बांग्लादेश : हिन्दुओं के लिए असुरक्षित बना इस्लामी राष्ट्र !

१ से ३ जनवरी २०१७ की अवधि में सनातन की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने बांग्लादेश का भ्रमण कया। पू. डॉ. ॐ उलगनाथनजी के माध्यम से ‘महर्षि’द्वारा की गई आज्ञा के अनुसार बांग्लादेश में स्थित शक्तिपिठों का दर्शन करना, यह इस भ्रमण के पीछे का उद्देश्य था। उनके साथ सनातन के ३ और साधक भी सम्मिलित हुए थे। कुल मिलाकर इन ३ दिवसीय बांग्लादेश भ्रमण में आए हुए अनुभव काफी भीषण थे !

इस बांग्लादेश भ्रमण के संदर्भ में सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी एवं उनके सहयोगी साधकों के साथ सनातन प्रभात समाचारपत्र के उपसंपादक श्री. चेतन राजहंस ने दूरभाष के माध्यम से संपर्क किया। ‘बांग्लादेश, हिन्दुओं के लिए अत्यंत असुरक्षित बना हुआ देश है’, यही इस संवाद का सारांश था !

‘भारत में अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षित हैं’, ऐसा निरंतर ढिंढोरा पिटनेवाले राजनीतिक दल, धर्मांध संघटन, पुरो(अधो)गामी, तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता, निधर्मी मिडिया इन सभी ने बांग्लादेश में रहनेवाले अल्पसंख्यक हिन्दुओं की दुःस्थिति को जानने हेतु इस लेख को अवश्य पढना चाहिए !

मुसलमान बहुसंख्यक बांग्लादेश में रहनेवाले हिन्दू सदैव ही मृत्यु के भय की छाया में जीवन व्यतीत कर हैं, तो हिन्दू बहुसंख्यक भारत में रहनेवाले अल्पसंख्यक केवल १५ मिनटों में १०० करोड हिन्दुआें को समाप्त करने की भाषा बोलते हैं ! इस स्थिति में परिवर्तन लाने हेतु, साथ ही सर्वत्र के हिन्दुओं के लिए सुरक्षित जीवनयापन करना संभव हो; इसके लिए ‘हिन्दू राष्ट्र’ के बिना अन्य कोई पर्याय नहीं है !

१. ‘बांग्लादेश भ्रमण’ अर्थात महर्षिजीद्वारा ली गई एक परीक्षा !

श्री. राजहंस : बांग्लादेश में कैसे और कितने दिनों के लिए जाना सुनिश्‍चित हुआ ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : बांग्लादेश में जाने का हमारा ऐसा कोई भी नियोजन नहीं था। महर्षिजी ने जैसे परीक्षा लेने हेतु ही हमें बांग्लादेश जाने के लिए कहा। उस समय हम जयपुर (राजस्थान) में थे। हमारे पास पासपोर्ट तो था परंतु बांग्लादेश का प्रवेशपत्र (विजा) निकालना था। वैसे तो प्रवेशपत्र निकालते समय बहुत पूछताछ की जाती है और ऐसे में हम पहली बार विदेश और वह भी एक इस्लामी देश में जा रहे थे। सौभाग्यवश हमारे प्रवेशपत्र का काम शीघ्र हुआ। ‘बांग्लादेश जाने हेतु जितना शीघ्र निकलना संभव हो, उतनी शीघ्रता से जाए’, ऐसा महर्षिजीद्वारा बताए जाने से हमने १ से ५ जनवरी तक की भ्रमण अवधि निर्धारित कर १ जनवरी को देहली से विमान यात्रा कर बांग्लादेश की राजधानी ढाका पहुंचे।

२. बांग्लादेशी मुसलमानों की हिन्दुद्वेष से भरी मानसिकता, यही भारत के हिन्दुओं का बांग्लादेश में न जाने का कारण !

श्री. राजहंस : बांग्लादेश में जाने हेतु क्या आप ने कोई पूर्वसिद्धता की थी ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : ढाका जाते समय हमने सावधानी के रूप में हिन्दू होने की वेशभूषा बदल दी। साधकों ने कुर्ते के स्थानपर शर्ट पहनें। किसी ने भी अपने माथेपर तिलक नहीं लयाया। मैने भी साडी के स्थानपर ‘पंजाबी वेशभूषा’ पहनना सुनिश्‍चित किया था; परंतु प्रत्यक्षरूप से वहां जानेपर ज्ञात हुआ कि, वहां की महिलाएं साडी ही पहनती हैं। उसके कारण इस भ्रमण काल में मुझपर पंजाबी वेशभूषा परिधान करने की नौबत ही नहीं आयी; परंतु मैने सावधानी हेतु मेरे कांच के कंगन निकालकर रख दिए। वहांपर हिन्दुओं का जीवन अत्यंत असुरक्षित होने से हमें हमारे शरिरपर स्थित ‘हिन्दू होने’ के सभी चिन्ह निकालकर रखने पड़े। कुल मिलाकर ‘कोई भी हिन्दुओं ने बांग्लादेश जाना ही नहीं चाहिए’, ऐसी वहां की स्थिति बन गई है !

