कन्‍हैया की मुरली !

नंदग्राम में भगवान श्रीकृष्‍णजी का मंदिर था । भगवान श्रीकृष्‍णजी की पूजा करनेवाले पुजारी अपने पुत्र के साथ वहीं रहते थे । पुजारी प्रतिदिन श्रीकृष्‍णजी की सेवा मंदिर में बडी श्रद्धा भाव से करते थे । उनका पुत्र भी धोती कुर्ता पहनकर सिर पर छोटी सी चोटी करके पुजारीजी के साथ आता था और उनको सेवा करते हुए देखता था ।

एक दिन पुत्र पुजारीजी से बोला, ‘बाबा आप अकेले ही सेवा करते हो, मुझे भी सेवा करनी है । पुजारीजी बोले, ‘बेटा अभी तुम बहुत छोटे हो ।’ परन्‍तु वह जिद करने लगा ।

पुजारी जी आखिर उसकी हठ के आगे झुक कर बोले अच्‍छा बेटा तुम श्रीकृष्‍णजी की मुरली की सेवा किया करो । इसको रोज गंगाजल से स्नान कराकर स्‍वच्‍छ करो । इसे इत्र लगाकर सुगंधि बनाओ । अब तो वह बालक बहुत आनंद से मुरली की सेवा करने लगा ।

उस बालक को इतनी लगन से मुरली की सेवा करते देखकर मंदिर में आनेवाला प्रत्‍येक भक्‍त बहुत प्रसन्‍न होता था । मुरली की सेवा करने से उस बालकका नाम ‘मुरली’ ही पड गया ।

ऐसे ही समय बहुत अच्‍छे से बीत रहा था कि एक दिन पुजारी जी बीमार पड गए । मन्‍द़िर में भगवानजी की सेवा में बहुत ही कठिनाइयां आने लगीं ।

अब श्रीकृष्‍णजी की पूजा नए पुजारी करने लगे । वह पुजारी बहुत ही घमण्‍डी थे, वह मुरली को मन्‍द़िर के अंदर भी आने नहीं देते थे । मुरली सोचता था कि उसके बाबा ठीक होने की बाद वह पुन: मंदिर जाकर मुरली की सेवा पाएगा । परन्‍तु उसके बाबा और बीमार हो गए और एक दिन उनका स्‍वर्गवास हो गया ।

अब तो छोटासा मुरली एकदम अकेला हो गया । नए पुजारी ने मुरली को धक्‍के मारकर मन्‍द़िर से बाहर निकाल दिया । मुरली अपने बाबा और मुरली का स्‍मरण कर रोने लगा ।

मन्‍द़िर से निकलकर वह दूसरे गांव जाने लगा । थककर वह एक सडक के किनारे पडे पत्‍थर पर बैठ गया । सर्दी के दिन थे, शीघ्र ही रात होनेवाली थी और ठंड भी बढ रही थी । छोटे बालक मुरली का भूख और ठंड के कारण बुरा हाल हो रहा था । रात होने के कारण उसे अब डर भी लगने लगा था । श्रीकृष्‍णजी की कृपा सेरामपाल नाम के एक सज्‍जन व्‍यक्‍ति वहां से निकल रहे थे ।

इतनी ठंड में और रात को एक छोटे बालक को सडक किनारे बैठा देखकर वह रुक गए और मुरली से वहां बैठने का कारण पूछा । मुरली रोते हुए पूरी बात बताई और बोला कि उसका कोई नहीं है । बाबा भगवान के पास चले गए हैं।

रामपालजीको मुरली पर बहुत दया आई क्‍योंकि उनका पुत्र भी मुरली की आयु का ही था । वह मुरलीको अपने साथ अपने घर ले गए ।

रामपालजी की पत्नी भी बहुत ही घमण्‍डी थी, मुरली को देखकर अपने पति से बोली, ‘यह किसे ले आए हो ?’ वे पत्नी से बोले कि आज से मुरली यहीं रहेगा । उनकी पत्नी को बहुत गुस्‍सा आया परन्‍तु पति के आगे उसकी एक ना चली ।

