महाराष्ट्र १ वाहिनी द्वारा सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. अभय वर्तक से अपमानजनक व्यवहार !

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मुंबई – मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जगद्गुरु नरेंद्र महाराजजी के कार्यक्रम में उपस्थित होकर धर्मसत्ता राजसत्ता की अपेक्षा श्रेष्ठ है !, ऐसा वक्तव्य दिया था । इस संदर्भ में १७ अक्तूबर को महाराष्ट्र १ वाहिनी द्वारा चर्चासत्र का आयोजन किया था । इसमें सम्मिलित होने हेतु सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. अभय वर्तक को भी आमंत्रित किया गया था; परंतु उनके द्वारा आजाद प्रांगण में हुए दंगे के संदर्भ में दिए गए वक्तव्य के कारण चर्चासत्र के सूत्रसंचालक निखिल वागळे ने श्री. अभय वर्तक से अपमानजनक व्यवहार कर श्री. वर्तक को कार्यक्रम से बाहर जाने के लिए कहा । (सभाशास्त्र के सामान्य नियमों का भी पालन न करनेवाली महाराष्ट्र १ वाहिनी, इस प्रकार के चर्चाआें के माध्यम से समाज के लिए कौन सा रचनात्मक संदेश देती होगी, इसका विचार ही न करना अच्छा ! चर्चा में सम्मिलित वक्ताआें के विचार को पूरा तथा अलिप्तता से सुनना सूत्रसंचालक के लिए अपेक्षित होता है । ऐसा न कर स्वयं के मत के विरोध में मतप्रदर्शन करनेवालों से चिल्लाकर उनको अपने विचार प्रकट करने से रोकना तथा उनको चर्चासत्र से बाहर जाने के लिए कहना, सभ्यता नहीं है ! इसका अर्थ अन्य समय विचारों की लडाई विचारों से लडनी चाहिए, इस प्रकार का दृष्टिकोण देनेवाले स्वयं ही अन्यों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन कर रहे हैं, यही होता है ना ! – संपादक)

१. चर्चासत्र के समय अंनिस के अविनाश पाटिल द्वारा बार-बार जगद्गुरु नरेंद्र महाराजजी का उल्लेख पाखंडी इस शब्द का प्रयोग कर कर रहे थे ।

२. उसपर श्री. अभय वर्तक ने आपत्ति जताकर कहा कि, जगद्गुरु नरेंद्र महाराजजी को पाखंडी कहनेवाली अंनिस मदर तेरेसा को पाखंडी नहीं कहती । इससे अंनिस में हिन्दुत्व के प्रति विद्यमान द्वेष दिखाई देता है, ऐसा वक्तव्य दिया । इसपर अविनाश पाटिल निरुत्तर हो गए तथा उन्हों ने विषयांतर कर पुनः जगद्गुरु नरेंद्र महाराजजी के प्रति अनुचित वक्तव्य देना प्रारंभ किया ।

३. उसपर श्री. अभय वर्तक ने अंनिस के पाखंड का रहस्यभेदन करने हेतु आजाद प्रांगणपर रजा अकादमी द्वारा किए गए हंगामे का उदाहरण दिया । इस दंगे में अनेक महिला पुलिसकर्मियों का शीलभंग किया गया था । इसके संदर्भ में श्री. वर्तक द्वारा विषय उपस्थित किए जानेपर निखिल वागळे ने श्री. वर्तक को अपनी ताकपर रखने का प्रयास किया ।

४. श्री. वर्तक द्वारा उपस्थित किए गए सूत्र को पूरा सुनने के पहले ही वागळे ने ‘मैं इस व्यासपिठ का उपयोग आपको झूठापन दिखाने हेतु नहीं करने दूंगा । आप यहां से चले जाईए । इसके आगे मैं सनातन के किसी प्रतिनिधि को यहां उपस्थित रहने नहीं दूंगा । आप यहां से बाहर जाईए’, इस प्रकार के अपमानजनक वक्तव्य दिए ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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