गोवत्स द्वादशी

दीपावली पर्व के दिन

नरक चतुर्दशी, लक्ष्मीपूजन, बलिप्रतिपदा, ये तीन दिन दीपावली में विशेष उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं । वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी, धनत्रयोदशी अर्थात धनतेरस तथा भाईदूज अर्थात यमद्वितीया, ये दिन दीपावली के साथ ही आते हैं । इन दिनों को दीपावली का एक अंग माना जाता है ।

गोवत्स द्वादशी

कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशी के नाम से जानी जाती है । यह दिन एक व्रत के रूप में मनाया जाता है । दीपावली के काल में उत्पन्न अस्थिरता से होनेवाली हानि से बचने हेतु दीपावली के पूर्व गोवत्सद्वादशी का व्रतविधान किया गया है । गोवत्सद्वादशी को गौपूजन की कृति कर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । इससे व्यक्ति में लीनता बढती है । गौपूजन व्यक्ति को चराचर में ईश्वरीय तत्त्व का दर्शन करने की सीख देता है । व्रती सभी सुखों को प्राप्त करता है ।

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