बंदर क्या जाने अद्रक का स्वाद ? इस कहावत को हिन्दू धर्म के संदर्भ में वास्तविक बनानेवाले स्वतंत्रता से लेकर अबतक के सर्वदलीय राज्यकर्ता एवं बुद्धीजीवी (धर्मद्रोही) !

शिक्षा में व्याप्त भूगोल, गणित, विज्ञान, वनस्पतिशास्त्र, प्राणीशास्त्र, व्याकरण इत्यादि सभी विषय, साथ ही स्वास्थ्य, संगीत, भाषा, स्थापत्यशास्त्र, खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, राज्यशास्त्र, अध्यात्मशास्त्र इत्यादि सभी क्षेत्रों में निहित विस्मयचकित करनेवाला ज्ञान हिन्दू धर्म में बताया गया है; परंतु उसे स्वतंत्रता से लेकर अबतक के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में अंतर्निहित कर उसे न सीखाकर छात्रों को एवं जनता … Read more

सत्ययुग में नियतकालिक, दूरचित्रवाहिनियां, संकेतस्थळ इत्यादि की आवश्यकता ही नहीं थी; क्योंकि . . .

सत्ययुग में नियतकालिक, दूरचित्रवाहिनियां, संकेतस्थळ इत्यादि की आवश्यकता ही नहीं थी; क्योंकि उस समय अनिष्ट वार्ताएं ही नहीं थी तथा सभी लोग निरंतर ईश्‍वर के अनुसंधान में होने से आनंदित थे ।

पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे ज्ञान देनेवाला कुछ तो है, यह ज्ञात न होने से विज्ञानवादियों द्वारा किया गया अनुसंधान बचपने जैसा होता है ।

पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे ज्ञान देनेवाला कुछ तो है, यह ज्ञात न होने से विज्ञानवादियों द्वारा किया गया अनुसंधान बचपने जैसा होता है ।

बाल्यावस्था जैसी पाश्‍चात्त्य शिक्षा !

पाश्‍चात्त्यों द्वारा दी जानेवाली सभी शिक्षा बाल्यावस्था जैसी है । यहां उसके केवल ३ उदाहरण दिए गए हैं, अपितु प्रत्येक क्षेत्र में यही बात है । १. आधुनिक वैद्यों को रोगी की प्रकृति वात, पित्त अथवा कफप्रधान है, यह ज्ञात नहीं होता । अतः वो सभी प्रकृतिवाले रोगियों को एक जैसी ही औषधियां देते हैं … Read more

अध्यात्म में किसी भी प्रश्‍न का उत्तर तत्काल ज्ञात होता है ।

विज्ञान को जानकारी को एकत्रित कर किसी प्रश्‍न का उत्तर ढूंढना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में जानकारी एकत्रित नहीं करनी पडती । इसमें किसी भी प्रश्‍न का उत्तर तत्काल ज्ञात होता है ।

अध्यात्म आैर विज्ञान में अंतर

विज्ञान में, जानकारी एकत्र कर प्रश्‍न का उत्तर ढूंढना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में, जानकारी एकत्र किए बिना ही प्रत्येक प्रश्‍न का उत्तर तत्काल मिलता है ।

पाश्‍चात्त्य वैद्यकीय प्रणाली क्या कभी परिपूर्ण उपाय कर सकेगी ?

व्यक्ति की प्रकृति वात, पित्त अथवा कफ प्रधान है, तथा उसका प्रारब्ध क्या है, इससे अनभिज्ञ पाश्‍चात्त्य वैद्यकीय प्रणाली क्या कभी परिपूर्ण उपाय कर सकेगी ?

कहां बालवाडी समान रहनेवाला एवं संशोधन करनेवाला पाश्‍चात्त्यों का विज्ञान, तो कहां लाखों वर्ष पूर्व का परिपूर्णता प्राप्त हिन्दू धर्म का विज्ञान !

यहां दिए गए खगोलशास्त्र के एक उदाहरण से यह सूत्र ध्यान में आएगा । आकाश के ग्रहों के विषय में विज्ञान जो शोध करता है, वह केवल भौतिक दृष्टि से है । इसके विपरीत हिन्दू धर्म विज्ञान ग्रहों की भौतिक जानकारी के साथ ग्रहों का परिणाम क्या होता है ? कब होता है ? तथा … Read more

बुद्धिप्रामाण्यवादी आैर साधक

बुद्धिप्रामाण्यवादी अर्थात प्राणियों समान स्वेच्छा से आचरण करनेवाले तथा साधक अर्थात परेच्छा एवं ईश्‍वरेच्छा से आचरण करनेवाले !