सुसंस्कारों का महत्त्व !

१. सुसंस्कारित मन जीव को भटकने नहीं देता !

’सुसंस्कारित मन जीव को कहीं भी भटकने नहीं देता । इसीलिए बच्चों का मन सुसंस्कारित करना, यह बडों का, हिंदु धर्माचरण करनेवालों का, समाज का कर्तव्य है । ईश्‍वरद्वारा प्राप्त यह समष्टि सेवा है; परंतु समाज के यह ध्यान में नहीं आता और वह भटके हुए युवकों की भांति दूरदर्शन तथा दूरदर्शन की धारावाहिकों में बह गया है ।

२. कुसंस्कार होने का महत्त्वपूर्ण कारण है, सर्वत्र फैला भोगवाद

‘हमारे बचपन में हमें यह सब नहीं मिला । हमारा पूरा बचपन हमने बडों के नियंत्रण में रहकर मिटा दिया । अब मिल रहा है, तो लालची मनुष्य की भांति खाएंगे । मनानुसार ही करेंगे’, ऐसे विचार लोगों के मन में प्रबलता से होते हैं । ऐसा कुसंस्कारित मन आगे की पिढीपर कौन से संस्कार कर पाएगा ? इसीलिए आगे की, अर्थात वर्तमान पिढी पूर्णतः भटक गई है । ऐसे में प्रसारमाध्यम, सडकोंपर भी सहजता से दिखाई देनेवाले अयोग्य विज्ञापन, भ्रमणभाष, ई-मेल, फेसबूक ऐसे अनंत आधुनिक उपकरण सहजता से उपलब्ध होने से इसमें वृद्धि ही हुई है । इससे जो योग्य है, वह सिखने की अपेक्षा जो आवश्यक नहीं है, ऐसे मार्गपर नई पिढी बहती जा रही है । प्रत्येक सुसंस्कार हमें ईश्‍वर की ओर ले जाता है; परंतु कुसंस्कार असुरों के राज्य में ही ले जाता है और अराजकता भी निर्माण करता है । यही आज हमें सर्वत्र दिखाई दे रहा है ।

३. समाज को आज सुराज्य की आवश्यकता है !

समाज को आज चाहिए एक सुराज्य । इसमें होगा धर्माचरण । राष्ट्र, धर्म, ईश्‍वर का सम्मान करनेवाला आदरणीय समाज । वही इस युवा पिढी को सन्मार्ग दिखाएगा । इसीलिए सनातन संस्था और कुछ हिंदुत्ववादी संगठन सतत कार्यरत हैं । इसी के साथ चाहिए ईश्‍वर का अधिष्ठान । समर्थ रामदासजी ने कहा है, ‘‘सामर्थ्य है आंदोलन का । जो जो करेगा उसी का । परंतु वहां ईश्‍वर का । अधिष्ठान होना चाहिए ॥ यही सात्त्विक कार्य सनातन संस्था के संस्थापक परात्परगुरु प.पू. डॉ. जयंत बाळाजी आठवले कर रहे हैं । इसमें अनेक संत और साधक हाथ बंटा रहे हैं ।

४. आगे की पिढी सुसंस्कारित करने के लिए प्रयत्न करना, यही खरी सत्सेवा !

नागरिको, आदर्श राज्य आनेवाला ही है; परंतु इसके लिए आगे की पिढी सुसंस्कारित होनी चाहिए । इसलिए प्रत्येक को प्रयत्न करना आवश्यक है । जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने कानी उंगलीपर गोवर्धन पर्वत उठाया ही था; परंतु उसमें स्थूल से प्रत्येक गोप-गोपी लाठी लगाकर सहभागी हुए थे, वैसी ही स्थिति आज भी है । हमें भी वही कार्य कर केवल हाथ लगाने के लिए सज्ज होना है । ‘आइए चलें, आगे की पिढी सुसंस्कारित करने के लिए सिद्ध हो जाएंगे ! वही हमारी सत्सेवा है । यह ध्यान में रखेंगे ।’

– श्रीमती रजनी नगरकर, रामनाथी, गोवा.