स्वातंत्र्य पूर्व बांग्लादेश में २८ प्रतिशत हिन्दू थे। आज के दिन वहां केवल १० प्रतिशत हिन्दू शेष बचे हैं। वहां के हिन्दुओं का केवल धर्मपरिवर्तन ही नहीं किया जाता, अपितु उनकी हत्या की जाती है। वहां के नागरिकों को बाहर से आनेवाले हिन्दुओं का अस्तित्व भी पसंद नहीं होता। ‘कोई भी भारतीय अथवा हिन्दू ने बांग्लादेश में प्रवेश नहीं करना चाहिए’, ऐसी भीषण स्थिति वहांपर उत्पन्न की गई है। वास्तविक, भारत ने ही बांग्लादेश को ‘स्वतंत्र्य’ दिलवाया; परंतु आज वहां भारतियों की कोई कीमत नहीं है। कुछ माह पूर्व भारत-बंग्लादेश क्रिकेट प्रतियोगिता के पूर्व बांग्लादेशी कप्तान के हाथ में भारतीय टीम के कप्तान महेंद्रसिंग धोनी का सिर पकडा हुआ विज्ञापन बांग्लादेश में प्रकाशित होने की घटना हुई थी। उस समय समाचारपत्रों में इस विषय पर बडी चर्चा भी हुई थी। इससे बांग्लादेशियों में भारतीय एवं हिन्दुओं के संदर्भ में किस प्रकार की मानसिकता है, यह ध्यान में आता है !

३. ढाका हवाई अड्डेपर ‘इस्लामी राष्ट्र में हिन्दुओं के मन में किस प्रकार का भय होता है’, इसका प्रत्यक्ष रूप से किया हुआ अनुभव !

श्री. राजहंस : बांग्लादेश पहुंचनेपर क्या, आपको कोई समस्याएं आयीं ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : ढाका हवाई अड्डेपर हमारी बहुत व्यापक जांच की गई। इमिग्रेशन विभाग में ‘आप यहां किसलिए आए हैं ?’ जैसे अनेक प्रश्‍न पूछे गए। हमने उनको बताया, ‘हम देवी के भक्त हैं और देवी का दर्शन करने आए हैं’। हमारे हवाईअड्डेपर उतरते ही स्थानीय हमारा ‘आपादमस्तक’ निरिक्षण कर रहे थे। हम भयभीत हों, इसी प्रकार से सभी की दृष्टि हमपर थी। जैसे हम उनकी नजरबंदी में थे। उनका हमारी ओर देखना, ऐसा दर्शा रहा था कि, जैसे वो हमें मारने पर ही तुले हुए हैं ! एक ‘इस्लामी राष्ट्र’ में जानेपर हिन्दुओं के मन में किस प्रकार का भय होता है, इसका हमने प्रत्यक्षरूप से अनुभव किया।

३ अ. हवाईअड्डेपर ‘मुसलमानों की वक्रदृष्टि को देखकर स्वयं का आज्ञाचक्र खुल जाना और वहां से बडी मात्र में शक्ति का प्रक्षेपण हो रहा है, ऐसा प्रतीत होना’, यह एक वैष्टियपूर्ण अनुभूति !

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : १ जनवरी २०१७ को हवाई अड्डे से बाहर निकलते समय आसपास के मुसलमान, मेरे और अन्य साधकों की ओर देखने लगें। उनकी दृष्टि इतनी भयावह थी कि, जैसे वो अब हमें मार ही डालनेवाले हैं। उनकी उस वक्रदृष्टि को देखकर ‘मेरा आज्ञाचक्र धीरे-धीरे खुल रहा है’, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ। उस समय जैसे ‘मेरे मस्तक का उपरी भाग खुल तो नहीं गया है ?’, ऐसा मुझे लगा। जैसे ‘मेरे मस्तक पर स्थित ढक्कन किसी ने निकाला है तथा उससे बडी मात्रा में शक्ति का प्रक्षेपण हो रहा है’, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ। मैं जब पैदल चल रही थी, तब ‘मेरे आज्ञाचक्रद्वारा बाहर पडेनवाली शक्ति का प्रकाश सर्वत्र फैला है’, ऐसा मुझे लग रहा था। इस प्रकार से आज्ञाचक्र का इतनी बडी मात्रा में खुल जाने की एक वैष्टियपूर्ण अनुभूति मैने मेरी पूरी साधना की यात्रा में पहली बार अनुभव की !

३ आ. एक पुलिसकर्मीद्वारा हमारी ओर देखकर ‘अच्छा लगा’ ऐसे बताया जाना, यह ईश्‍वर ने हमारे हेतु दी गई एक सकारात्मक साक्ष थी !

