कालिया मर्दन !

बच्‍चो, आप सबको कालिया मर्दन की कहानी पता है न ? नागपंचमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्‍णजी ने कालिया मर्दन किया था और कालिया के पूरे परिवार को रमणिक द्वीप भेज दिया था । आज हम कालिया मर्दन की कहानी सुनेंगे ।

आज हम भगवान श्रीकृष्‍ण के बचपन की एक कथा सुनते हैं । आप तो जानते ही हैं कि भगवान श्रीकृष्‍ण को मारने के लिए उनके मामा कंस ने अनेक राक्षस भेजे थे; परंतु श्रीकृष्‍ण तो भगवान थे, उनसे भला कोई राक्षस कैसे जीत पाता । कंस के द्वारा भेजे सभी राक्षसों को कृष्‍ण ने बचपन में ही मार डाला था । उस समय भगवान श्रीकृष्‍ण नंदगांव आकर रहने लगे थे । यह गांव यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है । यमुना नदी में कालिया नाम का एक विषैला सर्पराज अपने परिवार के साथ रहता था । उसके नदी में रहने से नदी का पानी विषैला हो गया था । जिससे गांव के जानवर जब उस नदी का पानी पीते तो विषैला पानी पीने से वह मर जाते थे । नंदगांव के लोग भी नदी का पानी नहीं पी पाते थे । गांव में हाहाकार मचा हुआ था ।

भगवान श्रीकृष्‍ण छोटे से थे, परंतु वह ब्रज में रहने वाले सभी जीव-जंतुओं और नंदगांव के लोगों की पीडा को जानते थे । विषैले सर्पराज का अंत करना ही एकमात्र उपाय है, यह उनके ध्‍यान में आया । एक दिन भगवान श्रीकृष्‍ण ग्‍वालबालों के साथ यमुना जी के तट पर गेंद खेलने पहुंचे । छोटे से कन्‍हैया मित्रों के साथ गेंद खेल रहे थे । गेंद खेलते खेलते भगवान श्रीकृष्‍ण ने गेंद को यमुना नदी में फेंक दिया । यह उनकी एक बाल लीला ही थी ।

अब सभी ग्‍वालों ने सोचा कि, गेंद तो नदी में गिर गई, अब तो हम खेल नहीं पाएंगे । ऐसी स्‍थिति में सभी ग्‍वाल-बाल गेंद के लिए निराश हो गए और सभी कहने लगे कि अब हम कैसे खेलेंगे । तब श्रीकृष्‍णजी ने सभी ग्‍वाल-बालों को शांत करते हुए कहा कि ठीक है मैं ही यमुना जी से गेंद को निकालकर लाउंगा । इस पर ग्‍वालबालों ने उन्‍हें बहुत मना किया; परंतु श्रीकृष्‍णजी तो कालिया का अंत करना चाहते थे । इसलिए वह यमुना नदी में कूद गए । सभी ग्‍वालबाल भयभीत हो गए । उन्‍हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्‍या करें ? कुछ ग्‍वालबाल रोने लगे । कुछ ग्‍वालबाल नंद भवन अर्थात कन्‍हैया के घर गए और उन्‍होंने माता यशोदा, नंद बाबा और गोप-गोपिकाओं को बताया कि कान्‍हा यमुनाजी में कूद गए हैं । यह सुनकर माता यशोदा, नंद बाबा और सारी गोप-गोपिकाएं कन्‍हैया की चिंता में यमुनाजी के तट पर भागे ।

इधर कन्‍हैया यमुना जी में कूदने के बाद सीधे कालिया के सामने पहुंचे । उन्‍होंने उसे यमुना नदी छोडकर अन्‍य स्‍थान से कहीं और जाने के लिए कहा परंतु कालिया सर्प नहीं माना, उसने भगवान श्रीकृष्‍ण को छोटा सा बालक समझा तथा उन पर वार करने को तैयार हो गया । तब कन्‍हैया ने अपने बल से कालिया के साथ युद्ध किया तथा उसको परास्‍त कर दिया । इसी को ही हम सब ‘कालिया मर्दन’ कहते है । हार जानेपर कालिया नाग श्रीकृष्‍ण जी की शरण में आया और उसने भगवान श्रीकृष्‍ण जी से क्षमा मांगी । भक्‍तवत्‍सल भगवान ने कालिया नाग को क्षमा कर दिया और कहा कि तुम यह स्‍थान छोडकर सागर के मध्‍य स्‍थित रमणीक द्वीप पर चले जाओ । वहां के राजा बनकर रहो । तब कालिया ने कहा, ‘हे प्रभु ! वहां तो आपका वाहन गरुड मुझे जीवित नहीं छोडेगा ।’ तब श्रीकृष्‍ण ने कहा, मैं तुम्‍हारे मस्‍तक पर अपने चरणों के चिन्‍ह बना दूंगा, जिससे वह तुम्‍हें नहीं मारेंगे तथा वह तुम्‍हारी अर्चना करेंगे ।’

कालिया नाग ने श्रीकृष्‍ण की बात मान ली । तब श्रीकृष्‍ण ने गेंद हाथ में ली तथा कालिया के मस्‍तक पर चढकर यमुना नदी के जल में ऊपर आ गए । उन्‍होंने कालिया के मस्‍तक पर नृत्‍य किया जिससे कालिया नाग के मस्‍तक पर उनके चरणों के चिन्‍ह बन गए ।

कालिया के मस्‍तक पर श्रीकृष्‍ण को सुरक्षित देखकर माता यशोदा, गोप-गोपिकाएं तथा ग्‍वाल बाल सभी प्रसन्‍न हो गए । श्रीकृष्‍ण बाहर आ गए । तब कालिया नाग वहां से सपरिवार रमणीक द्वीप की ओर चले गए ।

इस तरह श्रीकृष्‍ण की कृपा से यमुना जी कालिया नाग के विष से मुक्‍त हो गईं और सभी आनंदित हो गए ।

बच्‍चों, जब श्रीकृष्‍णजी यमुना जी को कालिया नाग के आतंक से इतनी छोटी आयु में ही मुक्‍त करा सकते हैं, तो वह हमारे सभी कष्टों को भी क्षण मात्र में दूर कर सकते हैं । अतः हमें उनकी शरण में जाना चाहिए ।