भस्‍मासुर का अंत !

प्राचीन काल में भस्‍मासुर नाम का एक राक्षस था । उसको पूरे विश्‍व पर राज करना था । अपनी यह मनोकामना पूर्ण होने हेतु उसने भगवान शिवजी की कठोर तपस्‍या की । उसकी अनेक वर्षों की दिन-रात की कठोर तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर भगवान भोलेनाथ भस्‍मासुर के सामने प्रकट हो गए ।

भगवान शिवजी ने उससे कहा, ‘मैं तुम्‍हारी कठोर तपश्‍चर्या से प्रसन्‍न हो गया हूं । तुम्‍हे जो वरदान चाहिए वह मांग लो ।’ तब भस्‍मासुर ने शिवजी से अमर होने का वरदान मांगा । अमर होने का वरदान देना यह सृष्टि के नियमों के विरुद्ध होने के कारण शंकर भगवान ने उसकी यह मांग नकार दी । तब भस्‍मासुर ने शिवजी से एक ऐसा वरदान मांगा जो अत्‍यंत घातक था । भस्‍मासुर ने भगवान शिवजी से कहा, ‘हे भगवान, आप मुझे कृपया यह वरदान दे कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूं वह तुरंत भस्‍म हो जाए । भगवान शिवजी तो भोलेनाथ हैं । उन्‍होंने भस्‍मासुर के इस वरदान के परिणाम का विचार नहीं किया तथा उस राक्षस को तथास्‍तु कहकर वरदान दे दिया ।

जैसे ही भस्‍मासुर को यह वरदान मिला, उसने शिवजी से कहा कि इस वरदान की सत्‍यता जानने के लिए मैं इसका प्रयोग सबसे पहले आप पर ही करूंगा और वह भगवान शिवजी को ही भस्‍म करने के लिए उनके पीछे दौड पडा । अब भगवान शिवजी को इस घातक वरदान के परिणाम का भान हुआ; परंतु वह तो वरदान दे चुके थे । इसलिए उसे वापस भी नहीं ले सकते थे । भगवान शिवजी जानते थे कि भगवान विष्‍णुजी ही इस समस्‍या को हल कर सकते हैं । भगवान शिवजी भगवान विष्‍णुजी से मिलने वैकुंठ पहुंचे । उन्‍होंने भगवान नारायण को भस्‍मासुर को वरदान देने की बात बताई । उन्‍होंने कहा, ‘मैंने भस्‍मासुर को वरदान दिया है; परंतु वह उस वरदान का गलत उपयोग कर रहा है । वह मुझे ही भस्‍म करने के लिए मेरे पीछे पडा हुआ है । अब आपको ही उसका वध करना होगा । तब भगवान विष्‍णुजी ने भस्‍मासुर का अंत करने के लिए मोहिनी नामक सुंदर स्‍त्री का रूप धारण किया ।

इधर भस्‍मासुर भटक-भटक कर शिवजी को भस्‍म करने के लिए ढूंढ रहा था । उसी समय अत्‍यंत सुंदर रूप धारण कर भगवान विष्‍णुजी मोहिनी बनकर उसके सामने प्रकट हो गए । मोहिनी अपने नाम के अनुरूप ही अत्‍यंत मोहक और सुंदर थी । उसकी सुंदरता से मुग्‍ध होकर भस्‍मासुर उसे देखता ही रह गया । भस्‍मासुर यह भूल गया की वह भगवान शिवजी को भस्‍म करने के लिए ढूंढ रहा था । मोहिनी के रूप से मंत्रमुग्‍ध हुए भस्‍मासुर ने उसके समक्ष विवाह का प्रस्‍ताव रख दिया । मोहिनी ने भस्‍मासुर की ओर हंसकर देखा और उससे कहा की वह सिर्फ उसी युवक से विवाह करेगी जो उसके समान ही नृत्‍य में प्रवीण हो ।
अब भस्‍मासुर को तो नृत्‍य आता नहीं था । भस्‍मासुर विचार में पड गया क्‍योंकि उसे तो किसी भी प्रकार से मोहिनी से विवाह करना ही था । उसने मोहिनी से कहा, ‘हे सुंदरी, मुझे आपसे विवाह करना है । मुझे नृत्‍य नहीं आता, परंतु आप मुझे नृत्‍य सिखाइए । मैं आपसे नृत्‍य सीखकर आपके साथ विवाह कर लूंगा ।

मोहिनी का रूप धारण किए हुए भगवान विष्‍णु तुरंत भस्‍मासुर को नृत्‍य सिखाने को तैयार हो गयी । उसने भस्‍मासुर को नृत्‍य सिखाना आरंभ कर दिया । भस्‍मासुर अपनी सुध-बुध भूलकर मोहिनी को अपेक्षिते नृत्‍य करने का प्रयास कर रहा था । भस्‍मासुर को मोहित होकर नृत्‍य करते देख मोहिनी रूपी श्री विष्‍णुजी ने नृत्‍य करते करते अपना हाथ अपने सिर पर रख दिया । उनके पीछे-पीछे भस्‍मासुरने भी अपना हाथ स्‍वयं के सिर पर रख दिया । बच्‍चो भस्‍मासुर मोहिनी के रूप से मोहित होकर भगवान शिवजी का वरदान भूल गया, परंतु उस वरदान का परिणाम तो होना ही था । जैसे ही भस्‍मासुर ने अपना हाथ स्‍वयं के सिर पर रखा, वह उसी स्‍थान पर भस्‍म हो गया । इस प्रकार श्री विष्‍णु भगवान ने भस्‍मासुर का अंत कर दिया और भगवान शिवजी का वरदान भी पूरा हो गया ।

बच्‍चो बुराई का अंत चतुराई से कैसे कर सकते हैं, यह इस कथा से आपके ध्‍यान में आया न ?

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