साधना से संचित और इच्छा का भी नाश होता है

विद्यारण्य स्वामीजी की आर्थिक परिस्थिति विकट (खराब) थी; इसलिए धनप्राप्ति के लिए उन्होंने गायत्री मंत्र  २४ पुनश्चरण किये; परंतु धनप्राप्ति नहीं हुई । तब थककर उन्होंने संन्यास लिया और उन्हें गायत्री माता के दर्शन हुए । देवीने कहा,‘‘मैं तुझपर प्रसन्न हूं । क्या चाहिए वह मांग लेना ।’’ स्वामीजीने कहा,‘‘अब मुझे कुछ भी मांगने की इच्छा नहीं हैं । इच्छा थी, तब आप प्रसन्न नहीं हुई । ऐसे क्यों हुआ ? अब जब आप मुझे वरदान देने आयी हैं तो मुझे कुछ नहीं चाहिए ।’’ देवीने कहा,‘‘ तपश्चर्या से तुम्हारे कितने पूर्वजन्मों के पाप जल गये हैं, पीछे मुडकर देखो । पीछे मुडकर देखनेपर उन्हें चौबीस पर्वत जलते हुए दिखाई दिए । ये चौबीस पर्वत जो जल रहे हैं, वे तुम्हारे पाप थे । वह जलकर नष्ट हो गए हैं । तुम्हारे पापों का क्षय होनेपर मैं तुरंत आ गयी ।’’

– डॉ. वसंत बालाजी आठवले (खिस्ताब्द १९९०)