गुरुभक्‍त संदीपक !

गोदावरी नदी के तट पर महात्‍मा वेदधर्मजी का आश्रम था । उन्‍होंने अपने सभी शिष्‍यों को कहा, ‘‘मुझसे जितना हो सका उतना ज्ञान तुम सबको मैंने दिया है । परन्‍तु अब मेरे पूर्व जन्‍म के कर्मों के कारण आगे आनेवाले समय में मुझे कोढ होगा, मैं अंधा हो जाऊंगा, मेरे शरीर में कीडे पड जायेगे, मेरे शरीर से दुर्गंध आने लगेगी । मेरे इस व्‍याधिकाल में कौन-कौन मेरे साथ आने के लिए तैयार है ?’’ Read more »

अन्योंका विचार करने का महत्व ! 

गुरुकुल के अंतिम दिवस पर गुरुदेवजी जे सभी को एक छोटीसी परीक्षा देने के लिए एक दौड में भाग लेने के लिए कहा। दौड पूर्ण होने के पश्चायत गुरुदेवजी ने सभी को देखकर प्रश्न किया, ‘‘पुत्रों ! मैं देख रहा हूं कि कुछ लोगों ने दौड बहुत शीघ्र पूरी कर ली और कुछ ने बहुत अधिक समय लिया । भला ऐसा क्यों हुआ ?’’ Read more »

जगद्गुरु भगवान श्रीकृष्णजी की गुरुदक्षिणा !

छोटी आयु में ही श्रीकृष्णजी और बलराम को शिक्षा प्राप्त करने के लिए उज्जयिनी नगरी में सांदीपनी ऋषि के आश्रम में भेजा गया । शिक्षा पूरी होने के बाद श्रीकृष्ण और बलराम अपने गुरु सांदीपनी ऋषि को विनम्रता से वंदन किया और कहा, ‘‘हे गुरुवर, आपने हमें अमूल्य ज्ञान दिया है । हम आपके चरणों में गुरुदक्षिणा अर्पण करना चाहते हैं ।’’ Read more »

गुरू क्‍या होते हैं !

हम स्‍वामी विवेकानंदजी और उनके गुरु स्‍वामी रामकृष्‍ण परमहंस जी की कथा के द्वारा ‘गुरु क्‍या होते हैं’ यह समझ लेते हैं । स्‍वामी रामकृष्‍ण परमहंसजी कैंसर रोग से पीडित थे । उन्‍हें खांसी बहुत आती थी और उस कारण वे खाना भी नहीं खा पाते थे । स्‍वामी विवेकानंद जी अपने गुरु जी की हालत से बहुत दु:खी होते थे । Read more »

श्रद्धालु पद्मपादाचार्य !

आदि शंकराचार्यजी जिस गंगातट पर जाते थे, उसके दूसरे किनारे पर एक तेजस्‍वी युवक था। उसके मन में शंकराचार्यजी के प्रति आदर निर्माण हुआ तथा उसने वहीं से उन्‍हें प्रणाम किया । श्रीमत् आदि शंकराचार्यजी ने भी उसका प्रणाम स्‍वीकार किया और उसे अपने हाथ से संकेत कर अपने पास बुलाया । इस कथा में देखते है, उस युवक ने गुरु-आज्ञापालन कैसे किया। Read more »

आज्ञाकारी शिष्‍य !

गुरु नानकजी ने अपने एक शिष्‍य को बुलाकर एक चबूतरा (चौरा) बनाने के लिए कहा । शिष्‍य ने गुरु की आज्ञा से चबूतरा बना दिया । गुरु नानकजी ने उस चबूतरे को देखा और अपने शिष्‍य को उस चबूतरे को तोडने की आज्ञा दी । इस प्रकार गुरु नानकजी अपने शिष्‍य से बार-बार चबूतरा बनाने को कहते और बार-बार तुडवा देते थे । Read more »

गुरु के आज्ञापालन का महत्त्व

एक दिन समर्थ रामदास स्‍वामी ने उनके शिष्‍य कल्‍याणस्‍वामी से कहा, ‘एक पेड की टहनी कुएं के ऊपर आ गई है । उस टहनी को उलटी दिशा से तोडना है ।’ इस कथा में देखते है गुरु की आज्ञा का पालन कर कल्‍याणस्‍वामी रामदासस्‍वामी के उत्तम शिष्‍य कैसे बन गए । Read more »

एकलव्य की गुरुदक्षिणा

एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से पूछा, गुरुदेव, क्या आप मुझे धनुर्विद्या सिखाने की कृपा करेंगे ?’’ गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष समस्या उत्पन्न हो गई; क्योंकि उन्होंने पितामह भीष्म को वचन दिया था कि केवल राजकुमारों को ही विद्या सिखाएंगे । Read more »

गुरुकृपा प्राप्त करने के लिए स्वभावदोष-निर्मूलन का अनिवार्य होना !

‘स्वभावदोष-निर्मूलन’ अष्टांगसाधना का महत्त्वपूर्ण अंग है । इन स्वभाव दोषों के त्याग के बिना साधक के लिए गुरुकृपा तक पहुंचना असंभव है । साधना में स्वभावदोष-निर्मूलन का महत्त्व निम्नलिखित कथा से ध्यान में आता है । Read more »

गुरु द्रोणाचार्य एवं शिष्य अर्जुन !

शिष्य इतना जिज्ञासू हो कि गुरु का अंतःकरण अभिमान से भर जाए ! इसका उत्तम उदाहरण है अर्जुन ! प्रस्तुत कथा पढकर यह हमे ध्यान में आएगा । Read more »