लालच का दुष्‍परिणाम !

एक भिक्षुक बहुत गरीब था । वह दिनभर बहुत नामजप करता था । भगवान उसके द्वारा किए गए नामजप से प्रसन्‍न हो गए । एक दिन उसके सामने प्रकट हो गए और भगवान उस भिक्षुक से बोले, ‘मैं तुम्‍हारे द्वारा किए जानेवाले नामजप से बहुत प्रसन्‍न हूं । तुम्‍हें जो चाहिए, वह मांग लो ।’ भिक्षुक को लालच आ गया और उसने सोने की मुद्राएं मांग लीं । भगवान ने उससे पूछा, ‘‘सोने की मुद्राएं किस पात्र में लोगे ?’’ भिक्षुक ने अपनी झोली आगे फैला दी । भगवान ने झोली में सोने की मुद्राएं डालनेसे पहले कहा कि, जब तक तुम सोने की मुद्राएं मांगना बंद नहीं करोगे, तब तक मैं तुम्‍हारी झोली में मुद्राएं डालता रहूंगा; परन्‍तु मेरी एक शर्त है ये सोने की मुद्राएं भूमि पर नहीं गिरनी चाहिए । यदि भूमि पर गिरीं, तो ये मुद्राएं मिट्टी की बन जाएंगी ।’’ भिक्षुक ने भगवान की बात मान ली । भगवान भिक्षुक की झोली में सोने की मुद्राएं डालने लगे । झोली भरती ही जा रही थी और भिक्षुक का लालच भी बढता ही जा रहा था । भिक्षुक जानता था कि सोने की मुद्रओं  के भार से झोली अब कभी भी फट सकती है; परंतु लालच के कारण वह भिक्षुक ‘बस’ नहीं बोल पा रहा था । उसका मुद्राएं लेने का लालच और अधिक बढता ही जा रहा था और अंत में सोने की मुद्राओं का भार वह झोली नहीं सह पाई और फट गई । झोली के फटते ही सभी मुद्राएं भूमि पर गिर पडीं और मिट्टी की बन गईं । मन में लालच होने के कारण इतनी मुद्राएं मिलने के बाद भी भिक्षुक गरीब का गरीब ही रह गया ।

बच्‍चो, इस कहानी से आपके ध्‍यान में आ रहा है ना कि भिक्षुक से कहां चूक हुई ? यदि वह लालच न करते हुए संतुष्‍ट हो जाता तो उसे सोने की मुद्राएं मिल जाती । भगवान जितना दे रहे है, उसमें ही हमको संतुष्‍ट रहना चाहिए । लालच बहुत बुरी बला है। लालच करने से हमें कुछ नहीं मिलता । यदि आप सदा आनन्‍द़ित रहना चाहते हैं, तो ‘सन्‍तोष करना सीखिए ।’

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