महाबली हनुमान द्वारा भीम का गर्व-हरण

मित्रो यह कहानी महाभारत काल की है । हम जानते है कि महाभारत काल में राजा पांडु के पांच पुत्र थे युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव, इन पांचों भाईयों को पांडव कहते थे । पांडवों में भीम सबसे अधिक शक्‍तिशाली थे । उन्‍हें अपनी इस शक्‍ति का घमंड हो गया था । उन्‍हें लगता था कि पूरे संसार में उनके जैसा शक्‍तिशाली कोई नहीं है । इस कारण वे स्‍वयं को सभी श्रेष्‍ठ समझने लगे थे ।

उनके इस घमंड के कारण उनकी हानि हो रही थी । यह बात भगवान श्रीकृष्‍ण को पता थी । उनके घमंड को दूर करने के लिए भगवान ने एक बहुत अच्‍छी लीला की । एक दिन जब भीम जंगल से गुजर रहे थे । तब भीम का पैर किसी वस्‍तु से टकरा गया और भीम ने वह वस्‍तु क्‍या है, यह जानने का प्रयास किया तो उन्‍हें एक वानर की पूंछ दिखाई दी । उन्‍होंने उस पूंछ को पकडकर पीछे घूमकर देखा तो उन्‍हें एक पेड के नीचे बूढा वानर बैठा दिखाई दिया और उस वानर की पूंछ उनके आगे जाने के रास्‍ते पर पडी हुई थी ।

उस वानर को देखकर भीम घमंड से बोले, ‘ए वानर, मुझे आगे जाना है अपनी पूंछ मेरे मार्ग से हटाओ ।

वानर ने धीमे से गर्दन घुमाकर भीम की ओर देखा और बोला, ‘मैं बहुत बूढा हो गया हूं और बीमार भी हूं । मुझमें अपनी पूंछ उठाने जितनी भी शक्‍ति नहीं है । आप तो बहुत बलवान दिखाई देते हो । मैं आपसे विनती करता हूं, कृपया आप ही मेरी पूंछ मार्ग से हटा दो और अपना मार्ग बना लो ।’

यह सुनकर भीम को बहुत गुस्‍सा आया । वे फिर घमंड से बोले, ‘ए वानर मैं तेरी मैली पूंछ को हाथ नहीं लगाऊंगा जल्‍दी से अपनी पूंछ को मेरे मार्ग से हटा लो ।

वानर बोला, भैया मैं तो बहुत कमजोर हूं अपनी पूंछ नहीं हटा पाऊंगा कृपया तुम अपनी गदा से ही मेरी पूंछ हटा दो ।
यह सुनकर भीम बोले, यदि ‘मेरी गदा से तुम्‍हारी पूंछ टूट गई तो ?’

वानर हंसकर बोला, ‘और यदि मेरी पूंछ हटाते समय तुम्‍हारी गदा ही टूट जाए तो ?’

वानर की यह बात सुनकर भीम को बहुत गुस्‍सा आया और भीम आग बबूला हो उठे, उन्‍हें लगा कि वह वानर उनका मजाक उडा रहा है । घमंड के कारण भीम अपने गुस्‍से को काबू में न कर पाए और गुस्‍से में आकर गदा से ही पूंछ को हटाने का प्रयास करने लगे, किंतु पूंछ तो टस से मस नहीं हो रही थी । अब भीम ने क्‍या किया कि गदा वानर के पूंछ के नीचे लगाई और गदा से उसे हटाने का प्रयास किया फिर भी पूंछ थोडी सी भी नहीं हिली । भीम ने अपनी पूरी शक्‍ति लगाकर पूंछ हटाने का प्रयास किया । प्रयास करते करते भीम थक गए, परंतु पूंछ जरा सी भी नहीं हिली । पूछ उठाने के चक्‍कर में भीम की गदा ही अब उस वानर की पूंछ के नीचे अटक गई । पूछ उठाना तो दूर अब तो गदा को भी निकलना कठिन हो गया ।

भीम को अपनी इस गलती का अहसास हो गया । वह समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नहीं है क्‍योंकि अपनी पूरी ताकत लगाने पर भी मैं इनकी पूंछ नहीं हटा पा रहा हूं, भीम तुरंत ही उस वानर के सामने हाथ जोडकर उनके चरणों में पड गए और वानर से पूंछा, ‘महाशय, आप कोई साधारण वानर नहीं हैं । आप कौन हैं ? कृपया आप अपना परिचय दीजिए ।

वानर बोला, ‘मैं श्रीराम भक्‍त हनुमान हूं ।’ यह कहकर भीम के सामने हनुमानजी का विशाल रूप प्रकट हो गया । भीम ने हनुमानजी को प्रणाम किया और कहा, ‘‘क्षमा करें महाबली मैं आपको नहीं पहचान पाया, मुझे अपनी शक्‍ति पर गर्व हो गया था, आपने मेरा घमंड चूर-चूर कर दिया है । इसपर हनुमानजी ने भीम को क्षमा कर दिया और उन्‍हें आशीर्वाद दिया ।

मित्रो, इस कथा  से हमने क्‍या सिखा ? हमें अपनी किसी भी बात का कभी घमंड नहीं करना चाहिए । हमने कहावत सुनी है ना, गर्व का घर नीचे ।’ अपने आप पर घमंड करनेवाले भगवान को अच्‍छे नहीं लगते भीम को भी गर्व हो गया था । भगवान ने हनुमानजी को माध्‍यम बनाकर उनका गर्वहरण करना पडा । बालमित्रों आप ने अब यह जान लिया ना कि भगवान की शक्‍ति के सामने हमारी शक्‍ति कुछ भी नहीं है । हममें यदि कोई गुण है, तो वह भगवान की कृपा से ही है, ऐसा हमारा विचार होना चाहिए और भगवान के चरणों में सदैव कृतज्ञ रहना चाहिए । हमे कभी किसी से उद्दंडता से बात नहीं करनी चाहिए । सदैव नम्रता से बात करनी चाहिए ।

तो आजसे हम ऐसा ही विचार करेंगे कि मुझमें जो भी गुण है, वह भगवान की कृपा ही है, भगवान ने ही मुझ में गुण निर्माण किए है । यदि हम अपने अवगुणों को, दोषों को कम करने का प्रयास करेंगे तो भगवान हममें और भी बहुत सारे गुणों का निर्माण करेंगे !

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