हिन्दू संस्कृति के अनुसार वस्त्र परिधान करें !

मित्रो, आइए, हिन्दू संस्कृति के अनुसार वस्त्र परिधान कर पूरे विश्‍व को हिन्दू संस्कृति से परिचित कराएं !

विद्यार्थी मित्रो, हमारी हिन्दू संस्कृति में बताए गए प्रत्येक कृत्य के पीछे शास्त्र है; परंतु किसी ने भी इन कृत्यों के पीछे क्या शास्त्र है, इसका उद्बोधन नहीं किया, परिणामस्वरूप हमने हिन्दू संस्कृतिनुसार आचरण करना छोड दिया है । कुछ कृत्य हम आंखें मूंदकर इसलिए स्वीकारते हैं कि समय में परिवर्तन हुआ है । मित्रो, कपडों को ही देखिए न ! हम फैशन और परिवर्तन के नामपर हमारी संस्कृति के सात्त्विक वस्त्र पहनना भूल गए है । फलस्वरूप कितने अनिष्ट हो रहे हैं, यह हम देखेंगे ।

१. किसी भी परिस्थिति में अपने संस्कृति की वेशभूषा में परिवर्तन लाना उचित नहीं !

कुछ लोग बताते है कि, वर्तमान जीवन भागदौड से भरा हुआ है । हमारी जीवनप्रणाली में परिवर्तन आया है । इसलिए हमें हमारे कपडों में परिवर्तन लाना पडता है । इन सभी को बताने की इच्छा होती है कि, झांसी की रानी अथवा छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके मावलों ने (सैनिकोंने) इतना पराक्रम किया, परंतु यह करते समय उन्हें उनके वस्त्र कभी आडे नहीं आए ! अर्थात किसी भी परिस्थिति में हमें हमारे संस्कृति के वस्त्र बदलने की आवश्यक्ता नहीं ! अपनी संस्कृति का हमें अभिमान लगना चाहिए । हमें ही अपनी संस्कृति अपने प्राणों से भी बढकर संजोनी चाहिए । हमें ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए कि हम अपनी हिन्दू संस्कृति की रक्षा करेंगे, तो हमारी भी रक्षा होगी ।

२. किसी व्यक्ति की पहचान उसकी वेशभूषा से होती है, इसलिए आइए, हम हिन्दू संस्कृति के अनुसार प्रतिदिन सात्त्विक वेशभूषा करने का निश्‍चय करें !

मित्रो, वेषांतर अर्थात धर्मांतर ! हिन्दूओं का प्रत्येक कृत्य देवताओं का चैतन्य और शक्ति प्राप्त करने का माध्यम होता है । मित्रो, परिवर्तन के नामपर यदि आज हम देवताओं से चैतन्य प्राप्त करने का यह माध्यम ही नष्ट करते है, तो हमारा सर्वनाश अटल है । आज किसी संस्कृति की पहचान उस व्यक्ति के वेशभूषा से ही होती है । इसलिए आइए, हम प्रतिदिन हमारे संस्कृति के अनुसार सात्त्विक वेशभूषा करने का निश्‍चय करें । ऐसा निश्‍चय करेंगे कि मैं त्यौहार के दिन अपनी संस्कृति के अनुसार सात्त्विक वेशभूषा ही धारण करूंगा और मेरे मित्रों को भी वैसा करने के लिए बताऊंगा ।

३. कौनसी है सात्त्विक वेशभूषा ?

३ अ. पुरुषों के लिए सात्त्विक वेशभूषा : पुरुष कुर्ता-पैजामा अथवा धोती-कुर्ता, ऐसी वेशभूषा करें ।

आ. लडकियों के लिए सात्त्विक वेशभूषा : लडकियां घागरा-चोली, पंजाबी वेशभूषा तथा स्त्रियां नौ गजकी अथवा छः गजकी साडी पहनें ।

४. सात्त्विक वेशभूषा का महत्त्व किसी के भी द्वारा बताया न जाने से हिंदुओं का पाश्चात्त्य पद्धति के वेशभूषा की ओर आकर्षित होना

आधुनिकता के खोखले विचारों से प्रभावित होकर हम हमारी सात्त्विक वेशभूषा की उपेक्षा कर पाश्चात्त्यों की सतही और असात्त्विक वेशभूषा धारण करने लगे हैं । मित्रो, हमारी संस्कृति ने ऐसा व्यापक विचार किया है कि महिलाओं और पुरुषों को इस सात्त्विक वेशभूषा द्वारा देवताओं की शक्ति और चैतन्य मिलता है । परंतु दुर्भाग्य से हमें किसी ने इसका महत्त्व नहीं समझाया । इसलिए हम सात्त्विक वेशभूषा को छोड पाश्चात्त्य पद्धति की वेशभूषा की ओर आकृष्ट हुए हैं ।

