गोवर्धन पर्वत

भगवान श्रीकृष्ण को सब जानते हैं ना ? वे गोकुल में रहते थे । वहां गोवर्धन नाम का एक बडा पर्वत था । गोकुल में श्रीकृष्ण के साथ सारे गोप-गोपी आनंद से रहते थे । हर वर्ष अच्छी बारिश हो, इस हेतु वे इंद्रभगवान की पूजा करते थे । एक बार इंद्र को अहंकार हुआ कि मैं अच्छी बारिश गिराता हूं इसलिए सब अच्छा चल रहा है । श्रीकृष्ण यह बात जान गए । क्योंकि श्रीकृष्ण को  `हर एक के मन में क्या चल रहा है’,वह सब समझ में आता है । श्रीकृष्ण ने गोपगोपियों से कहा, “अरे, इस गोवर्धन पर्वत के कारण ही हमें वर्षा प्राप्त होती है । अत: हम इंद्र की नहीं, गोवर्धन पर्वत की पूजा करेंगे । तब से सभी गोपगोपी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे ।

यह देखकर इंद्र को क्रोध आया । उन्होंने तीव्र गति से मेह बरसाना प्रारंभ किया । नदी का पानी चढने लगा । सारे लोग घबराकर श्रीकृष्ण के पास गए । श्रीकृष्ण ने कहा, “अरे, तुमने जिस पर्वत की पूजा की, वही हमें बचाएगा ! हम सब संगठित होते हैं । ” गोपगोपी अपनी अपनी लाठी लेकर आएं । पता है, तब श्रीकृष्ण ने क्या किया ? गोवर्धन पर्वत को अपने एक हाथ की  करांगुलीपर उठाया । जोर की एक आवाज हुई । तब गोपगोपियों ने भी उस पर्वत के नीचे अपनी अपनी लाठी लगाई । सभी को उस पर्वत के नीचे आश्रय मिला । इधर इंद्र के बादल भी समाप्त हो गए ।

इस प्रकार श्रीकृष्ण ने तीव्र बारिश से सभी गोपगोपियों की रक्षा की । गोपगोपियोंद्वारा लाठियां लगाकर उनके कार्य में सहायता करने से श्रीकृष्ण उनपर प्रसन्न हुए । सेवा करने से गोपगोपी मोक्ष प्राप्त कर गए ।

बच्चो,`घमंडी का सिर नीचा’, यह कहावत तुम्हें पता होगी । यदि हम कक्षा में सबसे कुशाग्र बुदि्ध के हैं, तो हमें उसका अहंकार हो जाता है तथा हम दूसरों को तुच्छ मानने लगते हैं; किंतु ईश्वर ने हर एकमें कोई ना कोई गुण दिए हैं । कोई पढाई में कुशाग्र, कोई चित्रकला में, कोई संगीत में प्रवीण रहता है,कोई मिलनसार, तो कोई दूसरों की मदद करता है । अत: किसी को भी तुच्छ दृष्टि से न देखें ।

         बच्चो, इससे हम क्या सीख ले सकते हैं ? भगवान की भक्ति करते हुए हम सबको भगवान के कार्य में हाथ बंटाना चाहिए । तभी अपने जन्म सार्थक होंगे तथा हमें मोक्ष प्राप्त होगा ।