श्री लक्ष्मीपूजन एवं उसका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व

१. दीपावलीके कालमें आनेवाली अमावस्याका महत्त्व

शक संवत अनुसार आश्विन अमावस्या तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक अमावस्याका दिन दीपावलीका एक महत्त्वपूर्ण दिन है । सामान्यतः अमावस्याको अशुभ मानते हैं; परंतु दीपावली कालकी अमावस्या शरदपूर्णिमा अर्थात कोजागिरी पूर्णिमाके समान ही कल्याणकारी एवं समृद्धिदर्शक है ।

इस दिन करनेयोग्य धार्मिक विधियां हैं…

  • १. श्री लक्ष्मीपूजन
  • २. अलक्ष्मी नि:सारण

२. श्री लक्ष्मीपूजन

दीपावलीके इस दिन धन-संपत्तिकी अधिष्ठात्रि देवी श्री महालक्ष्मीजीका पूजन करनेका विधान है । दीपवालीकी अमावस्याको अर्धरात्रिके समय श्री लक्ष्मीजीका आगमन सदगृहस्थोंके घर होता है । घरको पूर्णतः स्वच्छ, शुद्ध एवं सुशोभित कर दीपावली मनानेसे देवी श्री लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं तथा वहां स्थायी रूपसे निवास करती हैं । इसीलिए इस दिन श्री लक्ष्मीजीका पूजन करते हैं एवं दीप जलाते हैं । यथा संभव श्री लक्ष्मीपूजनकी विधि सपत्नीक करते हैं ।

श्री लक्ष्मीपूजनकी विधि – दृश्यपट (Video)

श्री लक्ष्मीपूजनकी विधि

  • श्री लक्ष्मीपूजनके लिए इसप्रकार विशेष सिद्धता की जाती है।
  • पूजाके आरंभमें आचमन किया जाता है ।
  • उपरांत प्राणायाम एवं देशकालकथन किया जाता है।
  • तदुपरांत लक्ष्मीपूजन एवं उसके अंतर्गत आनेवाली अन्य विधियोंके लिए संकल्प करते  हैं।

पूजनके आरंभमें, आचमन, प्राणायाम इत्यादि धार्मिक कृतियां करनेसे पूजककी सात्त्विकता बढ़ती है । इससे पूजकको देवतापूजनसे प्राप्त चैतन्यका आध्यात्मिक स्तरपर अधिक लाभ होता है । श्री लक्ष्मीपूजनका प्रथम चरण है,

  • संकल्पके उपरांत श्रीमहागणपतिपूजनके लिए ताम्रपात्रमें रखे नारियलमें शोडषोपचार पूजनके लिए महागणपतिका आवाहन किया जाता है ।
  • तदुपरांत कपासके वस्त्र, चंदन, पुष्प एवं दूर्वा, हलदी, कुमकुम,धूप,दीप, नैवेद्य इत्यादि उपचार अर्पित कर पूजन करते हैं    ।

श्री गणपति दिशाओंके स्वामी हैं । इसलिए प्रथम श्री महागणपति पूजन करनेसे सर्व दिशाएं खुल जाती हैं। परिणामस्वरूप सर्व देवतातत्त्वोंकी तरंगोंको बिना किसी अवरोध पूजनविधिके स्थानपर आना सुलभ होता है ।

३. वरुण तथा अन्य देवताओंका आवाहन एवं पूजन

  • श्री महागणपति पूजनके उपरांत कलश, शंख, घंटा, दीप इन पूजाके उपकरणोंका पूजन किया जाता है ।
  • तत्पश्र्चात जल प्रोक्षण कर पूजासामग्री की शुद्धि की जाती है ।
  • इसके पश्चात वरुण देवताकी स्थापनाके लिए चौैपाएपर अखंड चावल पैâलाए जाते हैं।
  • चावलपर कलश रखा जाता है ।
  • कलशमें जल डाला जाता है।
  • उपरांत कलशमें भरे जलमें चंदन, आम्रपल्लव, सुपारी एवं सिक्का रखा जाता है ।
  • कलशको वस्त्र अर्पित किया जाता है।
  • तदुपरांत कलशपर अखंड चावलसे भरा पूर्णपात्र रखा जाता है ।
  • इस पूर्णपात्रमें रखे चावलपर कुमकुमसे अष्टदल कमल बनाते  हैं ।
  • कलशको अक्षत समर्पित कर उसमें वरुण देवताका आवाहन किया जाता है।
  • उपरांत चंदन, हलदी, कुमकुम, अक्षत, एवं पुष्प अर्पित कर पूजन किया जाता है ।
  • पूजन करनेके उपरांत चावलसे भरे पूर्ण पत्र परअक्षत अर्पित कर सर्व देवताओंका आवाहन किया जाता है ।