रामपालजी की पत्नी को मुरली नहीं भाता था । वह सदैव मुरली को सताती रहती थी ।मुरली से घर के सारे काम करवाती थी । हर प्रकार से मुरली को सताने की बात सोचती रहती थी ।

एक दिन वह सुबह ४ बजे उठी और उसने अपने पैर से ठोकर मारकर मुरली को उठाया और बोली, ‘उठो, कब तक मुफ्‍त में खाता रहेगा ?’ छोटासा मुरली हडबडा कर उठा और बोला, ‘क्‍या हुआ मां जी ? वह बोली कि आज से बाबूजी के उठने से पहले घर का सारा काम तू करेगा ।

मुरली ने ‘हां’ में सिर हिलाया और वह सब काम करने लगा ।

मां जी प्रतिदिन ही पैर की ठोकर से मुरली को उठाती और काम करवाती ।

रात के समय मुरली उस घर के बने हुए मन्‍द़िर के बाहर चटाई बिछाकर सोता था । रामपाल की पत्नी मुरलीकोमन्‍द़िर के भीतर नहीं जाने देती थी…कारण मन्‍द़िर मे रामपाल के पूर्वजों की बनवाई हुई चांदी की मोटी सी श्रीकृष्‍णजी की मुरली थी ।

मुरली दूर से उस मंदिर में श्रीकृष्‍णजी की मुरली देखता था और अत्‍यंत आनंदी होता था । उस मुरली को देखकर वह भूल जाता था की मां जी ठोकर मारकर उसे उठाती थी ।

एक दिन रामपाल हरिद्वार गंगास्नान को जाने लगे तो मुरली को भी साथ ले गए । वहां गंगा स्नान करते हुए अचानक रामपाल का ध्‍यान मुरली की कमर के पास पेट पर बने पंजो के निशान की ओर गया । उन्‍होंने मुरली से इसके बारे में पूछा; परंतु वह टाल गया ।

दोनो स्नान करके घर पहुंचे । रामपाल जब घर के मंदिर में भगवान श्रीकृष्‍ण की मुरली को भी गंगा स्नान करवाने लगे । तभी उनका ध्‍यान श्रीकृष्‍णजी की मुरली के मध्‍य भाग पर पडा । उसपर पांव की चोट के निशान से पंजा बना था, जैसे मुरली की कमर पर बना था । वह देख कर हैरान हो गए कि एक जैसे निशान दोनों पर कैसे हो सकते हैं ?

उस रात अचानक जब रामपालजी की नींद खुली तो उन्‍होंने देखा कि उनकी पत्नी मुरली को पांव की ठोकर से उसी जगह पर मार कर उठा रही है..जहां उन्‍होंने पंजे का निशान देखा था ।

उस रात रामपालजी ने मुरली को चुपचाप अपने कमरे मे ही सुला दिया और मंदिर का दरवाजा मन्‍द़िर के बाहर की ओर खुला रख आए । जब उनकी पत्नी प्रतिदिन की तरह आई और ठोकर मार कर मुरली को उठाने लगी.. तब उसका पैर मन्‍द़िर के बाहर के कांच के दरवाजे से टकरा गया ..और उसके पैर से खून बहने लगा । वह दर्द से कराहने लगी ।

उसके चीखने की आवाज सुनकर रामपाल उठ गए और उसको देखकर बोले, ‘जो ठोकर तुम रोज मुरली को मारती थी, उसका दर्द श्रीकृष्‍णजी की मुरली स्‍वयं पर लेती थी । मुरली की रक्षा तो भगवान की मुरली करती है, देखो भगवान् की मुरलीने उसकी पीडा स्‍वयंपर ली है ।

उसके बाद रामपालजी की पत्नी को मुरली को सताने का दंड मिल गया । रामपालजी की पत्नी को उसकी भूल का भान हो गया और अब वह मुरली का अपने बेटे की तरह ही ध्‍यान रखने लगी ।

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