बच्चोंमें राष्ट्र तथा धर्मके विषयमें अभिमान निर्माण करें !

वर्तमानस्थिति

वर्तमान में हम यदि बच्चों का अवलोकन करें तो ध्यान में आता है कि, बच्चों में राष्ट्र तथा धर्म के प्रति अभिमान का अत्यंत अभाव है । यदि यह  स्थिति ऐसी ही रहती है तो राष्ट्र का विनाश होने में समय नहीं लगेगा । अत: हमें बच्चों में राष्ट्राभिमान निर्माण करने हेतु प्रयास  करने ही होंगे ।

राष्ट्र के नागरिकों की समरूपता तथा संगठन से राष्ट्र का अखंडत्व बना रहता है । आज के विद्यार्थी ही कल के भारत के भावी नागरिक होते हैं । इसलिए विद्यार्थिंयों में बचपन से ही प्रखर राष्ट्राभिमान निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है । अन्यथा बडे होकर समाज के लिए अर्थात राष्ट्र के लिए त्याग करने की वृत्ति उनमें निर्माण नहीं हो सकती । अनेक पीढियों के उपरांत भी इस्राइल के संपूर्ण विश्व में फैले नागरिक एकत्रित आ पाए, उसके पीछे का कारण है उनकेद्वारा अपनी आगे की पीढियों में निर्माण किया हुआ प्रखर राष्ट्रवाद !

राष्ट्रके नागरिकोंमें एकता

तथा संघटित रहनेसे राष्ट्रकी अखंडता टिकती है । आजके विद्यार्थी ही भारतके भावी नागरिक हैं । अतः  विद्यार्थियोंमें बचपनसे ही प्रखर राष्ट्राभिमान निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है । अन्यथा, उनमें बडी आयुमें समाजके लिए अथवा राष्ट्रके लिए त्याग करनेकी वृत्ति निर्माण नहीं हो सकती । इजराइलमें अनेक पीढियोंसे विश्वभरमें बिखरे उसके नागरिक एकत्र आ सके, उसका मूल कारण उनकी पीढियोंमें निर्माण किया गया प्रखर राष्ट्रवाद ही था ।

बच्चोंको योग्य दृष्टिकोण देना (मानसिक/बौद्धिक स्तर)

‘इतिहास’ विषय राष्ट्रप्रेम निर्माण होनेके लिए सिखाना आवश्यक !

वैसे तो इतिहास विषय सीखकर बच्चोंमें राष्ट्राभिमान निर्माण होना चाहिए था; किंतु हमारी शिक्षापद्धति गुणाधिष्ठित है । परीक्षाओंका मूल्यमापन गुणोंके आधारपर किया जाता है । उसके लिए बच्चोंका ध्यान गुण बढानेकी ओर होता है । आजकल बच्चे सभी विषयोंकी भांति `इतिहास‘ विषय भी केवल गुण अर्जित करनेके लिए सीखते हैं, उदा. ‘भगतसिंह’ यह विषय दस गुणोंके लिए । इसके पीछेका बच्चोंका दृष्टिकोण हमें ही बदलना होगा । इतिहास गुणोंके लिए सीखते हुए उनमें राष्ट्रप्रेम भी निर्माण हो, इस उद्देश्यसे सिखना होगा तथा यही दृष्टिकोण पालकों तथा शिक्षकोंको बच्चोंको देना चाहिए । यदि भावी पीढी राष्ट्रप्रेमी नहीं हुई, तो राष्ट्रका, परिणामस्वरूप हमारा विनाश अटल है । `राष्ट्र रहा, तभी समाज रहेगा, समाज रहा, तो ही मैं रहूंगा, यह  दृष्टिकोण पालकों तथा शिक्षकोंको बच्चोंमें दृढ करना होगा ।

इतिहासके छोटे-छोटे उदाहरण देकर बच्चोंमें राष्ट्रप्रेम निर्माण करें !

इतिहासकी घटनाओंको पढानेसे बच्चोंमें राष्ट्रप्रेम निर्माण होता है क्या, यह देखना चाहिए । इसके लिए बच्चोंको प्रतिप्रश्न करना चाहिए । उदा.`देशकी स्वतंत्रताके लिए अनेकोंने प्राणोंकी आहुति दी, तो स्वतंत्रताके दिन मार्गपर ध्वज पडा हुआ देखकर तुम्हें कैसा लगेगा ?’, ऐसे आचरणसंबंधी प्रश्न बच्चोंको करें । `ध्वजका होनेवाला अपमान रोकना चाहिए’, यह भाव हमें बच्चोंमें जागृत करना चाहिए । राष्ट्रप्रेम निर्माण करनेवाले चित्रपट हमें बच्चोंको दिखाने चाहिए । राष्ट्रके लिए बलिदान देनेवालोंके विषय में कृतज्ञताका भाव निर्माण करें  ! स्वतंत्रताके लिए संपूर्ण जीवन प्राणोंपर उदार होकर जीनेवाले, बंदिवासमें असीम कष्ट भोगनेवाले स्वतंत्रतासेनानी तथा क्रांतिकारी, इसी प्रकार आज भी देशकी सीमाओंकी रक्षा करनेके लिए पूरा जीवन दांवपर लगानेवाले सैनिकोंके विषयमें बच्चोंके मनमें आदर एवं कृतज्ञताका भाव निर्माण करना आवश्यक है ।

राष्ट्रके लिए त्याग करनेकी सिद्धता धार्मिक अधिष्ठानसे ही हो सकती है !

व्यक्तिगत सुखकी अपेक्षा राष्ट्रके लिए त्याग करना, यह अधिक योग्य बात है, यह संकल्पना बच्चोंके मनमें दृढ करना परम आवश्यक है । `त्याग‘ होनेके लिए केवल राष्ट्रप्रेम ही पर्याप्त नहीं है, उसमें स्वार्थ तथा अहंकार बढ सकते हैं । परंतु धर्मका अधिष्ठान हो, तो निःस्वार्थता तथा त्यागकी भावना निर्माण हो सकती है । अतएव सच्चा राष्ट्रप्रेम निर्माण होनेके लिए धर्मका अधिष्ठान होना आवश्यक है ।