नाम का आश्रय !

बालमित्रो, आप जानते ही हैं कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्‍ण जी का जन्‍म मथुरा में हुआ था । मथुरा और मथुरा के आस पास के गांवों को बृज क्षेत्र कहा जाता है । उनमें से एक गांव का नाम वृंदावन है । जहां भगवान श्रीकृष्‍ण जी ने अपनी कई सारी लीलाएं की थीं । बृज में भगवान श्रीकृष्‍ण जी को माखन-मिश्री का भोग लगाया जाता है । एक समय यहां दूध-दही की नदियां बहती थीं ।
यह बहुत पहले की बात है । मथुरा नगरी में दूध, दही और माखन वृंदावन, गोकुल, महावन इत्‍यादि गांवों से आता था । वृंदावन और मथुरा के मध्‍य यमुना नदी बहती है । उस समय मथुरा वृंदावन आने जाने के लिए नाव का सहारा लिया जाता था । वृंदावन की एक गोपी प्रतिदिन दूध, दही और माखन बेचने मथुरा जाती थी । वह नाव के सहारे यमुना नदी पार करती थी । इसके लिए उसे नाविक को आने-जाने का शुल्‍क देना पडता था । एक दिन वृंदावन में एक कथा वाचक संत आए हुए थे । वह प्रतिदिन यमुना के तट पर कथा सुनाते थे । उनकी कथा सुनने के लिए वृंदावन के गोप-गोपी भी जाते थे । एक दिन दूध और दही बेचनेवाली गोपी भी उनकी कथा सुनने गई । वृंदावनवासी उनकी कथा का आनंद ले रहे थे । सभी भगवान की भक्‍ति में डूबे हुए थे । उस दिन वह संत कथा में भगवान के नाम का वर्णन कर रहे थे । सभी को नामजप करने के लिए कह रहे थे । कथा में संत ने कहा कि भगवान के नाम की बडी महिमा है, नाम से बडे बडे संकट भी टल जाते है । नामजप करने से मनुष्‍य भव सागर भी सरलता से पार कर जाता है । केवल भगवान का नाम ही है जो हमें भवसागर से पार कराता है । यदि भव सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत छोडना । भगवान के नाम में वह शक्‍ति है जो किसी और वस्‍तु में नहीं । संत जी ने कहा कि एक कहावत बहुत प्रचिलित है राम से बडा राम का नाम । इसी से हमको नाम की महिमा ध्‍यान में आती है । गोस्‍वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है कि ‘कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरहि पारा’ । कथा समाप्‍त हुई और गोपी अपने घर लौट आई । अगले दिन फिर वह दूध दही बेचने चली । बीच में यमुना जी थी । गोपी को संत की बात का स्‍मरण हुआ, संत ने कहा था भगवान का नाम तो भवसागर से पार लगाने वाला है । गोपी ने मन ही मन सोचा कि जिस भगवान का नाम भवसागर से पार लगा सकता है तो क्‍या उन्‍ही भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार नहीं लगा सकता ?

यह सोचकर गोपी ने मन में भगवान का नामजप करना प्रारंभ किया और नाम का आश्रय लेकर भोली भाली गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ गई । गोपी को संत की बात पर पूर्ण श्रद्धा थी । इसलिए नामजप करते हुए उसने जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो उसे लगा मानो वह भूमि पर ही चल रही है और इस प्रकार उसने नदी पर एक-एक पग बढाते हुए नदी पार कर ली । नदी के उस पार पहुंचकर गोपी बहुत प्रसन्‍न हुई, और मन में सोचने लगी कि संत ने तो ये बहुत अच्‍छा तरीका बताया और अब यमुना जी को पार करने के लिए प्रतिदिन नाविक को भी शुल्‍क नहीं देना पडेगा । इस प्रकार वह गोपी प्रतिदिन भगवान के नाम का आश्रय लेकर यमुना नदी को पैदल ही पार करने लगी । एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला किया है, तो मुझे उन्‍हें भोजन के लिए अपने घरपर बुलाना चाहिए । अगले दिन गोपी ने संत को भोजन करने के लिए घरपर चलने की विनती की । संत तैयार हो गए । अब बीच में फिर यमुना नदी आई । संत नाविक को बुलाने लगे तो गोपी बोली बाबा नाविक को क्‍यों बुला रहे हैं ? हम ऐसे ही यमुना जी में चलेगे । संत बोले – गोपी ! कैसी बात करती हो, यमुना जी को ऐसे ही कैसे पार करेंगे ? इससे तो हम यमुना जी में डूब जाएंगे ।

गोपी बोली – बाबा ! आप ने ही तो रास्‍ता बताया था, आपने कथा में कहा था कि भगवान के नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते हैं । तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते हैं तो यमुना जी से पार क्‍यों नहीं हो सकते ? और मैं ऐसा ही करने लगी, इसलिए मुझे अब नाव की आवश्‍यकता नहीं पडती । संत को उसकी बातों पर विश्‍वास नहीं हुआ और वह बोले – गोपी तुम ही पहले नदी पार करोे ! मैं तुम्‍हारे पीछे पीछे चलूंगा । गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार प्रतिदिन वह यमुनाजी को पार कर जाती थी, वैसे ही यमुना जी को पार कर गई । अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो वह झपाक से पानी में गिर गए, संत को बडा आश्‍चर्य हुआ । गोपी ने जब देखा कि संत पानी में गिर गए हैं तब गोपी वापस आई और संत का हाथ पकडकर यमुना जी में जब चली तो संत भी गोपी की भांति ही ऐसे चले जैसे भूमि पर चल रहे हों । नदी पार करने के उपरांत संत गोपी के चरणों में गिर पडे, और बोले – कि गोपी तू धन्‍य है ! वास्‍तव देखा जाए तो सही अर्थ में नाम का आश्रय तो तुमने लिया है और मैंने जिस नाम की महिमा बताई; उसी नाम का आश्रय मैने नहीं लिया ।

बालमित्रो इससे हमारे ध्‍यान में आता है कि जिस प्रकार गोपीने संत जी के द्वारा बताई नाम की महिमा पर श्रद्धा रख कर यमुना जी को पार कर गई । उसी प्रकार हमें भी भगवान के नाम पर गोपी के समान ही श्रद्धा रख इस भवसागर से पार उतरेंगे ना ?

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