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : हम इमिग्रेशन विभाग में जांच के लिए खडे थे। तब कुछ लोग वहां आपस में झगडा कर रहे थे। जांच करनेवाले एक पुलिसकर्मी ने मुझ से पूछा, ‘‘आप कहां जा रहे हैं ?’’ तब मैने ‘‘हम शक्तिपीठ के दर्शन करने जा रहे हैं’’, ऐसा कहा। वह पुलिसकर्मी हिन्दू था अथवा मुसलमान, यह ज्ञात नहीं हुआ; परंतु उसने मुझे कहा, ‘‘आपकी वाणी अच्छी और बहुत अलग लगती है। आपको देखकर मुझे बहुत आनंद हुआ। आप मुझे अलग लगती हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूं’’ तब मैने उसे, ‘‘हम देवी का आशीर्वाद लेने हेतु ही आए हैं’’, ऐसा कहा। तत्पश्‍चात हम हवाई अड्डे से बाहर निकले। एक पुलिसकर्मीद्वारा हमारे संदर्भ में ‘अच्छा’ लगने की बात कहना, यह ईश्‍वरद्वारा हमारे लिए दी हुई एक सकारात्मक साक्ष ही थी !

४. इस्लामी उपासना हेतु अनुपूरक; परंतु सामान्य सुरक्षा व्यवस्थावाला, ढाका आंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा !

श्री. राजहंस : ढाका हवाई अड्डेपर आपके अनुभव कैसे रहे ?

श्री. विनायक शानभाग : ढाका हवाई अड्डा आंतरराष्ट्रीय श्रेणी का हवाई अड्डा है। वहां के हर मंजिलपर कोने कोने में नमाजपठन हेतु प्रार्थनास्थलों का निर्माण किया गया है। पूरा हवाई अड्डा, साथ ही प्रसाधनगृह में भी अजान सुनाई दे, इस प्रकार की वहां ध्वनिव्यवस्था की गई है। हवाई अड्डेपर सुरक्षा व्यवस्था अत्यंत सामान्य थी। हमारे यहां राष्ट्रीय श्रेणी के हवाई अड्डेपर भी परिचयपत्र एवं यात्रा का टिकट देखा जाता है; परंतु यहां एक आंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा होते हुए भी हमारा यात्रा टिकट और परिचयपत्र नहीं देखा गया। इस आंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर खडे लोग; ऐसे खडे थे, जैसे वो किसी बाजार में खडे हो !

५. बांग्लादेश के असुरक्षित जीवन का प्रत्यक्षरूप से किया हुआ अनुभव !

श्री. राजहंस : बांग्लादेश में निवास एवं भोजन का प्रबंध कैसा था ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : हवाई अड्डे के बाहर आने के पश्‍चात हम टैक्सी से जानेवाले थे। कोलकाता के एक व्यावसायिक के भागीदार ढाका में रहते हैं। उनसे बांग्लादेश में आनेपर निवास के संदर्भ में पूछनेपर उन्होंने ‘मैं ही आपके निवास का प्रबंध करूंगा और आपको लेने हेतु वाहन भेजूंगा’, ऐसा कहा। उनका घर ढाका के अतिसुरक्षित क्षेत्र में है। वहांपर सभी राष्ट्रों के दूतावास हैं। वहां गली-गली में बंदुकधारी पुलिसकर्मी होते हैं। उस क्षेत्र की सुरक्षितता को ध्यान में रखकर हमने उनके यहां निवास करने का सुनिश्‍चित किया। उनके पास ही भोजन का भी प्रबंध हुआ। उनका घर दूसरी मंजिलपर था। उन्होंने हमें पहले ही यह निर्देश दिया था कि, ‘आप कपडे सुखाने उपर में मत जाईए अथवा कपडों को सूखाने हेतु रखने के तुरंत पश्‍चात परदा लगाईए। सज्जा से नीचे मत देखिए। उससे आपको हानि पहुंच सकती हैं। आप यहां के द्वाररक्षकों पर भी विश्‍वास न रखें !

६. बांग्लादेश की हिन्दुविरोधी मानसिकता के संदर्भ में सुने हुए कुछ अनुभव

श्री. राजहंस : ढाका में आप जिस व्यावसायी के पास रह रहे थे, तो क्या, उन्होंने वहां के कुछ अनुभव विशद किए ?

श्री. विनायक शानभाग : बांग्लादेश की राजधानी में अतिसुरक्षित क्षेत्र में रहते हुए भी, हम जिनके पास ठहरे थे, उनके मन में भी असुरक्षितता की तीव्र भावना थी। उन्होंने हमसे कहा, ‘‘मैं भी केवल मेरे कामतक ही सीमित बाहर आता जाता हूं और काम हो जाने के पश्‍चात तुरंत घर वापस आता हूं। बाहर घूमने के लिए कहीं नहीं जाता। यहां के हिन्दू अत्यंत असुरक्षित हैं। ‘यहां के लोग कभी भी आपके घर आकर आपको मार सकते हैं’, ऐसी स्थिति है। मैं जब यहां रहने के लिए आया, तब सबसे पहले मेरे वाईफाई इंटरनेट की और उसके पश्‍चात मेरे दूरभाष की तार काट दी गई। इस क्षेत्र में कोई नया हिन्दू आने के पश्‍चात उसे भय दिखाया जाता है। मुझे बीच-बीच में नदी अथवा पर्वतीय क्षेत्र से जाना पडता है। उस समय मुझे ऐसा भय रहता है कि,कोई मुझे नदी में अथवा घाटी से निचे ढकेल न दें !’’

