राम जन्मभूमि प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या मस्जिद में हो सकती हैं देवी-देवताओं की कलाकृतियां ?

नई देहली : अयोध्या राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई के दौरान मंगलवार को मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट के खरे-खरे सवालों का सामना करना पडा। न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष से खंबों पर मूर्तियों और कमल के चित्रों को लेकर कई सवाल किए। न्यायालय पूछा क्या इस्लाम के मुताबिक मस्जिद में ऐसे चित्र हो सकते हैं। क्या किसी और मस्जिद में ऐसे चित्र होने के सबूत हैं। इसके अलावा न्यायालय ने राजीव धवन की ओर से १९९१ की चार इतिहासकारों की रिपोर्ट को साक्ष्य में स्वीकारे जाने की दलील पर कहा कि रिपोर्ट न्यायालय में साक्ष्य नहीं हो सकती वह महज राय है। बहस बुधवार को भी जारी रहेगी।

जागरण में प्रकाशित समाचार के अनुसार, चार इतिहासकारों इरफान हबीब, सूरजभान, डीएन झा और एसके सहाय ने १९९१ में रिपोर्ट दी थी जिसमे कहा था कि यह साबित नहीं होता कि मंदिर तोडकर मस्जिद बनाई गई थी। उच्च न्यायालय ने इस रिपोर्ट को साक्ष्य मे इसलिए स्वीकार नहीं किया था क्योकि रिपोर्ट देने वाले एक लेखक डीएन झा ने उस पर हस्ताक्षर नहीं किये थे। मुस्लिम पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस रिपोर्ट को न्यायालय मे पेश कर इसे साक्ष्य में स्वीकारे जाने की दलील दी थी।

इतिहासकारों की रिपोर्ट महज राय

सुनवाई को दौरान राजीव धवन ने चार इतिहासकारों की रिपोर्ट का हवाला देकर कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा इसे स्वीकार न किया जाना गलत है। रिपोर्ट देने वाले लोग जानेमाने इतिहासकार हैं। इन दलीलों पर पीठ के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि जब इतिहासकारों ने यह रिपोर्ट दी तब एएसआइ की खुदाई के बाद आई विस्तिृत रिपोर्ट मौजूद नहीं थी।

क्या मस्जिद में हो सकते हैं फूल और जानवरों के चित्र

इस बहस से पहले जब धवन अपना दावा साबित करने के लिए न्यायालय का ध्यान १९५० की कुछ फोटो की ओर दिलाना चाह रहे थे उसी समय जस्टिस एसए बोबडे ने एक फोटो पर कहा कि रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने इसे गरुण का चित्र बताया है जो कि हिन्दू देवता हैं। उन्होंने धवन से कहा कि अगर आप इसे मस्जिद बता रहे हैं तो वहां फूल और जानवरों आदि के चित्र नहीं होने चाहिए। न्यायालय ने कहा कि वहां मिले कसौटी के खंबों पर कमल और अन्य मूर्तियां अंकित मिली हैं।

धवन ने कहा कि वहां स्पष्ट तौर पर देवता की मूर्ति होने के साक्ष्य नहीं हैं और कमल का फूल और अन्य चित्र सजावट के लिए है। इसे इस्लाम के खिलाफ नहीं कहा जा सकता और न ही इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि वह जगह मस्जिद नहीं रही अथवा वहां पढी गई नमाज मान्य नहीं होगी। तभी जस्टिस अशोक भूषण ने हनुमान द्वार के दोनों खंबों पर बनी द्वारपाल जय विजय की मूर्ति के बारे मे धवन से सवाल किया।

जस्टिस बोबडे ने पूछा कि, क्या मस्जिद में ऐसे चित्र हो सकते हैं ? क्योंकि उच्च न्यायालय ने फैसले में कहा है कि खंबे पर हिन्दू देवताओं के चित्र हैं। बताइये कि क्या कहीं और मस्जिद में ऐसे चित्र होने के साक्ष्य हैं ? धवन ने कहा कि कुतुबमीनार में देवता की मूर्ति अंकित है तभी निर्मोही अखाडा के वकील एसके जैन ने कहा कि वहां जैन मंदिर था और वह जैन देवता की मूर्ति है।

जस्टिस बोबडे ने फिर सवाल किया कि इस मामले में कोई सबूत है जिसमें मस्जिद में ऐसे चित्र होने की बात कही गई हो ? धवन ने कहा नहीं। लेकिन सीधे तौर पर देवता की मूर्ति होने के भी साक्ष्य नहीं हैं। इस आधार पर उसे कुरान के खिलाफ नहीं कहा जा सकता। जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि हिन्दू इन खंबों से साबित करते हैं कि यह उनकी पवित्र जगह है जहां मस्जिद बनाई गई।

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