बच्चो, ‘त्याग’ हमारी संस्कृति है !

अपने पीछे पडे भूखे गिद्ध से प्राण बचाने के लिए एक कपोत (कबूतर) शिबी राजा की शरण में आया । उस कपोत के प्राण बचाने के लिए गिद्ध को स्वयं की जांघ का मांस काटकर देने से शिबी राजा अमर हो गए । राक्षसों के नाश के लिए आवश्यक शस्त्र बनाने के लिए देवताओं को अपनी हड्डियां देकर दधीचि ऋषि विश्व के लिए वंदनीय बन गए । इन महान व्यक्तियों के समान ही सृष्टि का प्रत्येक घटक त्याग करता है । सभी प्राणिमात्र और वनस्पतियों को प्रकाश तथा जीवन देने के लिए सूर्यदेवता सदैव कार्यरत रहते हैं । नदी सभी को पानी देते हुए बहती है; इसलिए लोग उसे पवित्र मानते हैं । इसके विपरीत, कुंए का पानी बहता नहीं तथा सूख जाता है । संग्रह करने से मनुष्य संकीर्ण वृत्ति का हो जाता है और त्याग करने से वृत्ति उदार बनती है । इसलिए ‘त्याग में ही खरा आनंद है’, यह ध्यान में रखें!

आइए, त्याग की सीख देनेवाली महान हिंदु संस्कृति, पराक्रमीराजा तथा तपस्वी ऋषि-मुनियों के चरणों में हम शीश झुकाएं !

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