स्वतंत्र एव स्वतंत्रता

भारतको स्वतंत्रता प्राप्त हुई, अर्थात निश्चित रूपसे क्या हुआ ? यह ध्यानमें आ रहा है कि केवल उपरी तौरपर परायोंकी सत्ता समाप्त हुई तथा स्वयंकी सत्ता आई, इतनी ही स्वतंत्रता प्राप्त हुई है । स्वम् आत्मानं शास्ति सः स्वतन्त्रः । अर्थात जो अपना, अपनी आशा-आकांक्षा, भाव-भावना, विकार तथा विचार आदिका नियमन करता है, वही स्वतंत्र । यहां आत्माका लौकिक अर्थ अपेक्षित है । अध्यात्मका संबंध नहीं है । उसका भाव एवं अस्तित्व अर्थात स्वतंत्रता ।
भारत स्वतंत्र हुआ; किंतु उसके नागरिक चाहे वे किसी भी जाति-धर्मके हों, वे अपनी अस्मिता खो बैठे हैं ।
भाषा, आहार-विहार, वेशभूषा, मनोरंजन तथा मनोरंजनके साधन, विचार, उच्चारण इन सभी विषयोंमें कहीं भी भारतीयता प्रतीत नहीं होती । भारतका प्रत्येक व्यक्ति उपर्युक्त सभी विषयोंमें पराधीन, परशासित एवं परावलंबी है । ऐसेमें इस स्वतंत्रताको दूरसे ही दंडवत !
(संदर्भ : सद्धर्म त्रैमासिक, अक्तूबर १९९६)

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