पूजा की पूर्वतैयारी कैसे करें ?

१. पूजा की पूर्वतैयारी कैसे करें ?

पूजा के माध्यम से निर्मित चैतन्य को ग्रहण करने की क्षमता पूजक में निर्माण हो, इस हेतु हिन्दू धर्म में सगुण से निर्गुण की ओर ले जानेवाली देवतापूजन की पूर्वतैयारी जैसी कृतियां बताई गई हैं, उदा. पूजास्थल की शुद्धि, रंगोली बनाना, शंखनाद के लाभ, पूजा में बैठने हेतु आसन लेना, देवताओं पर चढाएं फूल, निर्माल्य उतारने की योग्य पद्धति इत्यादि कृतियां आती हैं ।

देवतापूजन की तैयारी करने से संभावित लाभ : जीव के देह की सात्त्विकता बढने लगती है और जीव के देह की शुद्धि होती है । वास्तुशुद्धि होकर वायुमंडल प्रसन्न होता है । ब्राह्मणोंद्वारा पूजाविधि में विधिवत किया जानेवाला संकल्प पूजास्थलपर देवताओं के आगमन तथा यजमानों को आशीर्वाद प्रदान कराता है ।

अ. पूजक की अपनी तैयारी

पुरुष

१. स्नान के उपरांत पुरुष यथासंभव रेशमी धोती, पीतांबर अथवा धुले हुए वस्त्र (धोती, पंचा, आदि) परिधान करें व कंधेपर उपवस्त्र ले ।

२. स्वयं की शुद्धि हेतु पुरुष अपने शरीरपर भस्म लगाएं ।

३. पुरुष माथेपर तिलक या सिंदूर अथवा कुमकुम लगाएं । नाक के मूल के ऊपर तिलक व कुमकुम लगाएं । यदि सिंदूर लगाना हो, तो नाक के मूल के पास लगाएं । तिलक व सिंदूर अनामिका से लगाएं; जबकि कुमकुम मध्यमा से लगाएं । जहांतक संभव हो पुरुष खडा तिलक लगाएं ।

स्त्री

१. स्नान के उपरांत स्त्रियां यथासंभव नौ गजकी साडी परिधान करें । यह संभव न हो, तो छह गजकी साडी परिधान करें ।

२. स्त्रियां माथेपर हलदी-कुमकुम लगाएं । हलदी अनामिका से व कुमकुम मध्यमा से लगाएं । जहांतक संभव हो स्त्रियां गोल तिलक लगाएं ।

आ. स्तोत्रपाठ अथवा नामजप करना

स्तोत्रपाठ अथवा नामजप पूजा की तैयारी करते समय कभी भी कर सकते हैं । नामजप की तुलना में स्तोत्र में सगुण तत्त्व अधिक होता है; इसलिए स्तोत्र ऊंची आवाज में कहें तथा नामजप मन में करें । नामजप मन ही मन न हो रहा हो तो ऊंची आवाज में करने में कोई आपत्ती नहीं ।

इ. पूजास्थल की शुद्धि व उपकरणों की जागृति करना

पूजाघर स्थित कक्ष में झाडू लगाएं । कमरा गोबर से लीपें अथवा साफ पानी  पोछें । आम या तुलसी के पत्ते से गोमूत्र या विभूति का जल छिडककर व धूप दिखाकर पूजाघर की शुद्धि करें । यह वायुमंडल में स्थित विषैली वायु व काली शक्ति नष्ट करने में सहायक है । देवतापूजन के उपकरण भलीभांति साफ कर लें । उनपर तुलसीदल अथवा दूर्वा से जलप्रोक्षण करें ।

र्इ. रंगोली बनाना

संभव हो, तो पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां रंगोली बनाएं । भूमिपर झाडू फेरते समय व बुहारते समय भूमिपर सूक्ष्म, अनियमित स्पंदनोंवाली रेखाएं निर्माण होती हैं । ये स्पंदन शरीर, आंखों व मन के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं । इन अनिष्ट स्पंदनों से बचने के लिए बुहारी गई भूमिपर रंगोली बनाने पर उससे नियमित स्पंदन निर्माण होते हैं । यथासंभव रंगोली मुख्य देवता का तत्त्व आकृष्ट करनेवाली हो । उसी प्रकार किसी विशेष देवता की पूजा करते समय उस तत्त्वसे संबंधित रंगोली बनाएं । रंगोली बनाते समय वह देवता के नाम या रूप की न बनाकर स्वस्तिक अथवा बिंदुयुक्त बनाएं । रंगोली बनाने के उपरांत उसपर हलदी-कुमकुम डालें । रंगोली में देवता के तत्त्व हेतु पूरक रंगों का प्रयोग करें, उदा. श्री गणपति की रंगोली में लाल रंग व मारुति की रंगोली में सिंदूरी रंग का प्रयोग करें ।

