दिल्ली हिंसा पर विदेशी मीडिया का हिन्दू विरोधी कवरेज अर्थात भारत को विभाजित करने प्रयास !

#DNA : जब डोनाल्ड ट्रंप ने दिल्ली दंगों के सवाल पर पश्चिमी मीडिया को दिखाया था आईना

#DNA : जब डोनाल्ड ट्रंप ने दिल्ली दंगों के सवाल पर पश्चिमी मीडिया को दिखाया था आईना Sudhir Chaudhary

Posted by Zee News on Friday, February 28, 2020

आज से 200 वर्ष पहले अंग्रेजों ने भारत को धर्म के आधार पर बांट दिया था। अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ वाली नीति की वजह से हिंदू और मुसलामन एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। अंग्रेज बार-बार अपने षडयंत्र में सफल होते रहे और इसके नतीजे में भारत आज तक धर्म के आधार पर हुए बंटवारे का दर्द झेल रहा है। 73 साल पहले अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए थे लेकिन विदेशी मीडिया आज भी हजारों मील दूर से ही भारत को बांटने की कोशिश में लगा है। सच ये है कि दिल्ली में दंगे हुए और इसमें दोनों धर्मों के लोग मारे गए लेकिन विदेशी मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इसे भारत के मुसलमानों के खिलाफ की गई साजिश बता रहा है। आज हम विदेशी मीडिया के इस दुष्प्रचार का पर्दाफाश करेंगे।

सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि इन दंगों के दौरान कैसे ISIS वाली मानसिकता के दम पर हैवानियत की सारी हदें पार कर दी गईं। दिल्ली के चांद बाग इलाके में हुए दंगों में IB अधिकारी अंकित शर्मा की भी मौत हो गई थी। अंकित शर्मा की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि उनके शरीर पर एक दो नहीं, बल्कि 400 बार चाकू से वार किए गए थे। बर्बरता का ऐसा उदाहरण सिर्फ ISIS के आतंकवादियों द्वारा ही पेश किया जाता था। जब बगदादी जिंदा था, तब उसके इशारे पर ही आतंकवादी इतने निर्मम तरीके से लोगों की हत्या करते थे लेकिन अब ISIS वाली वो सोच भारत में भी प्रवेश कर चुकी है और देश की राजधानी दिल्ली की गलियों में ISIS की विचारधारा को अपनाकर कुछ लोगों ने अपने ही पड़ोसियों की जान ले ली।

दिल्ली दंगों से जुड़ा आज का अपडेट ये है कि, अब तक इन दंगों में ४२ लोगों की मौत हो चुकी है। दिल्ली पुलिस इस मामले में 123 FIR दर्ज कर चुकी है और 630 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है। जैसे-जैसे दंगे की साजिश से पर्दा उठ रहा है वैसे वैसे लोगों को ये पता चल रहा है कि देश की राजधानी दिल्ली में दंगाइयों की एक भीड़ ऐसी भी थी जो लोगों को जानवरों की तरह मार रही थी और अंकित शर्मा ऐसी ही एक भीड़ का शिकार हो गए थे लेकिन विदेशी मीडिया ये सच्चाई नहीं दिखाना चाहता । बल्कि कुछ विदेशी समाचारपत्र तो अंकित शर्मा की हत्या को भी गलत ढंग से पेश कर रहे हैं।

अमेरिका के एक मशहूर समाचारपत्र द वॉल स्ट्रीट जर्नल (The Wall Street Journal) में अंकित शर्मा की मौत से जुड़ा एक झूठा दावा किया गया था। समाचारपत्र ने अपनी रिपोर्ट में अंकित शर्मा के भाई के साथ फोन पर हुई बातचीत के हवाले से लिखा था कि, अंकित शर्मा की हत्या जिस भीड ने की वो ‘जय श्रीराम’ के नारे लगा रही थी लेकिन अंकित शर्मा के भाई ने इस बात से साफ इनकार किया है। अंकित शर्मा के भाई का दावा है कि, ये हत्या आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के इशारे पर की गई थी। दिल्ली पुलिस ने इस मामले में ताहिर हुसैन के खिलाफ हत्या का मामला भी दर्ज कर लिया है। यानी विदेशी मीडिया इन दंगों की गलत तस्वीर पेश करके भारत को बांटने की कोशिश कर रहा है लेकिन ये सिर्फ एक उदाहरण है। पश्चिमी मीडिया के ज्यादातर समाचारपत्र और न्यूज चैनल दिल्ली दंगों पर झूठ और अफवाह फैला रहे हैं। आप इसे फेक न्यूज़ भी कह सकते हैं। The Wall Street Journal ने कैसे अंकित शर्मा की हत्या के मामले में झूठी रिपोर्टिंग की इसका अंदाजा आप उनके भाई की बातें सुनकर लगा सकते हैं।