उस व्यवसायी के रसोईये ने बताया, ‘‘यहां दुर्गापूजा आदि त्यौहार के दिन दंगे होते हैं। इसलिए हम हमारे गांव में त्यौहारों को बडी मात्रा में नहीं मनाते !’’

श्री. दिवाकर आगावणे : उस व्यवसायी का चालक एक मुसलमान है। एक बार यह व्यावसायी उस चालक के घर गए थे। उसकी पत्नी तथा उसके बच्चे एक छोटे कमरे में रहते थे, इसे देखकर उस व्यवसायी को कुछ अच्छा नहीं लगा। उन्होंने अपने उस चालक को एक अच्छा किराए का घर दिला दिया, उसका सब सुचारू रूप से कर दिया; परंतु इन लोगों को एक हिन्दू मालिकद्वारा किए गए उपकारों का कोई मूल्य नहीं होता। वह इतना धर्मनिष्ठ है कि, उसके लिए बहुत कुछ कर रहे मालिक से उसे ‘शुक्रवार के दिन छुट्टी’ की भी अपेक्षा है। इसके लिए वह सदैव रसोईए से यह परिवाद करता रहता है कि, ‘साहब मुझे शुक्रवार की छुट्टी भी नहीं देते !’ इसके विपरित भारत में उपकारकर्ते मालिक के लिए उसके सेवक सब कुछ करते हैं !

७. बांग्लादेश के सडकों पर भ्रमण करते समय प्राप्त, नरक के समान अनुभव !

श्री. राजहंस : बांग्लादेश के सडकोंपर यात्रा करते समय आपको क्या प्रतीत हुआ ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : हम गाडी से उतरे ही नहीं; परंतु अंदर से जो दिखाई दिया, वह भीषण था !

अ. शक्तिपिठ का दर्शन करने हेतु घर से बाहर निकलते समय हम साथ में भोजन लेकर ही बाहर निकले; क्योंकि वहांपर शाकाहारी भोजनालय नहीं हैं।

आ. वहां ‘मुर्गी एवं मच्छी’ खानेवालों को शाकाहारी समझा जाता है और ‘गाय’ का मांस खानेवाले को मांसाहारी माना जाता है। अतः बाहर कहीं भोजन करने का कोई प्रश्‍न ही नहीं था ! सड़कों पर गोमांस की दुकानें थी। दुकानों के बाहरी बाजू में गायों के कंकाल लटकाए हुए थे। वहां सभी लोग गोमांस (बीफ) खाते हैं। वहांपर गोमांस भक्षण करना प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है। वहां गायों को चराने हेतु छोडा जाता है, वह दूध अर्जित करने हेतु नहीं, अपितु आगे जाकर उनका मांस मिले, यही उनका उद्देश्य होता है !

इ. यहां कोने-कोनेपर बंदुकधारी पुलिसकर्मी हैं, इसका अर्थ वहां उतनी असुरक्षितता है। हम जब चाय पीने रूक गए, तब सडकपर जानेवाले कुछ लोग हमारी गाडी का क्रमांक देख रहे थे। कुछ लोग गाडी के पास आकर गाडी का निरिक्षण कर गाडी के अंदर कुछ है क्या ?, ये देख रहे थे। हम पेट्रोल पंप पर रूक गए, वहां भी इसी प्रकार का अनुभव था। वहां के हिन्दुओं ने हमें यह बता कर रखा था कि, ‘‘आप नीचे सडक पर अथवा बाजार में न घूमें। वहां कोई भी आपका अपहरण करेगा। उनकी इस चेतावनी के कारण ही हम सतर्क थे। ढाका जैसे राजधानी के शहर में हिन्दुओं की ऐसी स्थिति है। वहां के हिन्दू जैसे एक-एक दिन गिन कर जी रहें हैं !

हम तो अतिसुरक्षित क्षेत्र में रह रहे थे। यदि ऐसे क्षेत्र में इतनी असुरक्षितता हो, तो अन्य स्थानोंपर कैसी स्थिति होगी, कल्पना नहीं कर सकते !

ई. वहां कोई भी एक-दूसरे के साथ सहयोग करने का प्रयास नहीं करता। कुल मिलाकर बांग्लादेश में प्रत्यक्षरूप से ‘नरक दर्शन’ हुआ। बांग्लादेश की यदि ऐसी स्थिति है, तो केवल डेढ प्रतिशत शेष बचे ‘हिन्दुओं’की पाकिस्तान में स्थिति कैसी होगी, इसका विचार भी न करें,तो ही अच्छा !

