विश्व को सुधारना असंभव होने के कारण स्वयं को सुधारना आवश्यक !

बहुत पहले एक राजा की पुत्री के पांव में कांटा चुभा । साधारणतः राजाएं कुछ प्रमाण में सनकी होते हैं । राजाने प्रधान को पूरी जमीनपर चमडा बिछाने के लिए कहा, जिससे राजकुमारी को कांटा न चुभे । प्रधान सोच में डूब गया कि, इतना चमडा लाएंगे कहां से ? उसने सुंदर चमडे के जूते बनवाकर राजकुमारी को दिए ।

सारांश : जग में कांटे हैं; परंतु जिसके पांव में जूते हैं, उसे कांटे नहीं चुभते; इसीलिए हमें स्वयं को सुधारना चाहिए; क्योंकि हम संपूर्ण विश्व को सुधार नहीं सकते ।

– डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (इ.स. १९९०)