अब तक इन दंगों में ४२ लोगों की मौत हो चुकी है और मारे गए लोगों में हिंदू भी हैं और मुसलमान भी। कल जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार कल दोपहर ढाई बजे तक दिल्ली के दंगों में मार गए लोगों की संख्या ३५ हो चुकी थी। इनमें १० हिंदू और १६ मुसलमान थे जबकि ९ लोग ऐसे थे जिनकी पहचान नहीं हो सकी है। कुल मिलाकर इस हिंसा में हिंदू और मुसलमान दोनों की जान गई है। किसी भी इंसान की जान नहीं जानी चाहिए और इसकी सभी को निंदा करनी चाहिए।। लेकिन पश्चिमी मीडिया इस मामले पर एक तरफा रिपोर्टिंग कर रहा है।

जिन घरों और दुकानों को जलाया गया है। उसके मालिक हिंदू भी थे और मुसलमान भी लेकिन विदेशी मीडिया इसे सिर्फ हिंदुओं द्वारा मुसलमानों पर की गई हिंसा बताने की कोशिश कर रहा है। आज हमारे पास कुछ विदेशी समाचारपत्रो में छपी हेडलाइन और खबरों की कटिंग है जिन्हें पढकर आप समझ जाएंगे कि कैसे विदेशी मीडिया इन दंगों पर एक विशेष एजेंडे के तहत रिपोर्टिंग कर रहा है।

अमेरिका का मशहूर समाचारपत्र द न्यूयॉर्क टाइम्स (The New York Times) लिखता है, “As New Delhi Counts The Dead।।।Questions Swirl About Police Response। लेकिन इस Headline के नीचे जो पैराग्राफ है आपको उस पर गौर करना चाहिए। यहां समाचारपत्र लिखता है। Witness Say Officers Stood By।। When Hindu Mobs Attacked Muslims।

आज अमेरिका के एक और मशहूर समाचारपत्र इजिप्त इंडिपेंडंट में भी दिल्ली दंगों पर खबर छापी गई है जिसमें लिखा गया है:
India’s Hard Line Hindu Nationalist Watched Anti- Government Protests Centered in Muslim Communities For Months In anger That Finally Boiled Over In the Worst Communal Rioting In New Delhi In Decades, Leaving 38 People Dead And The Indian Capital Shell Shocked।

यानी पश्चिमी मीडिया भारत में हुई हिंसा के बहाने अपना एजेंडा साधना चाहता है लेकिन आज हम पश्चिमी मीडिया के इस पाखंड में छेद करके रहेंगे। अमेरिका को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कहा जाता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले करीब ढाई सौ वर्षों में अमेरिका में जातीय हिंसा की 400 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं और इनमें हज़ारों लोग मारे भी गए हैं यानी अमेरिका में पिछले 200 वर्षों में हर साल जातीय दंगों की करीब 2 घंटनाएं हुई हैं।

जबकि भारत में वर्ष 1671 से लेकर अब तक करीब 88 बड़े दंगे हुए हैं। यानी हर 4 साल में एक दंगा हम ये नहीं कह रहे कि दंगों या हिंसा के मामले में भारत का रिकॉर्ड कोई बहुत अच्छा है लेकिन हम ये कह रहे हैं कि जिन देशों का रिकॉर्ड इस मामले में बहुत बुरा है। उन्हें भारत जैसे देशों पर ऐसी टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए और पहले अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए। भारत में जब किसी व्यक्ति की मॉब लिंचिंग होती है तो पश्चिमी मीडिया में उसे बड़ी हेडलाइन के रूप में पेश किया जाता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका को मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाने में 120 वर्ष से लग गए।

अमेरिका की संसद में दो दिन पहले ही मॉब लिंचिंग के खिलाफ एक कानून पास किया गया है जिसका नाम है Emmett Till Anti-lynching Act। Emmett Till 14 साल का एक अश्वेत अमेरिकन लड़का था जिसकी 1955 में निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी और उसके दोषियों को सज़ा भी नहीं हो पाई थी। अमेरिका के सांसदों की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1882 से लेकर 1968 के बीच।।रंग भेद की वजह से 4 हज़ार 7४२ लोगों की हत्या की गई लेकिन 99 प्रतिशत दोषियों को कभी कोई सज़ा नहीं मिल पाई। अल्पसंख्यकों के खिलाफ इतने खराब रिकॉर्ड के बावजूद अमेरिकी और पश्चिमी मीडिया को भारत में कट्टरता बढ़ती हुई दिखाई देती है ।जबकि सच ये है कि ये कट्टरता पूरी दुनिया में बढ रही है और सिर्फ भारत इसके केंद्र में नहीं है।

स्त्रोत : जी न्यूज

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