प्रभु श्रीराम की बहन शांता और ऋष्यश्रृंग 

आप सभी को ज्ञात होगा कि श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न राजा दशरथ के पुत्र थे । इनके साथ ही राजा दशरथ और रानी कौशल्या की शांता नाम की एक कन्या भी थी । शांता उनकी पहली संतान थी । अर्थात वह प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न इनकी बहन थी । शांति और सद्भाव का प्रतीक थी । Read more »

प.पू. रामकृष्ण परमहंसजी की कालीमाता भक्ति !

श्रीरामकृष्ण परमहंसजी काली माता के मंदिर के पुजारी थे । वे कालीमाता के असीम भक्त थे । श्रीरामकृष्ण परमहंस भक्ति के आदर्श उदाहरण हैं । कालीमाता ने भी उनपर कितना और कैसे प्रेम किया ?, यह भक्तिमय प्रसंग आज हम सुनेंगे ।  Read more »

देवी लक्ष्मी कहां विराजमान रहती है ?

एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म से पूछा, ‘‘पितामह ! क्या करने से मनुष्य के दुःखों का नाश होता है ? कोई मनुष्य दुःखी होनेवाला है अथवा सुखी होनेवाला है, यह कैसे समझ सकते हैं ? किसका भविष्य उज्ज्वल होगा और किसका पतन होगा यह कैसे पता चल सकता है ? पितामह भिष्म ने कहां, ‘‘पुत्र इस विषय में एक प्राचीन कथा तुम्हे सुनाता हूं । Read more »

प्रभु श्रीराम तथा लक्ष्मण द्वारा मारीच और सुबाहु का वध !

ऋषि विश्वामित्र बडा यज्ञ कर रहे थे तथा राक्षस उनके यज्ञ की अग्नि में मांस, रक्त आदि डालकर उसे अपवित्र कर देते थे । इसलिए महर्षि विश्वामित्र ने अयोध्या में राजा दशरथ से सहायता मांगी तथा यज्ञ की रक्षा के लिए उनके पुत्र प्रभु श्रीराम को साथ भेजने के लिए कहा । महाराज दशरथ की आज्ञा से प्रभु श्रीराम बंधु लक्ष्मण के साथ ऋषि विश्वामित्रजी के गुरुकुल पहुंचे Read more »

नरकासुर वध ! 

भौमासुर पशुओं से भी अधिक क्रूर और अधर्मी था । वह सबको नरक जैसी यातनाएं देता था । उसकी इन्हीं करतूतों के कारण ही उसका नाम नरकासुर पड गया । भौमासुर को देव-दानव-मनुष्य नहीं मार सकता था; परन्तु उसे स्त्री के हाथों मरने का शाप था । इसलिए भगवान श्रीकृष्णजी ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया । Read more »

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश !

अपने विरुद्ध पक्ष में पितामह भीष्म और द्रोणाचार्य आदि गुरुजनों को देखकर अर्जुन युद्ध करने को तैयार नहीं थे । तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विश्वरूप का दर्शन कराया और उनसे कहा, ‘पार्थ ! जब धर्म को ग्लानी आती है, तब धर्म की संस्थापना के लिए मैं अवतार धारण करता हूं । उनके साथ युद्ध करना ही उचित क्षत्रिय धर्म है । तुम अपने कर्म के फल की चिंता ना करते हुए अपने क्षात्रधर्म का पालन करो ।’ Read more »

भरत का बंधुप्रेम और पादसेवन भक्ति ! 

जब प्रभु श्रीराम वनवास जा रहे थे, तब उनके छोटे भाई भरत अयोध्या में नहीं थे । जब भरत अयोध्या लौटे, तब उन्हें पता चला कि उनकी माता कैकयी ने उन्हें सिंहासन पर बिठाने हेतु बंधु श्रीराम को १४ वर्ष का वनवास दिया है, तब उन्हें बहुत दुख हुआ । अपने बडे भाई श्रीराम को वापस लाने हेतु वे वन में गए । Read more »

गुरुभक्‍त संदीपक !

गोदावरी नदी के तट पर महात्‍मा वेदधर्मजी का आश्रम था । उन्‍होंने अपने सभी शिष्‍यों को कहा, ‘‘मुझसे जितना हो सका उतना ज्ञान तुम सबको मैंने दिया है । परन्‍तु अब मेरे पूर्व जन्‍म के कर्मों के कारण आगे आनेवाले समय में मुझे कोढ होगा, मैं अंधा हो जाऊंगा, मेरे शरीर में कीडे पड जायेगे, मेरे शरीर से दुर्गंध आने लगेगी । मेरे इस व्‍याधिकाल में कौन-कौन मेरे साथ आने के लिए तैयार है ?’’ Read more »

अन्योंका विचार करने का महत्व ! 

गुरुकुल के अंतिम दिवस पर गुरुदेवजी जे सभी को एक छोटीसी परीक्षा देने के लिए एक दौड में भाग लेने के लिए कहा। दौड पूर्ण होने के पश्चायत गुरुदेवजी ने सभी को देखकर प्रश्न किया, ‘‘पुत्रों ! मैं देख रहा हूं कि कुछ लोगों ने दौड बहुत शीघ्र पूरी कर ली और कुछ ने बहुत अधिक समय लिया । भला ऐसा क्यों हुआ ?’’ Read more »

राधा का चरणामृत !

एक बार गोकुल में बालकृष्ण बीमार हो गए थे । कोई भी वैद्य, औषधि, जडी-बूटी उन्हें ठीक नहीं कर पा रही थी । गोपियों को यह बात पता चली । गोपियां कृष्ण से मिलने आई । कृष्ण की ऐसी स्थिति देखकर सभी गोपियों की आंखों में आंसू आ गए । भगवान कृष्णने उन्हें रोनेसे मना किया और कहा, ‘‘मेरे ठीक होने का एक उपाय है । यदि कोई गोपी मुझे अपने चरणों का चरणामृत पिलाए, तो मैं ठीक हो सकता हूं ।’’ Read more »