अष्टदल कमलके कारण उस स्थानपर शक्तिके स्पंदनोंकी उत्पत्ति होती है । ये शक्तिके स्पंदन सर्व दिशाओंमें प्रक्षेपित होते हैं । इस प्रकार पूर्णपात्रमें बना अष्टदल कमल यंत्रके समान कार्य करता है । पूर्णपात्रमें बनाए अष्टदल कमलपर सर्व देवताओंकी स्थापना करते हैं । कलशमें श्री वरुणदेवताका आवाहन कर उनका पूजन करते हैं । तदुपरांत पूर्णपात्रमें बनाए अष्टदल कमलपर आवाहन किए गए देवता तत्त्वोंका पूजन करते हैं ।

वरुण तथा अन्य देवताओंका आवाहन एवं पूजन – दृश्यपट (Video)

कलशमें वरुणदेवताका आवाहन करनेका महत्त्व

वरुण जलके देवता हैं । वरुणदेवता आपतत्त्वका नियमन करते हैं और कर्मकांडके विधि करते समय आवश्यकताके अनुसार ईश्वरीय तत्त्व साकार होनेमें सहायता करते हैं । आपतत्त्वके माध्यमसे आवश्यक ईश्वरीय तत्त्व व्यक्तिमें एवं विधिके स्थानपर कार्यरत होता है । यही कारण है कि, हिंदु धर्मने विविध देवताओंके पूजन हेतु की जानेवाली विभिन्न प्रकारकी विधियोंमें वरुणदेवताका आवाहन करनेका विधान बताया है ।

कलशमें वरुण देवताका आवाहन कर पूजन करनेके उपरांत चावलसे भरे पूर्णपात्र पर अक्षत अर्पित कर सर्व देवताओंका आवाहन किया जाता है। चंदन, पुष्प एवं तुलसीपत्र, हलदी, कुमकुम, धुप, दीप आदि उपचार अर्पित कर सर्व देवताओंका पूजन किया जाता है ।

४. श्री लक्ष्मी तथा कुबेरका आवाहन एवं पूजन

लक्ष्मी संपत्तिकी देवता हैं; जबकि कुबेर संपत्तिसं ग्राहक हैं । कई लोग धनप्राप्तिकी कला तो साध्य करते हैं; परंतु उसे संजोकर
रखनेकी कला ज्ञात न होनेके कारण, उनसे अनावश्यक व्यय होकर धन शेष नहीं रहता । सारांशमें, धन प्राप्त करनेकी अपेक्षा उसे संजोना, संभालना एवं यथोचित खर्च करना अधिक महत्त्वपूर्ण है । ‘धनको कैसे संभालना चाहिए’, यह कुबेरदेवता सिखाते हैं; क्योंकि वे धनाधिपति हैं । इसलिए इस पूजा हेतु लक्ष्मी एवं कुबेर देवताओंका उल्लेख है । समस्त लोग, विशेषतः व्यापारी, यह पूजा बडे उत्साहसे एवं ठाट-बाटसे करते हैं ।

श्री लक्ष्मी तथा कुबेरका आवाहन एवं पूजन – दृश्यपट (Video)