५. हमारी महान हिन्दू संस्कृति की वेशभूषा से दूर जाने के कारण

५ अ. अंग्रेजी माध्यमों की पाठशालाएं : इन पाठशालाओं में बच्चों को यह बताया जाता है कि लडके सदरा-पैजामा और लडकियां घागरा-चोली न परिधान करें और कुमकुम अथवा कंगन भी न पहनें । इन सात्त्विक वेशभूषाओं के प्रति बच्चों के मन में अनुचित धारणा और अनादर उत्पन्न किया जाता है । हमारे हिन्दू बच्चे अब शर्ट, पैंट और टाई जैसी वेशभूषा अपनाने लगे हैं । मित्रो, यह ध्यान रखें कि अपनी वेशभूषा न धारण करने का अर्थ है अपनी संस्कृति से दूर जाना ।

५ आ. चलचित्र और धारावाहिक : चलचित्र और धारावाहिकों में पात्रों को सतत विदेशी वेशभूषाओं में दर्शाया जाता है । इससे हमें अपनी संस्कृति की वेशभूषा के प्रति अनादर उत्पन्न होता है । मित्रो, ऐसे चलचित्र और धारावाहिकाओं की चपेट में आकर अपनी महान संस्कृति को मत भूलें ।

५ इ. विचित्र रंग और चित्रवाले वस्त्र पहनना : हमारी संस्कृति के नुसार नीला, गुलाबी, पीला और श्‍वेत जैसे रंगोंद्वारा वातावरण का चैतन्य अधिक मात्रा में ग्रहण किया जा सकता है । विचित्र रंगों के कपडे पहनने से मन की चंचलता बढती है ।

५ ई. देवताओं के चित्रयुक्त वस्त्र न पहनें ! : मित्रो, देवताओं का स्थान पूजाघर में होता हैं । देवताओं के चित्रयुक्त वस्त्र पहनने से देवताओं का अपमान होता है । इसलिए बच्चो, बाल गणेश, छोटा भीम जैसे चित्रवाले वस्त्र न खरीदें ।

५ उ. स्त्री-पुरुष समानता के नामपर लडकियोंद्वारा पुरुषों जैसी वेशभूषा करना : स्त्री और पुरुष यह दो भिन्न प्रकृति ईश्‍वरद्वारा ही निर्मित है । इसलिए लडकियोंद्वारा पुरुषों जैसी वेशभूषा कर समानता लाना; यह संस्कृति नहीं, अपितु विकृति है । इसलिए बहनों, समानता के नामपर पुरुषों जैसी वेशभूषा न अपनाएं ।

५ ऊ. स्वतंत्रता के नामपर अल्प वस्त्र परिधान करना : मित्रो, वस्त्र एक अलंकार है । वह कैसा होना चाहिए, कैसे उपयोग में लाना चाहिए, यह हमारी संस्कृतिद्वारा निश्‍चित किया गया है । आज स्वतंत्रता के नामपर लडकियां अल्प वस्त्रों में रहती हैं, जिससे अन्यों के मनमें विकृत विचार आते हैं । प्रत्येक महिला और पुरुष यदि हिन्दू संस्कृति के नुसार वस्त्र पहनेंगे, तो उन्हें आनंद तो मिलेगा ही और इसके साथ अन्यों को भी आनंद मिलेगा ।

६. काल्पनिक चलचित्र और धारावाहिकों के आदर्श रखने की अपेक्षा ​वास्तविक जीवन में घटे इतिहास का आदर्श रखेंगे !

मित्रो, आज मालिकाओं में जो पात्र दिखाए जाते हैं, उनका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं होता । इनकी अपेक्षा झांसी की रानी, जिजाबाई (छ. शिवाजी महाराजकी माता) और अहिल्याबाई होलकर आदि महिलाओं का आदर्श सामने रखें ।

विद्यार्थी मित्रो, हिन्दू संस्कृति नुसार आचरण करना हिन्दू संस्कृति की पहचान और उसका प्राण है । उसका पालन करना, प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है । बच्चो, आइए, वस्त्रों के माध्यम से हम में विकसित हुई इस अंग्रजों की मानसिक दास्यता को नष्ट करें और आज से हिन्दू संस्कृति के नुसार वेशभूषा करने का निश्‍चय करें ।

– श्री. राजेंद्र पाकसकर (गुरुजी), पनकेल.

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