८. राजधानी का शहर ढाका में स्थित गंदगी एवं असुरक्षितता का अनुभव करने से कुल मिलाकर बांग्लादेश की स्थिति की हो गई ‘चावल के दाने से, चावल की परीक्षा’

श्री. राजहंस : बांग्लादेश के ढाका एवं चितगांव में आपने भ्रमण किया, वहांपर कानून एवं व्यवस्था की स्थिति के संदर्भ में आपके क्या अनुभव थे ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : ढाका में ‘कानून एवं व्यवस्था’ दिखी ही नहीं ! वहां के सैनिकों को हमने सदैव ही टोयोटा गाडी से घूमते हुए देखा। यहां के शहर गंदे और मैले हैं। शहर बडे होकर भी वहां पथदीपों की व्यवस्था नहीं है। सब अंधेर नगरी का राज है। राजधानी की यदि ऐसी स्थिति होगी, तो अन्य गावों की स्थिति कैसी होगी ?

वहां अनेक इमारतें हैं और हर इमारत के लिए १० फीट ऊंची दीवार का घेरा तथा उसपर ५ फीट ऊंचाईवाला तार का घेरा होता है। इन इमारतों में सामान्य नागरिक ही रहते हैं, फिर भी वहां ऐसी ही सुरक्षा रहती है, यहां की असुरक्षितता ही उसका कारण है !

९. ढाका शहर में रहकर भी हमारे लिए वहां की ढाकेश्‍वरीदेवी का दर्शन करना संभव न होने के पीछे बांग्लादेश में व्याप्त असुरक्षित वातावरण का ही परिणाम !

श्री. राजहंस : क्या, आपने श्री ढाकेश्‍वरीदेवी के दर्शन किए ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : ढाका की विख्यात श्री ढाकेश्‍वरीदेवी के मंदिर में जाना हमारे लिए संभव नहीं हुआ; क्योंकि १ जनवरी २०१७ को हम ढाका शहर पहुंच गए, तब वहां के स्थानीय सांसद की जमात-ए-इस्लामी के गुंडोंद्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी और उसके कारण वहां का वातावरण तनावपूर्ण था। दूसरे दिन रात में ढाका में जहां हम रह रहे थे, वहां के बाजार में अग्निकांड हुआ। हमने ३ जनवरी को ढाका से निकलने की सुनिश्‍चित करने से श्री ढाकेश्‍वरीदेवी के दर्शन करना हमारे लिए संभव नहीं हुआ।

१०. बांग्लादेश के चितगाव में शक्तिपिठ का दर्शन करने के पश्‍चात उस शक्तिपीठ का जागृत होना, यह बांग्लादेश भ्रमण से साध्य सूक्ष्म में संपन्न कार्य !

श्री. राजहंस : बांग्लादेश में व्याप्त शक्तिपिठों के दर्शन करना क्या, आपके लिए सहजता से साध्य हुआ ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : २.१.२०१७ को हम चितगाव जिले के सीताकुंड नगर का शक्तिपीठ ‘चंद्रगिरी’ जाकर आए। वह श्री भवानीदेवी का मंदिर है और वहां के कालभैरव का नाम ‘स्वयंभूनाथ’ है। चितगाव में दुष्टों का नाश करने हेतु श्री भवानीदेवी खडी है। (छायाचित्र क्र. १ एवं २ देखिए)

श्री भवानीदेवी के मंदिर में आरती उतारती हुई सद्गुरु श्रीमती अंजली गाडगीळजी, साथ में मंदिर के पुजारी
श्री स्वयंभूनाथ की पूजा करती हुई सद्गुरु श्रीमती अंजली गाडगीळजी

श्री. विनायक शानभाग : बांग्लादेश के कुछ शक्तिपिठों को जाने हेतु सुंदरबन में पद्मा (गंगा), मेघना एवं ब्रह्मपुत्रा इन ३ नदियों का जो संगम है, वहां १० कि.मी. लंबाई के नदीपात्र में नौका से जाना पडता है। अतः हमने अन्य ३ शक्तिपिठों को जाने का विचार ही नहीं किया। भारत में सभी शक्तिपिठों की जानकारी गुगल पर सहजता से उपलब्ध होती है; परंतु बांग्लादेश में व्याप्त प्राचीन शक्तिपिठों के विषय में अधिक जानकारी गुगल पर भी उपलब्ध नहीं है, साथ ही वह अन्य किसी के भी पास उपलब्ध होगी, ऐसी भी स्थिति नहीं है !

श्री. दिवाकर आगावणे : चंद्रगिरी शक्तिपीठ के दर्शन करने के पश्‍चात पू. डॉ. ॐ उलगनाथनजी ने कहा, ‘‘एक शक्तिपिठ का दर्शन पर्याप्त हुआ। वहां के शक्तिपीठ ‘सुप्तावस्था’ में हैं। वो परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की शक्ति पहुंचने के पश्‍चात ही जागृत होंगे और तब ईश्‍वर का कार्य आरंभ होगा। ईश्‍वर ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के माध्यम से सब कर रहे हैं। हमें केवल एक माध्यम के रूप में शक्तिपिठों के स्थानोंपर जाना है और वहां की शक्ति को जागृति देनी है। यह सब सूक्ष्म में स्थित सिद्धता चल रही है !

