिए मना किया है । उनकी आज्ञा के अनुसार मैं यहां द्वारपर खडा हूं । आप कृपया अंदर न जाएं । बालक की यह बात सुनकर भगवान शिवजी ने उसे समझाने का प्रयास किया । जब बालक गणेश नहीं माने, तो भगवान शिवजी ने गुस्‍से में आकर बालक गणेश का सिर धड से अलग कर दिया ।
उसी समय माता पार्वती स्नान करके बाहर आई । उन्‍होंने देखा कि उनके पुत्र का सिर जमीन पर पडा है । यह देखकर वे अत्‍यंत क्रोधित हो गईं । उन्‍होंने भगवान शिवजी को पूरी कहानी बताई और बालक को वहां खडा करने का कारण भी बताया ।
इसके बाद पार्वती माता का गुस्‍सा शांत करने के लिए भगवान शिवजी ने माता से कहा कि वे बालक का सिर जोड देंगे । परंतु उनका पहला सिर नहीं जुडेगा । इसलिए उनके सामने जो भी प्राणी पहले आएगा उसका सिर वे बालक गणेश के धड से जोड देंगे ।

उसके बाद जब वे वहां से बाहर निकले तब उन्‍हें एक हाथी दिखाई दिया । उन्‍होंने उस हाथी का सिर गणेश के धड से जोड दिया । साथ ही यह भी आशीर्वाद दिया कि सभी देवताओं की पूजा से पहले संसार में उस बालक की पूजा की जाएगी।
इस प्रकार हाथी का सिर जुडने से उस बालक का नाम ‘गजानन’ अर्थात हाथी के मुखवाले पडा ।

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