महिषासुरमर्दिनी दुर्गादेवी

नवरात्रि के प्रथम दिन दुर्गा अथवा महाकाली देवी की घटस्थापना की जाती है । नौ दिन तक दुर्गादेवी का नवरात्रि उत्सव मनाया जाता हैं । आज हम दुर्गादेवी महिषासुरमर्दिनी कैसे बनी, इस विषय में चर्चा करेंगे ।

प्राचीनकाल में महिषासुर नाम का एक अत्याचारी राक्षस था । वह लोगों को बहुत सताता था । एक बार उसने इंद्र से युद्ध किया एवं उन्हें(इंद्र को) पराजित कर उनका स्थान ले लिया । इंद्र को पराजित करने के उपरांत महिषासुर को अपनी शक्तिपर अति गर्व हो गया । वह सभी से क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने लगा । महिषासुर का अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढता ही जा रहा था । यह देख सभी देवता एकत्र होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेशजी के पास गए एवं उनसे प्रार्थना की, ‘‘हमें इस संकट से मुक्त कराइए तथा महिषासुर को उचित दंड देने की कृपा कीजिए ।’’

तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति को एकत्र कर एक देवी की निर्मिति की । शिवजी के तेज से देवी का मुख, विष्णु के तेज से हाथ तथा अग्नि के तेज से आंखों की निर्मिति हुई । इस प्रकार प्रत्येक देवता ने देवी का एक-एक अवयव तैयार किया तथा उससे साक्षात दुर्गादेवी की निर्मिति हुई । शिवजी ने अपना त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, इंद्र ने वङ्का तथा सभी देवताओं ने देवी को अपने-अपने विविध शस्त्र अर्पण किए ।

देवताओं के तेज से निर्मित हुई इस सर्वशक्तिमान दुर्गादेवी ने महिषासुर का नाश करने के लिए रौद्र रूप धारण किया । महिषासुर एवं दुर्गादेवी में नौ दिनों तक घमासान युद्ध हुआ । दुर्गादेवी ने अपने त्रिशूल से महिषासुर का वध किया । महिषासुर का वध करने से दुर्गादेवी को महिषासुरमर्दिनी के नाम से पुकारा जाने लगा । इन्हीं के स्मरण में हम नवरात्रि उत्सव मनाते हैं ।

बच्चों, हम नवरात्रि उत्सव क्यों मनाते हैं, यह हमें समझ में आ गया होगा । फिर आजकल नवरात्रि में चलनेवाले ‘गरबे’के विषय में आपको क्या लगता हैं ? अत्यधिक कोलाहल कर अति उच्च स्वर में संगीत वाद्यों के साथ आधुनिक ढंग से फूहड नृत्य करना क्या योग्य है ? इस विषय में आप अन्यों का उद्बोधन कर उन्हें हिंदु धर्म के विषय में जानकारी दे सकते हैं ।

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