  • सर्व देवताओंके पूजनके उपरांत कलशपर रखे पूर्णपात्रमें श्रीलक्ष्मीकी मूर्ति रखी जाती है ।
  • उसके निकट द्रव्यनिधि रखी जाती है ।
  • उपरांत अक्षत अर्पित कर ध्यानमंत्र बोलते हुए, मूर्तिमें श्रीलक्ष्मी तथा द्रव्यनिधिपर कुबेर का आवाहन किया जाता है ।
  • अक्षत अर्पित कर देवताओंको आसन दिया जाता है ।
  • उपरांत श्री लक्ष्मीकी मूर्ति एवं द्रव्यनिधि स्वरूप कुबेरको अभिषेक करने हेतु ताम्रपात्रमें रखा जाता है ।
  • अब श्रीलक्ष्मी एवं कुबेरको आचमनीसे जल छोडकर पाद्य, अर्घ्य, स्नान आदि उपचार किए जाते हैं ।
  • तत्पश्चात दूध, दही, घी, मधु , एवं शर्करासे अर्थात पंचामृत स्नानका उपचार किया जाता है।
  • उपरांत गंधोदक एवं उष्णोदक स्नानका उपचार किया जाता है ।
  • चंदन और पुष्प अर्पित किए जाते हैं ।
  • श्रीलक्ष्मी एवं कुबेरका अभिषेक किया जाता है ।
  • अभिषेकके उपरांत श्री लक्ष्मी एवं कुबेर देवताको स्वच्छ वस्त्रसे पोंछकर पुन: पूर्व स्थानपर रखा जाता है ।
  • उपरांत वस्त्र, गंध, हल्दी कुमकुम, कंकणादि, सौभाग्य अलंकार, पुष्पमाला अर्पित की जाती है ।
  • उपरांत श्री लक्ष्मीके प्रत्येक अंगका उच्चारण कर अक्षत अर्पित किया जाता है । इसे अंग पूजा कहते हैं ।
  • तदुपरांत श्री लक्ष्मीकी पत्रपूजा की जाती है । इसमें सोलह विभिन्न वृक्षोंके पत्र अर्पित किए जाते हैं ।
  • पत्रपूजाके उपरांत धूप, दीप आदि उपचार समर्पित किए जाते हैं ।
  • श्रीलक्ष्मी और कुबेरको नैवेद्य चढ़ाया जाता है ।
  • अंतमें देवीकी आरती उतारकर, मंत्रपुष्पांजली अर्पित की जाती है ।

कुछ स्थानोंपर देवीको धनिया एवं लाई अर्पण करनेकी प्रथा है । कुछ स्थानोंपर भित्तिपर विभिन्न रंगोंद्वारा श्रीगणेश-लक्ष्मीजीके चित्र बनाकर उनका पूजन करते हैं । तो कुछ स्थानोंपर श्रीगणेश-लक्ष्मीजीकी मूर्तियां तथा कुछ स्थानोंपर चांदीके सिक्केपर श्री लक्ष्मीजीका चित्र बनाकर उनका पूजन करते हैं ।

श्री लक्ष्मीपूजनमें अष्टदल कमलपर स्थापित विविध देवता तत्त्वोंके पूजनके उपरांत श्री लक्ष्मीजीकी मूर्तिका अभिषेक करनेका कारण

किसी भी देवता पूजनमें देवताका आवाहन करनेसे देवताका निर्गुण तत्त्व कार्यरत होता है और पूजास्थानपर आकृष्ट होता है । देवताकी मूर्ति देवताका सगुण रूप है । इस सगुण रूपको भावसहित और संभव हो, तो मंत्रसहित अभिषेक करनेसे मूर्तिमें देवताका सगुणतत्त्व कार्यरत होता है । इससे मूर्तिमें संबंधित देवताका निर्गुण तत्त्व आकृष्ट होनेमें सहायता होती है । अभिषेकद्वारा जागृत मूर्तिको उसके स्थानपर रखनेसे उस स्थानका स्पर्श मूर्तिको होता रहता है । इससे आवाहन किए गए देवतातत्त्व मूर्तिमें निरंतर संचारित होते रहते हैं । इस प्रकार देवतातत्त्वसे संचारित मूर्तिद्वारा देवतातत्त्वकी तरंगें प्रक्षेपित होने लगती हैं । जिनका लाभ पूजकके साथही वहां उपस्थित अन्य व्यक्तियोंको भी मिलता है । साथही पूजास्थानके आसपासका वातावरण भी देवतातत्त्वकी तरंगोंसे संचारित होता है । यही कारण है कि, श्री लक्ष्मीपूजनमें अष्टदल कमलपर स्थापित विविध देवता तत्त्वोंके पूजनके उपरांत श्री लक्ष्मीजीकी मूर्तिका अभिषेक करते हैं ।

५. नैवेद्यके घटकोंमें प्रत्येक घटकका कार्य

प्रसाद में उपयोगमें लाए जानेवाले घटक व उनका महत्त्व – दृश्यपट (Video)

लक्ष्मीपूजनकी विधिमें विविध पत्र अर्पण करनेके उपरांत धूप, दीप आदि उपचार समर्पित किए जाते है ।श्री लक्ष्मी एवं कुबेरको नैवेद्य निवेदित करते हैं । श्री लक्ष्मी देवी इत्यादि देवताओंको लौंग, इलायची एवं शक्कर डालकर बनाए गए गायके दूधसे बने खोयेका नैवेद्य चढाते हैं । धनिया, गुड, चावलकी खीलें, बताशा इत्यादि पदार्थ लक्ष्मीको चढाकर तत्पश्चात आप्तेष्टोंमें बांटते हैं ।

