कर्मफल का सिद्धांत

जीवन कर्ममय है । कर्मफल अटल है । अच्छे कर्म का फल पुण्य है तथा उससे सुख प्राप्त होता है, जबकि दुष्कर्म कर्म का फल पाप है एवं उससे दुःख प्राप्त होता है । हम देखते हैं कि अनेक बार ‘सदाचरणी होकर भी सज्जन जीवन में दुःख भोगते हैं, जबकि गुंडे, भ्रष्टाचारी इत्यादि दुर्जन अनेक दुष्कृत्य करने के उपरांत भी ऐश्वर्यादि सुखका उपभोग करते हैं ।’ तब ‘दुर्जनों को उनके पापों का फल क्यों नहीं मिलता ?’, यह प्रश्न किसी के भी मन में उत्पन्न हो सकता है । पूर्वजन्मों के पुण्य-संचय के कारण दुर्जनों को सुख प्राप्त होता है; परंतु पुण्य का भंडार समाप्त होने पर उनके पापकर्मों का फल, अर्थात् रोग, दरिद्रतादि दुःख एवं मृत्यु के उपरांत नरकवासादि दुःख उन्हें भोगने ही पडते हैं; इससे कोई छूट नहीं सकता । संक्षेप में, अच्छे-बुरे कर्मों का फल मनुष्य को मिलता ही है । कर्मयोग का आचरण करनेवाले मोक्षार्थी को कर्म इस प्रकार करने पडते हैं कि उसका फल ही न मिले; क्योंकि ऐसा कर्म कर्मफल के बंधन में नहीं अटकाता । ऐसे कर्म चरणदर-चरण कैसे कर सकते हैं, इसका दिशानिर्देशन इस वीडियो द्वारा किया गया है ।

कर्मफल सिद्धांत के विषय में जानकारी देनेवाले वीडियो


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