रणरागिनी महारानी दुर्गावती

गोंडवाना को स्वतंत्र करने हेतु जिसने प्राणांतिक युद्धकिया और जिसके रुधिर की प्रत्येक बूंद में गोंडवाना के स्वतंत्रता की लालसा थी, वह रणरागिनी थी महारानी दुर्गावती । उनका इतिहास हमें नित्य प्रेरणादायी है । रानी दुर्गावती का जन्म १० जून, १५२५ को तथा हिंदु कालगणनानुसार आषाढ शुक्ल द्वितीया को चंदेल राजा कीर्ति सिंह तथा रानी कमलावती के गर्भ से हुआ । वे बाल्यावस्था से ही शूर, बुद्धिमान और साहसी थीं । उन्होंने युद्धकला का प्रशिक्षण भी उसी समय लिया । प्रचाप (बंदूक) भाला, तलवार और धनुष-बाण चलाने में वह प्रवीण थी। गोंड राज्य के शिल्पकार राजा संग्रामसिंह बहुत शूर तथा पराक्रमी थे । उनके सुपुत्र वीरदलपति सिंह का विवाह रानी दुर्गावती के साथ वर्ष १५४२ में हुआ । वर्ष १५४१ में राजा संग्राम सिंह का निधन होने से राज्य का कार्यकाज वीरदलपति सिंह ही देखते थे । उन दोनों का वैवाहिक जीवन ७-८ वर्ष अच्छे से चल रहा था । इसी कालावधि में उन्हें वीरनारायण सिंह नामक एक सुपुत्र भी हुआ । परंतु एकाएक वर्ष १५५० में वीरदलपति सिंह का निधन हो गया ।

राजा दलपतिसिंह के निधन के उपरांत कुछ शत्रुओं की कुदृष्टि इस समृद्धशाली राज्यपर पडी । मालवा का मांडलिक राजा बाजबहादुरने विचार किया, हम एक दिन में गोंडवाना अपने अधिकार में लेंगे । उसने बडी आशा से गोंडवानापर आक्रमण किया; परंतु रानीने उसे पराजित किया । उसका कारण था रानी का संगठन चातुर्य । रानी दुर्गावतीद्वारा बाजबहादुर जैसे शक्तिशाली राजा को युद्ध में हराने से उसकी कीर्ति सर्वदूर फ़ैल गई । सम्राट अकबर के कानोंतक जब पहुंची तो वह चकित हो गया । रानी का साहस और पराक्रम देखकर उसके प्रति आदर व्यक्त करने के लिए अपनी राजसभा के (दरबार) विद्वान `गोमहापात्र’ तथा `नरहरिमहापात्र’को रानी की राजसभा में भेज दिया । रानीने भी उन्हें आदर तथा पुरस्कार देकर सम्मानित कया । इससे अकबरने सन् १५४० में वीरनारायणसिंह को राज्य का शासक मानकर स्वीकार किया । इस प्रकार से शक्तिशाली राज्य से मित्रता बढने लगी । रानी तलवार की अपेक्षा बंदूक का प्रयोग अधिक करती थी । बंदूक से लक्ष साधने में वह अधिक दक्ष थी । ‘एक गोली एक बली’, ऐसी उनकी आखेट की पद्धति थी । रानी दुर्गावती राज्यकार्य संभालने में बहुत चतुर, पराक्रमी और दूरदर्शी थी ।

अकबरने वर्ष १५६३ में आसफ खान नामक बलाढ्य सेनानी को (सरदार) गोंडवानापर आक्रमण करने भेज दिया । यह समाचार मिलते ही रानीने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी । सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतोंद्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जाने की सूचनाएं भेज दीं । अपनी सेना की कुछ टुकडियों को घने जंगल में छिपा रखा और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पडी । रानीने सैनिकों को मार्गदर्शन किया । एक पर्वत की तलहटीपर आसफ खान और रानी दुर्गावती का सामना हुआ । बडे आवेश से युद्ध हुआ । मुगल सेना विशाल थी । उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे । इस कारण रानी के सैनिक मरने लगे; परंतु इतने में जंगल में छिपी सेनाने अचानक धनुष-बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा की । इससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावतीने आसफ खान को पराजित किया । आसफ खानने एक वर्ष की अवधिमें ३ बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ ।

अंतमें वर्ष १५६४ में आसफखानने सिंगारगढपर घेरा डाला; परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुई । यह समाचार पाते ही आसफखानने रानीका पीछा किया । पुनः युद्ध आरंभ हो गया । दोनो ओरसे सैनिकोंको भारी क्षति पहुंची । रानी प्राणोंपर खेलकर युद्ध कर रही थीं । इतनेमें रानीके पुत्र वीरनारायण सिंहके अत्यंत घायल होनेका समाचार सुनकर सेनामें भगदड मच गई । सैनिक भागने लगे । रानीके पास केवल ३०० सैनिक थे । उन्हीं सैनिकोंके साथ रानी स्वयं घायल होनेपर भी आसफखानसे शौर्यसे लड रही थी । उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकोंने उसे सुरक्षित स्थानपर चलनेकी विनती की; परंतु रानीने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्धमें मुझे विजय अथवा मृत्युमें से एक चाहिए ।” अंतमें घायल तथा थकी हुई अवस्थामें उसने एक सैनिकको पास बुलाकर कहा, “अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है; परंतु हमारे शरीरका नख भी शत्रुके हाथ न लगे, यही हमारी अंतिम इच्छा है । इसलिए आप भालेसे हमें मार दीजिए । हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए”; परंतु सैनिक वह साहस न कर सका, तो रानीने स्वयं ही अपनी तलवार गलेपर चला ली ।

वह दिन था २४ जून १५६४ का, इस प्रकार युद्ध भूमिपर गोंडवाना के लिए अर्थात् अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षणतक वह झूझती रही । गोंडवानापर वर्ष १४९ से १५६४ अर्थात् १५ वर्ष तक रानी दुर्गावती का अधिराज्य था, जो मुगलोंने नष्ट किया । इस प्रकार महान पराक्रमी रानी दुर्गावती का अंत हुआ । इस महान वीरांगना को हमारा शतशः प्रणाम ।

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