शरणागत की पुकार !

हमें भगवान से निरंतर प्रार्थना करते रहना चाहिए । ऐसा करने से क्‍या लाभ होते है यह हम स्‍वामी श्री रामलगनजी की कथा से समझ लेते हैं ।

जौनपुर में रामलगन नामक एक ब्राह्मण रहते थे । वह अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे । उनके पिता पंडित सत्‍यनारायणजी काशी में पढे हुए विद्वान थे । उनका घर सम्‍पन्‍न था । उनकी माताजी भगवान की भक्‍त थीं । माता ने रामलगनजी को सीताराम कीर्तन सिखाया था और प्रतिदिन वह इन्‍हें भगवान के चरित्र की मधुर कथाएं सुनाया करती थी ।

वे जब आठ वर्ष के थे, तब एक रात कुछ डाकू उनके घर मे आ पहुंचे । रामलगनजी के पिता दूसरे गांव गए हुए थे । जिस दिन डाकू आये, उस दिन उनके पिता घर पर नहीं थे । किसी यजमान के घर विवाह में पौरोहित्‍य करने के लिए गए हुए थे । घर पर रामलगन और उनकी माताजी ही थे । गरमी के दिन थे, इसलिये सब दरवाजे खुले हुए थे । एक ओर गौएं खुली खडी थीं । दोनों माता पुत्र घर के आंगन बैठे थे । उनकी माता उन्‍हें हनुमानजी के द्वारा लंका दहन की कथा सुना रही थी । उसी समय लगभग पंद्रह – सोलह डाकू घर में घुस आए । उनके हाथों में शस्‍त्र थे । उन्‍हें देखकर इनकी मां डर गयी, पर इन्‍होंने कहा, ‘मां ! आप डर क्‍यों रही हो ? देखिए, अभी हनुमानजी लंका जला रहे हैं । उनको क्‍यों नहीं पुकारती ? उनको पुकारते ही वह हमारी मदद करने आएंगे । रामलगनजी ने निडर होकर यह बात कही परंतु मां तो भय से कांप रही थीं । डर के मारे मां हनुमानजी को पुकारना भी भूल गई । जब मां कुछ नहीं बोली तब रामलगनजी ने हनुमानजी का स्‍मरण किया और शरणागति से पुकारा, ‘हनुमान जी ! मेरे हनुमान जी ! हमारी रक्षा करें ! हमारे घर में ये कौन लोग लाठियां -लेकर आ गये हैं ! मेरी मां डर रही हैं, पिताजी भी घर पर नहीं हैं । आप आइए, जल्‍दी आइए ! आप लंका बाद में जलाना । पहले हमारे घर आइए ।

डाकू घर में घुसे ही थे की उसी क्षणएक विशाल वानर कूदता -फांदता आ गया ; डाकू उसको लाठी मारने का प्रयत्न कर रहे थे; परंतु उसने आकर दो तीन डाकुओं को मारकर गिरा दिया । डाकुओं का सरदार आगे आया तो उसे गिराकर उसकी दाढी पकडकर इतनी जोर से खींची कि वह चीख मारकर बेहोश हो गया । डाकुओं की लाठियां तनी की तनी रह गईं । वानर को एक भी लाठी नहीं लगी । मारपीट और चीखें सुनकर आसपडोस के लोग आने लगे और लोगो से पिटने के भय से कुछ डाकू भाग गए । सरदार बेहोश था, उसे तीन-चार डाकुओं ने कंधेपर उठाया और आगे निकल पडे ।

बालक रामलगन जी और उनकी मां बडे आश्‍चर्य से इस दृश्‍य को देख रहे थे । डाकुओं के भागने पर वह वानर भी लापता हो गया । बालक हंसकर कह रहा था, ‘देखा न मां ! हनुमान जी पुकार सुनते ही आ गए और बदमाशों को मार भगाया । मां के भी आश्‍चर्य और हर्ष का पार नहीं था । गांव वालो ने यह घटना सुनी तो सब चकित हो गये । रामलगन की मां ने बताया कि इतना बडा और बलवान वानर उसने जीवन में कभी नहीं देखा था ।

दो-तीन दिन बाद पंडित सत्‍यनारायण जी घर लौटे । उन्‍होंने जब यह बात सुनी तो उन्‍हें बडा आश्‍चर्य हुआ । डाकू घर से चले गए, यह आनंद तो था ही; परंतु सबसे बडा आनंद तो इस बात से हुआ कि स्‍वयं श्री हनुमान जी ने पधारकर घर को पवित्र किया और उनकी पत्नी और पुत्र को बचा लिया । वे भगवान पर श्रद्धा तो रखते ही थे, अब उनकी भक्‍ति और भी बढ गई । तबसे उन्‍होंने अपने सारा कामकाज बंद कर वे दिनभर भजन-साधन मे रहने लगे । भगवान की शरण में रहने लगे ।

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