इन घटकोंमें प्रत्येक घटकका कार्य भिन्न होता है ।

  • लौंग तमोगुणका नाश करती है ।
  • इलायची रजोगुणका नाश करती है ।
  • दूध एवं शक्कर सत्त्वगुणमें वृद्धि करते हैं ।

इसलिए इन घटकोको त्रिगुणातार कहते हैं ।

इस पूजामें धनिया एवं खीलें चढाते हैं; इसका कारण यह है कि धनिया धनवाचक शब्द है । ‘खीलें’ समृद्धिका प्रतीक हैं । थोडासा धान भूंजनेपर उससे अंजलिभर खीलें बनती हैं । लक्ष्मीकी समृद्धि होनी चाहिए, इस कारण समृद्धिका प्रतीक खीलें चढाई जाती हैं ।

अंतमें देवीकी आरती उतारकर, मंत्रपुष्पांजलि अर्पित की जाती है। ब्राह्मणोंको एवं अन्य क्षुधापीडितोंको भोजन करवाते हैं ।

६. रातमें जागरण करना

रातमें जागरण करते हैं । पुराणोंमें कहा गया है कि कार्तिक अमावस्याकी रात लक्ष्मी सर्वत्र संचार करती हैं एवं अपने निवासके लिए उचित स्थान ढूंढने लगती हैं । जहां स्वच्छता, शोभा एवं रसिकता दिखती है, वहां तो वह आकृष्ट होती ही हैं; इसके अतिरिक्त जिस घरमें चारित्रिक, कर्तव्यदक्ष, संयमी, धर्मनिष्ठ, देवभक्त एवं क्षमाशील पुरुष एवं गुणवती एवं पतिव्रता स्त्रियां निवास करती हैं, ऐसे घरमें वास करना लक्ष्मीको भाता है ।’

७. श्री लक्ष्मीदेवीसे की जानेवाली प्रार्थना

लक्ष्मीपूजनके समय वर्षभर आय- व्यय लेखाकी बही श्रीलक्ष्मीके समक्ष रखें एवं उनसे प्रार्थना करें, ‘हे लक्ष्मी ! आपके आशीर्वादसे प्राप्त धनका उपयोग हमने सत्कार्य एवं ईश्वरीय कार्यके लिए किया है । उसका लेख-जोखा आपके सामने रखा है ।  आप अपनी सहमति दें ! अगले वर्ष भी हमारे कार्य व्यवस्थित निपट जाएं !

मेरे पालन-पोषण हेतु मुझे चैतन्य देनेवाले, मेरे प्रत्येक कार्यमें सहभागी भगवान मुझमें वास कर कार्य करते हैं । तब वे भी भागीदार हैं । मैंने वर्षभर क्या उपलब्धि की एवं उसका विनियोग वैâसे किया, उसी पाई-पाईका लेखा इस आय- व्यय बहीमें दर्ज किया है । जांचनेके लिए आज वह आपके समक्ष रखा है । आप साक्षि हैं । मैं आपसे कुछ नहीं छुपा सकता । जबसे आप मेरे निकट आए हैं, तबसे मैंने आपका आदर ही किया है । आपका विनियोग प्रभुकार्यके लिए ही किया है; क्योंकि उसमें प्रभुका भी भाग है । हे लक्ष्मीदेवी, आप निष्कलंक एवं स्वच्छ हैं, इसलिए मैंने आपका उपयोग बुरे कार्योंके लिए कभी नहीं किया । यह सर्व मेरे लिए श्री सरस्वतीदेवीकी सहायताके कारण ही संभव हुआ । उन्होंने मेरे विवेकको कभी ढहने नहीं दिया । इसीलिए मेरा आत्मबल कभी अल्प नहीं पडा । मुझे एवं मेरे परिवारको सुख एवं समाधानका लाभ मिला ।

यह व्यय मैंने प्रभुस्मरण करते हुए ही किया । (स्मरणद्वारा) उन्हें सहभागी बनानेके कारण ही उनसे सहयोग प्राप्त हुआ । यदि मैं आपका विनियोग उचित ढंगसे न करूं, तो आप मेरा साथ छोड देंगी, इसका मुझे सदा भान रहता है । इसलिए हे लक्ष्मीदेवी, मेरे धनव्ययके लिए भगवानका समर्थन प्राप्त करने हेतु आप ही उनसे याचना करें । आपकी अनुशंसा बिना वे नहीं मानेंगे । मुझसे कोई भूल हो जाए, तो मैं वह दोहराऊंगा नहीं । इसलिए हे लक्ष्मीदेवी एवं सरस्वतीदेवी, आप मुझपर कृपा करें एवं मेरे हाथसे जन्मभर हितकारक विनियोग ही होने दें ।’

