मुगलों से लोहा लेने वाले राजा छत्रसाल की रानी का समाधि स्थल झेल रहा है पुरातत्व विभाग की अनदेखी का दंश

पर्यटन स्थल बना खंडहर

बेरछा रानी का मकबरा

जिस बुंदेला राजा से छतरपुर की पहचान है आज उनकी निशानियों को ही प्रशासन से संरक्षण की दरकार है। बुंदेलखंड में किसी दौर में राजा छत्रसाल का साम्राज्य था। लेकिन उनके दौर की विरासतें आज अनदेखी का दंश झेल रही हैं। बुंदेला राजा छत्रसाल ने मुगल बादशाह औरंगजेब से लोहा लेते हुए बुंदेलखंड की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। उनके यशगान को बताने वाली धरोहरें आज छतरपुर जिले के कोने-कोने में बिखरी हैं लेकिन पुरातत्व विभाग इन्हें संवारने की जहमत नहीं उठा रहा।

छतरपुर जिले का महेवा ग्राम राजा छत्रसाल की कर्म भूमि रहा है। जो कागजों में पर्यटन क्षेत्र भी है। यहां की ऐतिहासिक धरोहर पुरातत्व विभाग के अधीन हैं। इन्हीं धरोहरों में राजा छत्रसाल की द्वितीय रानी ज्ञानकुंअरी का मकबरा भी शामिल है।

मकबरे तक पहुंचने के लिए एक कच्ची सड़क है।

इतिहासकार योगेंद्र प्रताप सिंह के अनुसार राजा छत्रसाल बाल्य अवस्था में थे जब उनके पिता चम्पतराय मुगलों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। चम्पतराय को आशंका थी कि पुत्र छत्रसाल के साथ मुगल शासक अनहोनी कर सकते हैं, इसलिए चम्पतराय ने अपने करीबी महाबली के साथ छत्रसाल को सुरक्षित स्थान पर भेजा था और महाबली को छत्रसाल का विवाह बेरछा राजघराने के परमार वंश में करने की बात कही थी।

दतिया जिले के सेवढा के पास बेरछा स्टेट की राजकुमारी ज्ञानकुंअरी थी, जिनका विवाह राजा छत्रसाल के साथ हुआ। ग्राम महेवा में बछुआ तालाब के किनारे राजा छत्रसाल की द्वितीय रानी ज्ञानकुंअरी (बेरछा रानी) का मकबरा मौजूद है। जो पुरातत्व विभाग के अधीन है। लेकिन ये मकबरा आज अनदेखी का शिकार है। इस क्षेत्र को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है, लेकिन अनदेखी के चलते ये अपना अस्तित्व खोने को मजबूर है। देवपुरा से महेवा मुख्य मार्ग से लगभग पांच किमी दूर स्थित मकबरे तक पहुंचने के लिये कोई मार्ग नहीं है। जंगली क्षेत्र में पगड़ंडियों से गुजरते हुए मकबरे तक पहुंचना पड़ता है। मकबरे पर लाइट तक की व्यवस्था नहीं है। रखरखाव ना होने से पूरा मकबरा क्षतिग्रस्त हो रहा है। यहाँ तक कि मकबरे के भीतर मवेशियों का ठिकाना है, जबकि पर्यटकों के लिये यह मकबरा आकर्षण का केंद्र बन सकता है और पिकनिक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।

पुरातात्विक स्थल होने के बावजूद मकबरा अनदेखी का दंश झेल रहा है।

छतरपुर से नौगांव मुख्य मार्ग पर मऊ सहानियां में कुछ साल पहले राजा छत्रसाल की आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है। जहां महाराज छत्रसाल को याद करते हुए हर साल जलसा होता है। राजनीति से जुड़े नामी चेहरे आते हैं, जो राजा छत्रसाल के जीवन पर क़सीदे पढ़ जाते हैं। कुछ नई घोषणाएं भी हो जाती हैं, लेकिन कुछ ही दूर राजा छत्रसाल की कर्मभूमि महेवा में बिखरी धरोहरें आंसू बहा रही हैं।

राजा छत्रसाल से दिखावटी प्रेम को दर्शाने वाली कई तस्वीरों में उनकी रानी का भी मकबरा है। जब राष्ट्र भक्ति का प्रेम जागा और मुगलों के समय की ईमारतें निशाने पर हैं तो परिवर्तित समय में कम से कम शासकों की धरोहरों को सुरक्षित कर दिया जाये, जिन्होंने मुगलों से जंग लड़ी और इतिहास में जिनके नाम अमर हैं।

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