अपने सद्गुणों की सहायता से शिक्षा व्यवस्था के दुष्परिणामों को मातकर गुणसंपन्न बनें !

छात्रो, आज हम जिस शिक्षा व्यवस्था से शिक्षा ठाहण कर रहे है, वह व्यवस्था संपूर्ण रूप से केवल ‘परीक्षा पद्धति’ है ! विद्यार्थी को कितने प्रतिशत अंक प्राप्त हुए हैं, उसपर उस बालक की गुणवत्ता उच्च अथवा निम्न सिद्ध होती है । Read more »

‘फ्रेंडशिप डे’ समान पाश्‍चात्त्य विकृति पर बलि न चढे !

अगस्त माह के प्रथम रविवार को युवा वर्गद्वारा ‘फ्रेंडशिप डे’ मनाया जाता है । क्या वास्तव में कोई एक बैंड बांधकर मैत्री में वृद्धि होती है ? Read more »

स्वमाता, भूमाता (राष्ट्र) तथा गोमाता को संकटमुक्त करने की प्रतिज्ञा करें !

हमारी भारतीय संस्कृति में, ‘मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्यदेवो भव ।’, अर्थात माता, पिता एवं गुरु को देवता समान माना गया है । इसमें भी मां को प्रथम स्थानपर रखा गया है । आर्इए प्रस्तुत लेख से मां की महत्ता देखेंगे । Read more »

छत्रपति शिवाजी महाराज का आदर्श रखकर उसके अनुसार कृति करें !

शिवजयंती मनाना, अर्थात केवल शौर्यगीत बजाना अथवा किसी गाने का कार्यक्रम करना यहीं तक मर्यादित है क्या ? खरे अर्थों में शिवजयंती मनाना, अर्थात शिवाजी महाराज के गुण आत्मसात करने का निश्चय करना है । Read more »

आयुर्वेद अर्थात प्राचीन ऋषिमुनियों की अनमोल देन !

अपने शरीर तथा मन को स्वस्थ रखना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है ।इस हेतु आयुर्वेद प्राचीन कालसे उपयोग में लाया हुआ परिणामकारा माध्यम है ।
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बच्चो, ‘त्याग’ हमारी संस्कृति है !

संग्रह करने से मनुष्य संकीर्ण वृत्तिका हो जाता है और त्याग करने से वृत्ति उदार बनती है । इसलिए ‘त्याग में ही खरा आनंद है’, यह ध्यान में रखें! Read more »

विद्यार्थियो, पढाई में आनेवाली अडचनें कैसे दूर करें ?

पढाई में मन न लगना, यह सभी बच्चों की नित्य की समस्या है ! पिताजी दूरदर्शन पर समाचार देखते हैं और भैया उंचे स्वर में गाना सुनते है; तब कैसे होगी पढाई ? Read more »

व्यसनाधीन होने के दुष्परिणाम क्या हैं ? व्यसनमुक्त कैसे बनें ?

सिगरेट पीना, शराब पीना, मादक पदार्थोंका सेवन करना, मावा (सुगंधित तंबाखू) इत्यादि खाने से दांत, गला, फेफडे, हृदय, पेट, मूत्रपिंड, श्वसन व्यवस्था तथा पाचन व्यवस्था में विकार निर्माण होने से कर्करोग तथा अन्य भयंकर रोग होते हैं ।
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विद्यार्थियों, आदर्श व्यक्तित्व हेतु स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया कार्यान्वित करें !

हमारे अंतर्मन में सभी तरह के अनुभव, भावना, विचार, इच्छा, आकांक्षा आदि सब कुछ संग्रहित रहता है । फिर भी उसकी कल्पना बाह्यमन को तनिक भी नहीं रहती; क्योंकि अंतर्मन एवं बाह्यमन दोना में एक तरह का पर्दा रहता है । Read more »