बसंत पंचमी की कथा

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे ।

तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई ।

जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था । वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी । जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा ।

सरस्वती देवी को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है । संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं ।

बसंत पंचमी के दिन को माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं ।

पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि, बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी । इस कारण बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा की जाती है ।

माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी से ऋतुओं के राजा बसंत का आरंभ हो जाता है । यह दिन नवीन ऋतु के आगमन का सूचक है । इसीलिए इसे ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है ।