नैतिकता का -हास करनेवाली आधुनिक शिक्षाप्रणाली !

‘जीजाबाई अशिक्षित थी; परन्तु तब भी उन्होंने शिवाजी महाराज को बाल्यावस्था में अच्छे संस्कार दिए । क्या आज की उच्चशिक्षित, उच्चपदस्थ, उच्चभ्रू महिला ने शिवाजी के समान एक भी पुत्र दिया है ? इस कथा में जो दादी है उनकी आयु है ८५ वर्ष ! दादी की दृष्टि अभी तक उत्तम है । श्रवण क्षमता भी उत्तम है । दांत भी इतने दृढ हैं कि गन्ना भी तोड सकेगी ! शरीर भी सुदृढ है । वह  घर का सब काम करती हैं और भोजन भी बनाती है । उनका बीस वर्ष का पोता उनका उपहास करने के लिए उनसे पूछता है, दादी, पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा क्यों करती है ?

दादी : क्योंकि सूर्य नए सिक्के के समान चमकता है इसलिए सारा विश्व रुपयों की परिक्रमा करता है न ? पृथ्वी का क्या अपराध ?

पोता : अरे वा ! दादी, आप तो बहुत पढी-लिखी हो ।

दादी : नहीं ! नहीं ! ऐसा मत कहो । क्या मैंने कुछ अयोग्य कहा ?

पोता : दादी, आपने जो भी कुछ कहा वह सत्य है, इसलिए तो मैं पूछ रहा हूं ।

दादी : सत्यकथन करने के लिए पढाई-लिखाई की कोई आवश्यकता  नहीं होती । वास्तव में लोग सीखते हैं, झूठ बोलने के लिए ही ! पत्रकार, शिक्षक, डॉक्टर, व्यापारी आदि सब लोग  विदेश में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के  लिए जाते हैं ताकि  अपनी विद्या से लोगों को कैंसे फंसाकर अधिक धन लूटा जाए ! वहां झूठ बोलना पडता है । भारतीय शिक्षा से उतनी मात्रा में लोगों को फंसाया नहीं जा सकता । विदेशी शिक्षाप्रणाली से मनुष्य झूठ बोलने में  कुशलता प्राप्त करता  है । (गम्भीर वाणी से) सत्य बोलने के लिए विद्यार्जन करना अनिवार्य नहीं होता । अपराधी व्यक्ति को …. हत्या का  अपराध छुपाने के लिए झूठ बोलना पडता है । वैद्य को रोगी से धन लूटने के लिए झूठ बोलना पडता है । व्यापारी को अपना माल लोगों के गले उतारने के लिए झूठ बोलना पडता है । धनवान पिता के पुत्र से पैसा लूटने के लिए शिक्षक को झूठ बोलना पडता है । यदि सत्य बोलना हो, तो मनुष्य के शिक्षित होने की कोई आवश्यकता  नहीं है ! सत्य बोलनेवाले के पास केवल हृदय अर्थात नैतिकता होनी आवश्यक है और यही वर्तमान शिक्षाप्रणाली नहीं दे रही !’

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिन्तन)

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