भक्‍त कृष्‍णाबाई !

एक गांव में कृष्‍णा बाई नाम की बूढी माताजी रहती थी.. वह भगवान श्रीकृष्‍ण की परमभक्‍त थी । वह एक झोपडी में रहती थी ।
कृष्‍णा बाई का वास्‍तविक नाम सुखिया था पर उसकी कृष्‍ण भक्‍ति के कारण गांववालों ने उनका नाम कृष्‍णाबाई रख दिया था । कृष्‍णाबाई निर्धन थी । वह घर-घर जाकर झाडू, पोछा, बर्तन मांजना और खाना बनाना ऐसे काम करती थी और अपना भरण-पोषण करती थी । कृष्‍णा बाई के पास भगवान श्रीकृष्‍ण की एक मूर्ति थी ।

प्रतिदिन सभी के घर के काम पूरे होने के बाद कृष्‍णाबाई श्रीकृष्‍णजी के लिए फूल चुनकर लाती थी । उन फूलों की माला बनाकर वह दोनों समय श्रीकृष्‍ण जी को पहनाती थी और घण्‍टों अपने प्रिय कान्‍हाजी से बात करती रहती थी । उसे कृष्‍ण के साथ बात करते देख गांव के लोग उसे पागल समझते थे । परंतु कृष्‍णाबाई उनकी ओर ध्‍यान न देकर कान्‍हाजी की भक्‍ति में रत रहती थी ।
एक रात श्रीकृष्‍ण जी ने अपनी भक्‍त कृष्‍णाबाई से कहा कि कल बहुत बडा प्रलय आनेवाला है.. पूरा गांव पानी में डूबनेवाला है । तुम यह गांव छोडकर दूसरे गांव चली जाओ ।

अब क्‍या प्रभु का आदेश था तो कृष्‍णाबाईअपना सामान इकट्ठा करने लगी । गांववालों ने उसे इसका कारण पूछा, तो उसने गांव वालों को भी बताया कि कल सपने में कान्‍हा आए थे और उन्‍होंने मुझे कहा कि यह गांव पानी में डूबनेवाला है इसलिए तुम यह गांव छोडकर दूसरे गांव चली जाओ ।

कृष्‍णाबाई की यह बात सुनकर सभी लोग उसपर हंसने लगे, जो भी वह बात सुनता था वह हंस पडता था । सभीने उसे बताया कि इस बात को भूल जाए और अपने काम में लग जाए ।

कृष्‍णाबाई अपने कान्‍हाजी के नाम लेते हुए गांव की सीमा पार कर की । वह दूसरे गांव में प्रवेश करने ही वाली थी कि उसे कान्‍हाजी की आवाज आई..

‘अरे पगली सारा सामान तो लेकर आई परन्‍तु प्रतिदिन मेरे लिए फूलों की माला जिस सुई से बनाती है, वह सुई तू अपनी झोपडी में ही भूल आई है। अब कल से माला कैसे बनाएगी ?’

कान्‍हाजी की यह बात सुनते ही कृष्‍णाबाई बेचैन हो गई । उसने सोचा, मुझसे ऐसी भूल कैसे हो गई… अब मैं अपने कान्‍हा की माला कैसे बनाऊंगी ?

उसने गाडीवाले को वहीं रोका और अपनी झोपडी की ओर दौडते हुए चली गई ।

गांववाले पुन: उसका मजाक उडाने लगे । उसे अनदेखा कर कृष्‍णाबाई झोपडी में पहुंची । उसने झोपडी में तिनकों में फसी सुई को निकाला और पुन: दौडते हुए गाडी के पास पहुंच गई ।

गाडीवाले ने कहा, ‘माई तू परेशान क्‍यों होती हैं ? कुछ नहीं होगा ।’

कृष्‍णाबाई ने कहा, ‘ठीक है ! चल अब अपने गांव की सीमा पार कर । गाडीवाले ने ठीक वैसेही किया ।’

जैसे ही कृष्‍णाबाई और वह गाडीवान दूसरे गांव में थोडा आगे निकल गए, उसी समय कृष्‍णाबाई का पूरा गांव ही पानी में समा गया । सब कुछ जलमग्न हो गया ।

कृष्‍णाबाई के साथ गया हुआ गाडीवाला भी श्रीकृष्‍णजी का अटूट भक्‍त था । भगवान ने उसे कृष्‍णाबाई के साथ भेजकर उसकी भी रक्षा की थी ।

बच्‍चो इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान अपने भक्‍त की एक सुई तक की इतनी चिंता करते हैं तो वह भक्‍त की रक्षा के लिए कितने चिंतित होते होंगे । जब तक उस भक्‍त की एक सुई उस गांव में थी तब तक पूरा गांव बचा हुआ था ।

बच्‍चो, हम भी कृष्‍णाबाई जैसे भगवान के भक्‍त बनेंगे तो वे हमारी भी इसीप्रकार से रक्षा करेंगे न ?

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