हरगढ

इतिहास

इतिहास में इस किले का कोई विशेष वर्णन नहीं है । क्योंकि यहां कोई बडा युद्ध नहीं हुआ । मुल्हेर गांव में जाने के उपरांत हरगढ के दर्शन होते हैं । सामने दिखाई देनेवाला मुल्हेर, इसके दायीं ओर मोरगढ और बायीं ओर हरगढ है । इस गढ की उंचाई मुल्हेर से थोडी अधिक है ।

गढ के दर्शनीय स्थल

गढ का शीर्ष अत्यधिक लंबा-चौडा है । गढ का शीर्ष (पठार) समतल भूमिपर है । इस पठारपर तटबंदी के कुछ अवशेष हैं । पानी के दो कुंड हैं । एक जीर्ण-शीर्ण मंदिर भी है । अब कोठी के कुछ अवशेष दिखाई देते हैं । कुंड का जल पीने योग्य नहीं है । इसलिए पीने का पानी साथ ले जाना आवश्यक है । गढ दर्शन करते समय आगे समतल भूमिपर एक गुफा दिखाई देती है । इस गुफा में कपार भवानी का मंदिर है । गढपर देखने योग्य और कुछ नहीं है । इसलिए जिस मार्ग से आए हैं, उसी मार्ग से घाटी से  होकर एक तो मुल्हेरगढ जाए या तो मुल्हेर गांव जाए । गढ की फेरी के लिए १ घंटा पर्याप्त है ।

गढपर जाने का मार्ग

गढपर पहुंचने के लिए अभी एक ही मार्ग अस्तित्व में हैं । गढपर जाने का मार्ग मुल्हेर गांव से होकर जाता है । मुल्हेर गांव से आगे आने के उपरांत एक पक्का मार्ग (पक्की सडक) है । इस मार्ग से बीस मिनट चलने के उपरांत आगे दो मार्ग मिलते हैं । एक दायीं ओर जाता है तथा दूसरा एक वटवृक्ष से आगे जाता है । यह मार्ग छोटे से पर्वतपर जाता है । जहां धनगर-वाडी है । वहां से बायीं ओर मुडनेपर सीधे मुल्हेर और हरगढ के बीच के संकीर्ण मार्गतक पहुंच सकते हैं । वहां पहुंचने लिए डेढ घंटा पर्याप्त है। घाटी से दायीं ओर जानेवाला मार्ग हमें मुल्हेरगढ बाइं ओर जानेवाला मार्ग हमें हरगढ तक पहुंचा देता है । मार्गपर प्रायः आवागमन न होने के कारण पथ का पता नहीं लगता है
। इस संकीर्ण मार्ग से गढ के शीर्षपर पहुंचने के लिए एक घंटा पर्याप्त है ।

रहने की सुविधा : गढपर रहने की कोई सुविधा नहीं है ।

भोजन एवं जल की सुविधा : यहां भोजन-जल की सुविधा भी नहीं है ।