११. मंदिरों के पुजारियों में असुरक्षितता की भावना !

श्री. राजहंस : बांग्लादेश के, मंदिरों के पुजारियों की स्थिति कैसी है ?

श्री. दिवाकर आगावणे : चंद्रगिरी के देवालय में वहां के पुजारियों से मिलनेपर उन्होंने कहा, ‘‘हम आज तो हैं; परंतु कल हमारे प्राण रहेंगे अथवा नहीं, इस विषय में हम आश्‍वस्त नहीं हैं !’’ उनके इतनी भीषण स्थिति में रहने के कारण उन्हें आश्‍वस्त करने हेतु सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी ने उनसे कहा, ‘‘यहां पुनः रामराज्य की स्थापना हो; इसलिए हम यहां आए हैं !’’ तब वहां के पुजारियों के मन में हमारे बारे में अपनापन उत्पन्न हुआ। उनको प्रतीत हुआ आनंद उनके मुखपर भी व्यक्त हो रहा था। इस विषय में महर्षिजी ने नाडीवाचन में बताया, ‘‘आप के चंद्रगिरी जाने के पश्‍चात वहां के पुजारियों को आप के विषय में क्या लगेगा, यह हम बताते हैं। तुम्हें (सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी को) देख कर यहां किसी देवी का ही आगमन हुआ है, ऐसा उनको लगेगा और उन पुजारियों को बहुत आनंद प्रतीत होगा !’’

(संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी पट्टीवाचन क्र. ११२ (१६.१.२०१७) होसूर, तमिलनाडू)

१२. ढाका से चितगाव वाहन से यात्रा करते समय गाडी दुर्घटनाग्रस्त होकर भी हमारी रक्षा होना, यह तो महर्षिजी की ही कृपा !

श्री. राजहंस : ढाका से चितगाव तक का २७३ कि.मी. दूरी की यात्रा के समय क्या, आपको कोई समस्याएं आयीं ?

श्री. दिवाकर आगावणे : चितगाव जाते समय अनिष्ट शक्तियोंद्वारा बहुत बाधाएं आयीं, ऐसा प्रतीत हुआ। जाते समय बहुत कोहरा था। हम पद्मा नदी के पूल पर थे। वहां से नीचे देखने पर नदी भी दिखाई नहीं दे रही थी, इतना कोहरा था। जब हम नदीपर स्थित पुल से जा रहे थे, तब अकस्मात ही एक बडे ट्रक ने हमारी गाडी को पीछे से टक्कर दी। उस टक्कर के कारण गाडी के नंबर प्लेट की बाजू का कुछ भाग अंदर दब गया।

टक्कर के कारण क्षतिग्रस्त हुई सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी की गाड़ी

महर्षिजी ने इस संदर्भ में नाडीवाचन में बताया, ‘आप की गाडी पल्टी होकर आप घायल हों जाएं; इसीलिए किया गया यह आक्रमण था। उससे आपको देवता, गुरु एवं महर्षिजी ने बचाया है !

(संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी पट्टीवाचन क्र. ११३ (१७.१.२०१७), होसूर, तमिलनाडू)

१३. पवित्र गंगा नदी बांग्लादेश की सब से ‘गंदी’ नदी !

श्री. राजहंस : वहां गंगा नदी की स्थिति कैसी है ?

श्री. दिवाकर आगावणे : यहां गंगा नदी को पद्मा नदी कहा जाता है। उसका जल अत्यंत दूषित हुआ है। हमारे देश में गंगा नदी को अत्यंत पवित्र माना जाता है; परंतु यहां गंगा नदी को ‘गंदी नदी’ कहा जाता है। यहां गंगा नदी के तटपर सुबह ११ बजे तक कोहरा था। सायंकाल के ५ – ५.३० बजे वहां पुनः कोहरा आ जाता था। सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी को वह कोहरा न होकर पाताल का वातावरण है, ऐसा लगा। वहां सूर्य निस्तेज दिखाई देता है, उसका प्रखर तेज नहीं दिखाई देता।

१४. भारतीय सीमा से यात्रा करते समय प्राप्त वैशिष्टयपूर्ण अनुभूति

श्री. राजहंस : बांग्लादेश भ्रमण में क्या, आपको कुछ वैशिष्टयपूर्ण अनुभूतियां प्राप्त हुईं ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : हम चंद्रगिरी शक्तिपिठ की ओर जाते समय त्रिपुरा राज्य को लग कर भारतीय सीमा की बाजू से ही यात्रा कर रहे थे। हमने वहां से २०० फीट दूरी पर भारतीय सीमा के अंदर लहराता हुआ तिरंगा भी देखा। हम जिस सीमा से गए, वहां दूसरे ही दिन भूकंप आया और उस भूकंप का केंद्र त्रिपुरा ही था। हम जब त्रिपुरा के निकट की सीमा से यात्रा कर रहे थे, तब मेरे कमर के निचले भाग से पृथ्वीतत्त्व के शक्ति के तरंगों का प्रक्षेपण हो रहा है, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ। उस समय पूरी यात्रा में ‘मुझ में व्याप्त शक्ति एवं मेरा शरिर मुझे मेरा लग ही नहीं रहा था। परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ही मेरे माध्यम से यह भ्रमण कर रहे हैं। मेरा शरिर उनका ही शरिर है और कमर से लेकर नीचे पैरों से उनकी संपूर्ण शक्ति बांग्लादेश के कोने-कोने में फैल रही है, ऐसा मुझे निरंतर प्रतीत हो रहा था।

त्रिपुरा के निकट की भारतीय सीमा से बांग्ला देश में गायों की बडी मात्रा में तस्करी की जाती है। वहां से ही बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत में प्रवेश करते हैं !

