सुभाषित – १

यादृशै: सन्निविशते यादृशांश्चोपसेवते । यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृग्भवति पूरूष: ।।
अर्थ : मनुष्य जिस प्रकारके लोगोंके साथ रहता है , जिस प्रकारके लोगोंकी सेवा करता है , जिनके जैसा बनने की इच्छा करता है , वैसा वह होता है ।
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महर्षि व्यास

वेदव्यास ने साक्षात् श्रीगणेश को ही अपना लेखक बनाया । उन्हें महाभारत लिखाना था । लाख से भी अधिक श्लोकों का प्रचंड महाग्रंथ था महाभारत ! यह प्रचंड ग्रंथ कौन लिखेगा ? Read more »

‘फास्ट फूड’ एवं शीतपेय से बचें !

पाश्चात्यों समान भारत में भी आज ‘फास्ट फूड’ की भोगवादी संस्कृति फैल रही है ।
पिज्जा, बर्गर, चिप्स इत्यादि ‘फास्ट फूड’, कृत्रिम एवं प्रक्रियासे तैयार किया गया अन्न है ! Read more »

वातावरणकी शुदि्ध कैसे करें ?

हिंदुस्थानका ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्वका वातावरण आतंकवादसे दूषित हो गया है । इस दूषित वातावरण एवं सूक्ष्म जगतकी शुदि्ध करनेके लिए यज्ञसे श्रेष्ठ अन्य कोई उपाय नहीं है । Read more »