उ. शंखनाद करना

खडे होकर, गर्दन ऊर्ध्व दिशा की ओर (ऊपर) कर मन की एकाग्रता साध्य कर शंखध्वनि करें । श्वास पूर्णत: छाती में भर लें । ध्वनि की तीव्रता बढाते जाएं व अंत में तीका नाद करें । जहांतक संभव हो, शंख एक श्वास में बजाएं । शंखिणी का नाद न करें ।

ऊ. देवतापूजन के लिए बैठने हेतु आसन लेना

पूजक आसन के लिए पीढा लें । पीढा दो पटि्टयों को जोडकर न बनाया गया हो, अर्थात् वह अखंड हो । पीढे में लोहे की कीलें न हो । यथा संभव  पीढेपर रंग न किया गया हो ।

ए. देवताओं पर चढाया निर्माल्य निकालें

निर्माल्य निकालते समय वह अंगुठा व अनामिका से उठाएं । इससे निर्माल्य में विद्यमान गंधतरंगें ग्रहणयोग्य बनकर देहपर से रज-तमात्मक आवरण नष्ट होनेमें सहायता होती है ।

उपकरणों की जागृति : देवतापूजन के उपकरण भलीभांति साफ कर लें । उनपर तुलसीदल अथवा दूर्वा से जलप्रोक्षण करें ।

२. पूजाघर किससे बना हो ?

यदि संभव हो, तो पूजाघर चंदन का अथवा सागौन का बनाएं । सबके लिए चंदन का पूजाघर बनाना संभव नहीं होता । अन्य लकडियों की तुलना में सागौन में सात्त्विक तरंगें संजोए रखने व प्रक्षेपित करने की क्षमता अधिक होती है । ईश्वर के प्रति जीव के भाव के कारण, पूजाघर के ऊपरी नुकीले भाग की ओर देवताओं की तरंगें आकर्षित होती हैं व आवश्यकतानुसार वास्तु में प्रक्षेपित की जाती हैं ।

३. पूजाघर का रंग कैसा होना चाहिए ?

आजकल अधिकांश घरों में सजावट के लिए पूजाघर विभिन्न रंग के बनाए जाते हैं । वास्तव में पूजाघर लकडी के रंग का, अर्थात् भूरे रंग का होना श्रेष्ठ है । इसका कारण आगे दिए अनुसार है । ईश्वर के दो तत्त्व हैं – सगुण तत्त्व व निर्गुण तत्त्व । भूरा रंग सगुण तत्त्व व निर्गुण तत्त्व की सीमारेखा का, अर्थात् सगुण से निर्गुण की ओर जाने के स्थित्यंतर का दर्शक है । पंचतत्त्वों से बना मनुष्य जीव ‘सगुण’ है, तो निराकार ईश्वर ‘निर्गुण’ हैं । देवतापूजन जैसी धार्मिक कृतिद्वारा ईश्वरोपासना से जीव को सगुण से निर्गुण की ओर, अर्थात् द्वैत से अद्वैत की ओर बढने में सहायता मिलती है । स्वाभाविक ही पूजाघर का भूरा रंग, इस यात्रा के लिए पूरक होता है ।

४. पूजाघर की रचना कैसे करें ?

‘पूजाघर में देवताओं की रचना शंकु के आकार में करें । पूजक के सामने शंकु की नोक पर, यानी बीच में श्रीगणेश की मूर्ति रखें । पूजक की दाईं ओर स्त्रीदेवताओं की रचना करें । उस में कुलदेवी का रूप प्रथम व उपरांत उच्च देवताओं के उपरूप हों, तो रखें । उसके उपरांत उच्च देवता की स्थापना करें । इसी क्रम के अनुसार पूजक की बाईं ओर पुरुषदेवता, यानी प्रथम कुलदेव, तदुपरांत उच्च देवताओं के उपरूप व उसके उपरांत उच्च देवता रखें । पूजाघर में देवताओं की संख्या कम हो । जिनके गुरु हैं, ऐसे व्यक्ति यदि अकेले रहते हों, तो वे केवल अपने गुरु का चित्र अथवा छायाचित्र पूजाघर में रखें ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘पूजापूर्व व्यक्तिगत व्यवस्था