१५. बांग्लादेश में हुए भूकंप का अर्थ भू-देवीद्वारा दी गई साक्षी !

श्री. राजहंस : आप के ढाका से निकलने के पहले वहां भूकंप आया था। क्या, उस भूकंप में बहुत हानि हुई ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : वहां भूकंप तो हुआ; परंतु इतना बडा भूकंप होकर भी वहां की इमारतों में दरारें नहीं पडीं। इस संदर्भ में महर्षिजी ने हमें नाडीवाचन में बताया कि, बांग्लादेश में जो भूकंप आया, वह प्रत्यक्षरूप से भूकंप नहीं था, अपितु तुम भू-देवी की पुत्री हो। अतः उसने तुझे जैसे किसी बालक को हिंडोले में डालकर उसको झोंका दिया जाता है, वैसे झोंका दिया। वह केवल तुम्हारे लिए हिंडोला था; परंतु अन्यों के लिए भूकंप था।

(संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी पट्टीवाचन क्र. ११० (९.१.२०१७), ईरोड, तमिलनाडू)

१६. ‘कुछ तो अमंगल होनेवाला है’, ऐसा प्रतीत होने से ५ दिनों के भ्रमण को ३ दिनों में ही सिमट लिया जाना

श्री. राजहंस : आपने ५ दिनों के इस भ्रमण को ३ ही दिनों में क्यों, सिमट लिया ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : १.१.२०१७ की रात में सोने के पश्‍चात मुझे सूक्ष्म से ऐसा प्रतीत होने लगा कि, हम जिस घर में निवास कर रहे थे, वह घर ढाका के अतिसुरक्षित क्षेत्र में है; परंतु यहां भी सब असुरक्षित ही है। मुझे रातभर युद्ध की घटनाएं दृश्यरूप में दिखाई दे रहीं थी। ‘वहां बाहर से कोई आकर ही आपको मार देगा ऐसा नहीं, अपितु वहां की गली-गलीयों में शस्त्र लेकर घूमनेवाले आपपर कभी भी आक्रमण कर सकते हैं’, ऐसा दृश्य मुझे ईश्‍वर ने दिखाया।

• २.१.२०१७ की रात में ढाका के बाजार में हुआ अग्निकांड किसी भी तांत्रिक कारण से नहीं, अपितु किसी के द्वारा हेतुपूर्वक किया गया है, ऐसा संदेह वहां के व्यापारी व्यक्त कर रहे थे। अतिसुरक्षित माने जानेवाले इस क्षेत्र में तथाकथित सुरक्षा की यह स्थिति थी। कुल मिलाकर वहां की भीषणता, संदेह का वातावरण और हमें किसी भी क्षण हानी पहुंचने की संभावना के कारण हमने ५ जनवरी के स्थानपर ३ जनवरी को ही वहां से वापस निकलने का निर्णय किया।

• ३.१.२०१७ दोपहर के ३ बजकर ९ मिनट को ढाका में बडा भूकंप आया। भूकंप आने के आधे घंटे पूर्व ही ‘कुछ तो अमंगल होनेवाला है’, ऐसा मुझे प्रतीत होने से मैने श्री. विनायक शानभाग से कहा, ‘‘हम यहां और रूके, तो हमारे प्राण संकट में पड सकते हैं; इसलिए हम आज ही यहां से निकलेंगे !’’ उसके पश्‍चात आधे घंटे में ही वहां भूकंप आ गया। अतः हम हमारी सामग्री भरकर वहां से बाहर निकल पड़े। ईश्‍वर की कृपा से प्रयास करने के पश्‍चात ५ जनवरी का विमान का टिकट परिवर्तन कर हमें ३ जनवरी के लिए मिला। हम ३ जनवरी की रात में ही विमान से ढाका से कोलकाता पहुंच गए।

इस संदर्भ में महर्षिजी ने नाडीवाचन में बताया, ‘आप ३ जनवरी को ही वहां से निकल आए, यह अच्छा हुआ। आगे जाकर बांग्लादेश का भारत में विलय होगा, तब हम पुनः वहां जाएंगे। अब पुनः चितगाव में जाना संभव नहीं है। अतः आप तुळजापुर जा कर श्री भवानीदेवी के दर्शन कर आइए। आप के बांग्लादेश में जा कर आने से वहां पर शक्तितत्त्व कार्यरत हुआ है। अब देखिए, वहां क्या होता है !’

(संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी पट्टीवाचन क्र. ११२ (१६.१.२०१७), होसूर, तमिलनाडू)

१७. ‘बांग्लादेश’ एवं ‘ब्रह्मदेश’ का महर्षिजीद्वारा बताया गया भविष्य !

श्री. राजहंस : बांग्लादेश के संदर्भ में महर्षिजी ने नाडीवाचन में और क्या, कहा है ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : हां, बताया है। महर्षिजी ने कहा, ‘बांग्लादेश का अर्थ खून की नदियां बहनेवाला देश है। भारत के पडोसी ब्रह्मदेश एवं बांग्लादेश इन दो देशों में सदैव कुछ न कुछ विचित्र घटनाएं होती रहती हैं। ये दोनों देश विश्‍व के मानचित्र से नष्ट होनेवाले हैं, अर्थात उनका भारत में विलय होनेवाला है। आनेवाले समय में हम आपको बांग्लादेश के अन्य भागों में भी भेजेंगे, तब आपको वहां जाना पडेगा !’

(संदर्भ : सप्तर्षि जीवनाडी पट्टीवाचन क्र. ११२ (१६.१.२०१७), होसूर, तमिलनाडू)

१८. कमंडलु की भांति दिखाई देनेवाले प्लास्टिक के बरतनों का उपयोग शौचालयों में किया जाना, हिन्दुओं का दमन करने का प्रकरण !

श्री. राजहंस : क्या बांग्लादेश में हेतुपूर्वक हिन्दुओं का दमन की जाने की कुछ घटनाएं आपके ध्यान में आयीं ?

सद्गुरु श्रीमती गाडगीळकाकूजी : एक घटना ध्यान में आयी और वह यह थी कि, हिन्दू पूजा-अर्चना में कमंडलु का उपयोग करते हैं; परंतु बांग्लादेश में उसी आकार के प्लास्टिक से बने बरतनों का उपयोग शौचालयों में किया जाता है। हिन्दुओं की आस्थाओंपर आघात करने हेतु तथा उनका दमन करने हेतु वहां के मुसलमानोंद्वारा यह कृत्य हेतुपूर्वक किया जाता है, ऐसा लगता है !

१९. ढाका हवाई अड्डेपर भारत में जानेवाले बांग्लादेशी मुसलमानों को बडी सहजता से छोडे जाने के संदर्भ में प्राप्त अनुभव

श्री. राजहंस : बांग्लादेश से भारत आते समय ढाका हवाई अड्डेपर क्या, आपने कुछ अलग अनुभव किया ?

श्री. दिवाकर आगावणे : हां, इस हवाई अड्डेपर बहुत ढिलाई से काम किया जाता है। हम जब भारत से ढाका पहुंचे, तब हमारी बहुत जांच की गई; परंतु बांग्लादेश से भारत जाते समय उतनी जांच नहीं की जाती, ऐसा हमारे ध्यान में आया। भारत आनेवले बांग्लादेशी मुसलमानों को वहां बडी सहजता से छोडा जाता है। हवाई अड्डेपर एक मुसलमान महिला बिना किसी जांच ही अंदर गई। बांग्लादेशी महिला निरक्षर हैं। उनको विमान कहां जानेवाला है अथवा हवाई अड्डेपर होनेवाले नियमों के विषय में कोई जानकारी नहीं होती है। अतः हवाई अड्डेपर स्थित महिला कर्मचारी ही उनकी औपचारिकताओं को पूरा कर देती हैं। एक देश से दुसरे देश जानेवाले यात्रियों के संदर्भ में एक देश इतनी लापरवाही कैसे बरतता है ?, ऐसा प्रश्न मन में आया।

बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा होकर भी वहां से अमेरिका अथवा युरोप के देशों में जाने हेतु विमान सेवा नहीं है। बांग्लादेश से सौदी अरेबिया, शारजाह, ओमान आदि मुसलमान देशों में जाने के लिए विमान सेवा है; क्योंकि अनेक बांग्लादेशी लोग नौकरी करने खाडी देशों में जाते हैं।

२०. बांग्लादेश से लौटने के पश्‍चात वहां के असुरक्षित जीवन का मन पर हुए परिणाम का भान !

श्री. राजहंस : बांग्लादेश से कोलकाता पहुंचनेपर क्या, आपको कोई अलग प्रतीत हुआ ?

श्री. दिवाकर आगावणे : बांग्लादेश की तुलना में कोलकाता शहर में अल्प दबाव प्रतीत हो रहा था। यहां आनेपर मन में व्याप्त असुरक्षितता की भावना अल्प हो गई। बांग्लादेश में हर क्षण असुरक्षित लग रहा था। बाहर कोई दंगा प्रारंभ होनेपर हमारे मन की स्थिति जिस प्रकार होती है, उसी प्रकार हमारी मानसिक स्थिति भय से युक्त है, ऐसा बांग्लादेश में प्रतीत हो रहा था !

– श्री. चेतन राजहंस, उपसंपादक, सनातन प्रभात नियतकालिक समूह

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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