६. दीपावलीके दिन श्री लक्ष्मीपूजन करनेके परिणाम

इससे स्पष्ट होता है, कि दीपावलीके दिन किए गए श्री लक्ष्मीजीके पूजनद्वारा शक्ति एवं चैतन्यके स्पंदनोंकी उत्पत्ति अधिक मात्रामें होती है तथा ये स्पंदन वातावरणमें संचारित होते हैं । इस दिन ब्रह्मांडकी कक्षामें संपूर्ण लक्ष्मीपंचायतन प्रवेश करता है । लक्ष्मीपंचायतनमें कुबेर, गजेंद्र, इंद्र, श्री विष्णु एवं श्री लक्ष्मी  इन देवतातत्त्वोंकी तरगें समाविष्ट रहती हैं ।

७. लक्ष्मी पूजनके लाभ

७ अ. भक्तिभाव बढना

श्री लक्ष्मी पूजनके दिन ब्रह्मांडमें श्री लक्ष्मीदेवी एवं कुबेर इन देवताओंका तत्त्व अन्य दिनोंकी तुलनामें ३० प्रतिशत अधिक मात्रामें प्रक्षेपित होता है । इस दिन इन देवताओंका पूजन करनेसे व्यक्तिका भक्तिभाव बढता है तथा वह ३ घंटोतक बना रहता है ।

७ आ. सुरक्षाकवचका बनना

श्री लक्ष्मी तत्त्वके मारक तरंगोके स्पर्शसे व्यक्तिकी देहके भीतर तथा उसके सर्व ओर विद्यमान रज-तम कणोंका नाश होता है । व्यक्तिकी देहके सर्व ओर सुरक्षाकवच बनता  है ।

७ इ. अनिष्ट शक्तियोंका नाश होना

श्री लक्ष्मीपूजनके दिन अमावस्याका काल होनेसे श्री लक्ष्मीजीका मारकतत्त्व कार्यरत रहता है । पूजकके भावके कारण पूजन करते समय श्री लक्ष्मीजीकी मारक तत्त्वतरंगे कार्यरत होती हैं । इन तरंगोंके कारण वायुमंडलमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंका  नाश होता है । इसके अतिरिक्त दीपावलीके दिन श्री लक्ष्मी पूजन करनेसे पूजकको शक्तिका २ % , चैतन्यका २ %,  आनंदका एक दशमलव पच्चीस %  एवं ईश्वरीय तत्त्वका एक प्रतिशत मात्रामें लाभ मिलता है । इन लाभोंसे श्री लक्ष्मीपूजन करनेका महत्त्व समझमें आता है ।

८. अलक्ष्मी निःसारण

अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता, दैन्य एवं आपदा । निःसारण करनेका अर्थ है बाहर निकालना । लक्ष्मीपूजनके दिन नई झाडू खरीदी जाती है । उसे ‘लक्ष्मी’ मानकर मध्यरात्रिमें उसका पूजन करते हैं । उसकी सहायतासे घरका कूडा निकालते हैं । कूडा सूपमें भरते हैं, कूडा अलक्ष्मीका प्रतीक है । उसे बाहर फेंका जाता  हैं । अन्य किसी भी दिन मध्यरात्रिमें कुडा नहीं  निकालते । कूडा बाहर फेंकनेंके उपरांत घरके कोने-कोनेमें जाकर सूप अर्थात छाज बजाते हैं ।

अलक्ष्मी निःसारण की प्रत्यक्ष कृति एवं उसका महत्त्व – दृश्यपट (Video)

  • मध्यरात्रिमें रज-तमात्मक तरंगोंकी सर्वाधिक उत्पत्ति होती है ।
  • ये तरंगें घरमें विद्यमान रज-तमात्मक कूडेकी ओर आकर्षित होती हैं ।
  • इस रज-तमात्मक तरंगोंसे भरपूर कूडेको सूपमें भरकर वास्तुसे बाहर फेंकनेसे वास्तुकी रज-तमात्मक तरंगें नष्ट होती हैं तथा वास्तु शुद्ध होता है  ।
  • इससे सात्त्विक तरंगें वास्तुमें सरलतासे प्रवेश कर पाती हैं ।
  • वास्तुमें श्री लक्ष्मीपूजनद्वारा आकर्षित चैतन्यका लाभ बढता है ।

संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’

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