देवताओं की शक्तिद्वारा दुर्गादेवी की निर्मिती !
मां दुर्गा की निर्मिती अनेक देवताओं से हुई है । उनकी देह का प्रत्येक अवयव एक-एक देवता की शक्ति से बना है । इस देवी की निर्मिती कैसे हुई यह कथा आज हम सुनेंगे । Read more »
मां दुर्गा की निर्मिती अनेक देवताओं से हुई है । उनकी देह का प्रत्येक अवयव एक-एक देवता की शक्ति से बना है । इस देवी की निर्मिती कैसे हुई यह कथा आज हम सुनेंगे । Read more »
एक बार देवताओं को अहंकार हो गया था । मां दुर्गादेवी ने देवताओं का अहंकार नष्ट किया था । इससे जुडी एक कथा आज हम सुनेंगे । Read more »
शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो राक्षस थे । १० सहस्र वर्षों तक उन्होंने अन्न और जल का त्याग कर ब्रह्माजी की तपस्या की और तीनों लोकों पर राज करने का वरदान प्राप्त किया । शुम्भ और निशुम्भ से रक्षा करने के लिए देवताओं के गुरु बृहस्पतिजी ने ‘देवी जगदंबा’ अर्थात ‘श्री दुर्गादेवी’ का आवाहन किया । Read more »
हमने पूतना वध की कहानी सुनी है । बालकृष्ण ने केवल पूतना का ही नहीं अन्य असुरों का भी नाश किया है । आज उसकी कथा सुनते हैं । Read more »
मंथन आरंभ तो हुआ परन्तु नीचे आधार ने होने के कारण मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा । सभी देवता और असुरों ने देखा की इतने कठिन प्रयास करने के बाद भी सारे प्रयत्न विफल हो रहे हैं । आगे क्या करें यह उनके ध्यान में नहीं आ रहा था । तब श्रीविष्णुजी समझ गए कि अब देवताओं की रक्षा हेतु उन्हें कुछ करना होगा । Read more »
एक बार नारद मुनि श्रीविष्णुजी के वैकुंठ धाम गए । वहां नारद मुनि ने श्रीहरि से कहा, ‘‘प्रभु, मुझे पृथ्वी पर कुछ विपरीत परिस्थिती दिखाई दी । जो धर्म का पालन करता है, उसे अच्छा फल नहीं मिलता और जो पाप कर रहे हैं उसका भला हो रहा है ।’’ Read more »
कंस ने अपनी मुंह बोली बहन पूतना को यह कार्य सौंपा । पूतना में १० हाथियों का बल था । कंस के कहने पर वह गोकुल में बच्चों को मारने के लिए चली आई । गोकुल पहुंचने पर पूतना ने अपना वेष बदला और उसने सुंदर स्त्री का मायावी रूप धारण किया । वह नंदबाबा के भवन पहुंची । Read more »
प्रभु श्रीरामजी के चरणों का महत्त्व जाननेवाला केवट प्रभु श्रीरामजी का भक्त भी था । केवट एक नाविक था । बालमित्रो, नाविक अपनी नाव से लोगों को नदी पार करवाता है । प्रभु जब वनवास के लिए जा रहे थे, तब उन्हें नदी पार करनी थी । Read more »
यशोदा माई ने कान्हा को बांधने के लिए रस्सी मंगाई और उन्हें ऊखल से बांध दिया और वे अपने काम करने चली गई । परंतु वे तो कान्हा थे । उन्होंने देखा माई अपना काम कर रही है । तो उन्होंने भी अपना काम करना आरंभ किया । उनके भवन के बाहर यमलार्जुन के दो वृक्ष थे । Read more »
महर्षि विश्वामित्र विश्व कल्याण के लिए यज्ञ किया करते थे । उस काल में वन में बहुत से राक्षस रहते थे, जो ऋषि-मुनियों के यज्ञों में बाधा डालते थे । उनके इस कष्ट के कारण महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ की अयोध्या नगरी में पहुंचे तथा राक्षसों के वध के लिए उन्होंने प्रभु श्रीराम को साथ भेजने की विनती की । प्रभु श्रीराम के साथ लक्ष्मण भी महर्षि के साथ चल पडे । Read more »