सकारात्‍मक सोच !

पुराने समय की बात है, एक गांव में दो किसान रहते थे । दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोडी थोडी खेती की जमीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत से खेती करके अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे ।

कुछ समय पश्‍चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पर मृत्‍यु हो गई । यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए ।
भगवान ने उन्‍हें देखा और उनसे पूछा, “अब तुम्‍हें क्‍या चाहिये, तुम्‍हारे इस जीवन में क्‍या कमी थी, अब तुम्‍हें क्‍या बना कर मैं पुनः संसार में भेजूं ।

भगवान की बात सुनकर उनमें से एक किसान बडे गुस्‍से से बोला, हे भगवान ! आपने इस जन्‍म में मुझे बहुत घटिया जिन्‍दगी दी थी । आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे । पूरी जिन्‍दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्‍छे कपडे पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्‍छा खाना खिला पाया । जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया । देखिए मेरा जीवन कैसा जानवरों जैसा था । इस प्रकार उस किसान की नकारात्‍मक सोच थी ।

उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, “तो अब क्‍या चाहते हो तुम, इस जन्‍म में मैं तुम्‍हें क्‍या बनाऊं ।

भगवान का प्रश्‍न सुनकर वह किसान पुनः बोला, “भगवन् आप कुछ ऐसा कर दीजिए, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पडे । मुझे तो केवल चारों ओर से पैसा ही पैसा मिले ।

अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया । भगवान ने उसकी बात सुनी और कहा, “तथास्‍तु, तुम अब जा सकते हो मैं तुम्‍हे ऐसा ही जीवन दूंगा जैसा तुमने मुझसे मांगा है ।

उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, “तुम बताओ तुम्‍हें क्‍या बनना है, तुम्‍हारे जीवन में क्‍या कमी थी, तुम क्‍या चाहते हो ?

उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोडते हुए कहा, “हे भगवन ! आपने मुझे सबकुछ दिया था, मैं आपसे क्‍या मांगू । आपने मुझे एक अच्‍छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपर मेहनत से काम करके मैंने अपने परिवार को एक अच्‍छा जीवन दिया । खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया । मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोए । बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी जिन्‍दगी खेद रहा और आज भी है । मेरे दरवाजे पर कभी कुछ भूखे और प्‍यासे लोग आते थे, भोजन माँगने के लिए, परन्‍तु कभी-कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्‍हें खाना नहीं दे पाता था, और वे मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे । ऐसा कहकर वह चुप हो गया ।

भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा, तो अब क्‍या चाहते हो तुम, इस जन्‍म में मैं तुम्‍हें क्‍या बनाऊं ।

किसान भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती की, “हे प्रभु ! आप कुछ ऐसा करें कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्‍यासा ना लौटे ।
भगवान ने कहा, तथास्‍तु, तुम जाओ तुम्‍हारे द्वार से कभी कोई भूखा प्‍यासा नहीं लौटेगा ।

अब दोनों का पुनः उसी गांव में एक साथ जन्‍म हुआ । दोनों बडे हुए ।

पहला व्‍यक्‍ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारों तरफ से केवल धन मिले और उसे कभी किसी को कुछ देना ना पडे, वह व्‍यक्‍ति उस गांव का सबसे बडा भिखारी बना । अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पडता था, और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालकर ही जाता था ।

और दूसरा व्‍यक्‍ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्‍यासा ना जाये, वह उस गांव का सबसे अमीर आदमी बन गया ।

बालमित्रो, हर बात के दो पहलू होते हैं सकारात्‍मक और नकारात्‍मक,

अब ये आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप प्रसंग को नकारत्‍मक रूप से देखते हैं या सकारात्‍मक रूप से । अच्‍छा जीवन जीना है तो अपनी सोच को सकारात्‍मक बनाना आवश्‍यक है, जो भगवान ने दिया है उसका आनंद लेना चाहिए और हमेशा दूसरों के प्रति सेवा का भाव रखना चाहिए ।

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