धर्म-परिवर्तनका समर्थन करनेवाले अनुचित विचारों व आलोचनाओंका खंडन

अनेक हिंदुत्वनिष्ठ संघटनाएं तथा धर्माभिमानी व्यक्तियां धर्म-परिवर्तनके विरुद्ध कार्य कर धर्मरक्षण के लिए तत्पर रहते हैं । प्रस्तुत लेखमें हम धर्म-परिवर्तनका समर्थन करनेवाले धर्मद्रोहियोंकी आलोचनाओं का ये संघटनाएं किस प्रकारसे खंडन कर सकती हैं, इसके बारेमें अवगत होंगे ।

 

१. धर्म-परिवर्तनसे अस्पृश्यता समाप्त होती है, यह असत्य प्रचार !

अनुचित विचार : धर्म-परिवर्तनसे अस्पृश्योंकी अस्पृश्यता नष्ट होती है ।

खंडन

अ. धर्म-परिवर्तनसे धर्मांतरितोंको स्पृश्यके अधिकार प्राप्त होते हैं, यह असत्य है । संस्कृतिकोशके रचनाकार पं. महादेवशास्त्री जोशीने स्पष्ट कहा है, ‘बाहरसे आए मुसलमान स्वयंको श्रेष्ठ तथा धर्मांतरितोंको तुच्छ मानते हैं । इसी प्रकार पश्चिमी गोरे ईसाई भी धर्मांतरित काले ईसाइयोंसे समानताका व्यवहार नहीं करते ।’

आ. ‘मुसलमान हिंदु-धर्मांतरित मुसलमानोंको दलितोंसे भी तुच्छ मानते हैं । उनके हाथोंसे अन्न-जल नहीं लेते । कनिष्ट जातिके हिंदुद्वारा इस्लाम धर्म स्वीकारने पर उसके साथ दलितकी अपेक्षा हीन स्तरका व्यवहार किया जाता है । कुलु, जुलाहे, मछुआरे आदि जातिके मुसलमानोंसे उच्च वर्गके मुसलमान संबंध
नहीं रखते ।’

२. स्वाभिमानशून्य व्यक्ति धर्म-परिवर्तनकी बलि चढते हैं !

आलोचना : सवर्णोंके अत्याचारोंके कारण अवर्णोंको धर्मांतरण करना पडा तथा आज भी करना पडता है !

खंडन : ‘प्रलोभन, मोह, भ्रम, दबाव, अत्याचार इत्यादिके कारण ही हिंदुओंका ईसाईकरण हुआ है तथा वह सवर्ण-अवर्ण इन सभी स्तरोंपर हुआ है । शास्त्री-पंडित ब्राह्मण कुलसे आरंभ होकर शूद्रवर्णके लोगोंतकका धर्म-परिवर्तन हुआ है तथा हो रहा है । महाराष्ट्रकी पंडिता रमाबाईके धर्म-परिवर्तनका इतिहास तो प्रसिद्ध ही है । आंध्रप्रदेश, केरल, तमिलनाडु, प. बंगाल आदि प्रदेशोंमें उच्चवर्णियोंके धर्म-परिवर्तनकी घटनाएं अल्प नहीं हैं । इस कारण यह कहना कि सवर्णोंके कारण धर्म-परिवर्तन हुआ, केवल दुष्प्रचार है । स्वाभिमान शून्य किसी भी जाति और स्तरका व्यक्ति धर्म-परिवर्तनकी बलि चढ सकता है, यह निःसंदिग्ध इतिहास है ।’

– त्रैमासिक ‘प्रज्ञालोक’ (९.४.१९८२)

संदर्भ : हिंदु जनजागृति समितीद्वारा समर्थित ग्रंथ ‘धर्म-परिवर्तन एवं धर्मांतरितोंका शुद्धिकरण’

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